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ताओ उपविषद भाग ५
और जिससे सब जग डर रहा है! ये डर कौन रहे हैं लोग? ये खाली घड़े हैं, छिद्र भरे घड़े, जिनका सब जीवन रिस गया और अब मौत द्वार पर खड़ी है। मौत को भेंट करने के लिए जिनके पास कुछ भी नहीं, जो भिखारी होकर मौत के द्वार पर आ गए हैं। जीवन की परिसमाप्ति आ गई और संपदा का जिनको स्वाद भी न लगा। ये न घबड़ाएंगे तो कौन घबड़ाएगा? ये न रोएंगे-चिल्लाएंगे तो कौन रोएगा-चिल्लाएगा?
वही जिसने अपने को बचाया है; जो मृत्यु के क्षण में साबित चला आया है। इसलिए कबीर कहते हैं, ऐसे जतन से ओढ़ी चदरिया, ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया। जैसी पाई थी उसे वैसी की वैसी वापस लौटा दी। जैसी पूर्ण लेकर आए थे जन्म के साथ वैसी ही पूर्ण परमात्मा को भेंट कर दी मृत्यु के समय, जरा भी मैली न होने दी। ऐसे जतन से ओढ़ी चदरिया। वह जो जतन है वही योग का सार है। वह जो जतन से ओढ़ना है वही साधना का सूत्र है।
और जिसने छिद्रों को खुला छोड़ा; और छिद्रों के, वासना के कारोबार में व्यस्त रहा; फिर आजीवन मुक्ति का कोई उपाय नहीं है।
'जो लघु को देख सके...।' सूक्ष्म को, आणविक को, मूल को, क्योंकि मूल में सब चीजें बहुत सूक्ष्म हैं; गंगोत्री को जो देख सके। 'वह स्पष्ट दृष्टि वाला है।' उसके पास ही दृष्टि है। 'जो कुलीनता के साथ जीता है, वही बलवान है।'
क्या है कुलीनता? कुलीनता का अर्थ किसी कुलीन घर में पैदा होना नहीं है। कुलीनता का अर्थ है कि जिसकी भीतरी संपदा अक्षुण्ण है। तुम उसे पहचान सकते हो। सिंहासनों पर बैठना उसके लिए जरूरी नहीं है। तुम उसे भिखारी के वेश में भी पहचान सकते हो। क्या तुम्हें कभी कोई ऐसा आदमी देखने मिला? न मिला हो तो तुम एक बड़े अनूठे अनुभव से वंचित रह गए। जो भिखारी के वस्त्रों में खड़ा हो, लेकिन जिसके चारों तरफ हवा बादशाहत . की हो! जिसके वस्त्र चाहे फटे-पुराने हों, चीथड़े हों, लेकिन जिसकी आंखों में झलक किसी सम्राट की हो! उसी को कुलीनता कह रहा है लाओत्से। किसी परिवार से संबंध नहीं, इस जगत के धन से कोई नाता नहीं, इस जगत के पद से कोई सवाल नहीं; जो कुछ भी है उसके भीतर है। तुम उसे छीन नहीं सकते। वह जहां भी चलेगा एक हवा उसके साथ चलेगी, एक प्रभामंडल उसे घेरे रहेगा। तुम उसके प्रभामंडल में जाओगे तो तुम अचानक पाओगे कि तुम शांत होने लगे। वह ऐसे ही है जैसे कि रेगिस्तान में एक मेघ आ जाए-वर्षा से भरा। जैसे सूखी धरती पर बादल बरस जाएं, तुम उसके पास ऐसी ही वर्षा अनुभव करोगे। तुम्हारा रो-रोआं एक अननुभूत तृप्ति से भरने लगेगा। उसका सान्निध्य, उसका सत्संग तुम्हें समृद्ध करेगा। कोई सूक्ष्म ऊर्जा बांटी जा रही है। वह कुछ दे रहा है। उसका पूरा जीवन एक दान है। लेकिन दान सिक्कों का नहीं है, दान वस्तुओं का नहीं है; दान जीवन का है।
इसको लाओत्से कुलीनता कहता है। और जब तक ऐसी कुलीनता तुम्हें उपलब्ध न हो जाए तब तक संन्यास फलित नहीं हुआ। जब तक बिना कुछ कारण के, अकारण तुम प्रसन्न न हो जाओ, तब तक तुम ठीक अर्थों में संन्यासी नहीं। जब तुम बिना कारण के प्रसन्न हो, जब तुम बिना कारण, कुछ दिखाई नहीं पड़ता तुम्हारे पास और तुम ऐसे लगते हो जैसे अनंत संपदा के धनी हो, तुम्हारे फटे वस्त्रों से भी जिस दिन तुम्हारे भीतर की गरिमा झलकती है-कुलीनता!
एक अंग्रेज चिकित्सक के मैं संस्मरण पढ़ रहा था। वैज्ञानिक है, बड़ा डाक्टर है। पूरब आया था सम्मोहन की कुछ विधियां सीखने, ताकि सर्जरी में उनका प्रयोग किया जा सके। तो वह अनेक साधुओं से मिला, संन्यासियों से मिला। बर्मा में उसे एक भिक्षु मिला, एक फकीर, जो एक खंडहर में रहता था। दूसरे महायुद्ध में मकान खंडहर हो
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