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________________ पुन: अपने मूल स्रोत से जुड़ो 83 संयोग की बात । और वह आदमी सो भी नहीं सकता, क्योंकि रुपए उसके पास हैं। जिनके भी पास रुपए हों वे कहीं सो सकते हैं? तो वह बार-बार अपनी बसनी को, जो उसने कमर में बांध रखी है रुपयों से भरी हुई, उसको टटोल कर देख लेता है। फिर रात घनी होने लगी और सन्नाटा छा गया। स्टेशन पर कोई नहीं है। तो वह उठ कर टहलने लगा। स्टेशन मास्टर देखने आया। वह उठ कर टहल रहा है। जब बैठे तभी कुछ किया जा सकता है। कहीं लेटे, सो जाए, तो सुविधा होगी; चीख-पुकार न मचा पाए। तो वह उसी बेंच पर बैठ कर देखने लगा कि यह कहां बैठता है, क्या करता है। स्टेशन मास्टर को झपकी आ गई। वह उसी बेंच पर लेट कर सो गया । और पोर्टर ने ठीक ग्यारह बजे उसकी हत्या कर दी। पोर्टर तो यही समझ कर मारा उसे कि यह वही आदमी लेटा हुआ है रात के अंधेरे में। बिजली नहीं है; छोटी सी लालटेन स्टेशन पर जली थी। और वह पोर्टर इतना भयभीत रहा होगा, इतना चिंतित रहा होगा कि उसने खयाल भी नहीं किया कि क्या हो रहा है। स्टेशन मास्टर की हत्या हो गई। इंतजाम स्टेशन मास्टर ने ही किया था । करीब-करीब ऐसा ही हो रहा है। तुम्हारी हत्या हो रही है; तुम्हारा ही इंतजाम है। गड्ढा तुमने ही खोदा है। अब तुम्हीं गिर गए हो और चिल्ला रहे हो । मन मानने को भी नहीं होता कि गड्डा हम अपने लिए क्यों खोदेंगे ! इसलिए जो भी तुमसे कहते हैं कि तुम्हीं ने गड्ढा खोदा, वे जंचते नहीं । जो तुमसे कहते हैं कि गड्ढा किसी और ने खोदा, वे तुम्हें जंचते हैं। उनमें तुम्हारे अहंकार का बचाव है। लाओत्से कहता है कि हानि से पूरा जीवन बचाया जा सकता है, लेकिन लौटना पड़ेगा। चौराहा तुम पीछे छोड़ आए। आगे ही बढ़ते गए। तो जितना आ गए हो, यह भी काफी फासला है। और अगर बढ़ते गए तो फासला बढ़ता जाएगा। रुक जाओ और पीछे की तरफ लौटो, मूल स्रोत की तरफ देखो। फेर लो अपनी पीठ जिस तरफ जा रहे थे; कर लो अपना मुंह उस तरफ जहां से आ रहे हो - उदगम की तरफ । 'ब्रह्मांड का एक आदि था, जिसे ब्रह्मांड की माता माना जा सकता है।' और लाओत्से के लिए जो परम प्रतीक है वह पिता नहीं है, मां है। और यह उचित है। क्योंकि अस्तित्व एक गर्भ है। अस्तित्व स्त्रैण है। पुरुष सांयोगिक है। स्त्री अपरिहार्य है। अब तो आर्टिफीशियल इनसेमिनेशन संभव है। तो पुरुष का काम इंजेक्शन भी कर देगा। तो पुरुष तो बिलकुल ही अपरिहार्य नहीं है; उसके बिना चल सकता है। स्त्री अपरिहार्य है । और पुरुष तो एक क्षण में घटना के बाहर हो जाता है। स्त्री को तो बच्चे को बड़ा करने में नौ महीने तो पेट में सम्हालना होता है और फिर सालों तक पेट के बाहर सम्हालना होता है। * प्रकृति एक गर्भ है। इसलिए परमात्मा लाओत्से के लिए स्त्रैण है, पुरुष जैसा नहीं। असल में, पुरुष के अहंकार ने ही परमात्मा को पुरुष का रूप दे रखा है। तो हम कहते हैं पिता- परमात्मा, गॉड दि फादर । पर वह बात सिर्फ पुरुष के अहंकार के कारण है। मौलिक रूप से परमात्मा मां की तरह ही होगा। क्योंकि अस्तित्व एक गर्भ है, और अस्तित्व के गर्भ से सब निकल रहा है। 'ब्रह्मांड का एक आदि था...।' और वही तुम्हारा आदि भी है। क्योंकि तुम और ब्रह्मांड दो नहीं हो । अस्तित्व एक है और इकट्ठा है। यहां कोई खंड-खंड बंटे नहीं हैं। वृक्ष से तुम जुड़े हो, झरने से तुम जुड़े हो, पत्थरों से, पहाड़ों से तुम जुड़े हो । अस्तित्व एक जुड़ाव है, एक जुड़ापन है। यहां कोई अलग नहीं है। क्या तुम अलग हो सकते हो ? अगर सारा अस्तित्व खो जाए तो क्या तुम हो सकते हो ? असंभव है। यहां सब चीजें साथ हैं। कल मैं बाइबिल पढ़ रहा था । और बाइबिल का उल्लेख देख कर मुझे बहुत हंसी आई कि बाइबिल में लिखा है, पहले दिन परमात्मा ने प्रकाश और अंधेरा पैदा किया और चौथे दिन सूरज-चांद-तारे पैदा किए।
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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