SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग ५ । बस भूलें ही की। तुम जहां भी चले, भटके। तुम जिसे यात्रा समझ रहे हो, वह यात्रा नहीं है, सिर्फ भटकाव रहा। तुम कहीं पहुंचे नहीं, मंजिल करीब न आई; दूर भला निकल गई हो। संत तुम्हें कहेगा, लौटो। और तुम बड़ी अकड़ से चले जा रहे थे। राह की धूल को तुम स्वर्ण समझ रहे थे। राह की धूल जम गई थी, इसको तुम अनुभव समझ रहे थे। यह तुम्हारी संपदा थी। और अचानक कोई मिल गया और उसने कहा, आंख तो खोलो! देखो तो सही! हाथ में सिवाय कंकड़-पत्थर के कुछ भी नहीं। इसलिए संसारी संत के पास जाने से डरता है। और चला जाए, भूले-भटके ही सही, किसी के संग-साथ में ही सही, उत्सुकतावश ही सही, कुतूहल के कारण ही सही, तो फिर दुबारा वही नहीं हो सकता जो जाते वक्त था। चोट थोड़ी लग ही जाएगी। दीवार उस दुर्ग की थोड़ी गिर ही जाएगी। अनुभव पर शक आ जाएगा। अपने पर संदेह पैदा हो जाएगा। सारे धर्म की प्रक्रिया यही है कि तुम्हें पहले तुम पर संदेह आ जाए; तभी तुम किसी पर श्रद्धा कर सकोगे। तुम्हें अपने पर अगर बहुत श्रद्धा बनी रहे कि तुम ठीक हो, तो तुम किसी पर श्रद्धा न कर सकोगे। और तुम अगर ठीक हो तो फिर तुम्हारा दुख, तुम्हारी पीड़ा, तुम्हारा संताप, सब ठीक है। फिर मत शोरगुल मचाओ, फिर मत कहो कि मैं दुखी हूं। तुम चाहते हो कि कोई तुमसे कहे कि दुख किसी और के कारण है। वैसे बताने वाले लोग भी हैं। इसलिए उनकी जमात बहुत बड़ी हो जाती है। आज दुनिया में करीब-करीब आधी संख्या कम्युनिस्ट है। कम्युनिज्म की अपील कहां है? इतनी बड़ी अपील किसी और विचारधारा की कभी नहीं रही। महावीर के मानने वाले लाखों में हैं। उनमें भी ठीक मानने वाले कोई नहीं हैं। लेकिन मार्क्स के मानने वाले करोड़ों में हैं। क्या कारण है? अपील कहां है? अपील यहां है कि मार्क्स कहता है, तुम्हारे दुख के लिए तुम जिम्मेवार नहीं, समाज जिम्मेवार है। यहां है सारा सार। उत्तरदायित्व तुम पर नहीं है। तुम अगर कष्ट पा रहे हो तो दूसरे लोग तुम्हारे कष्ट का कारण हैं, तुम नहीं। और महावीर, पतंजलि, लाओत्से, नानक, कबीर, वह पूरी जमात तुम्हें आकर्षित नहीं करती। क्योंकि उसके पास जाने पर वे पहली ही बात यह कहते हैं कि तुम्ही जिम्मेवार हो; यह नरक तुम्हारा बनाया हुआ है। यह बात मन को चोट करती है। यह नरक किसी और ने बनाया हो, यह बात समझ में आती है। हम क्यों अपना नरक बनाएंगे? और तुम्हारे अनुभव और तुम्हारे अहंकार और तुम्हारे सयानेपन को चोट लगती है। तुम चाहते हो कि स्वर्ग तो तुम बनाने वाले हो, नरक दूसरे बना रहे हैं। कम्युनिज्म फैलेगा। क्योंकि आदमी के आत्म-अज्ञान से उसका बड़ा जोड़ है। अज्ञानी आदमी को कम्युनिज्म में बड़ा रस है। क्योंकि अज्ञानी को कम्युनिज्म अज्ञानी नहीं कहता, शोषित कहता है। और सारे ज्ञानी कहते हैं कि तुम अज्ञानी हो, शोषित नहीं। तुम जो पीड़ा पा रहे हो, तुम्हारे ही हाथों का इंतजाम है। तुम जिन गड्ढों में गिर रहे हो, ये तुम्ही ने खोदे हैं। यह हो सकता है कल खोदे हों, पिछले जन्म में खोदे हों। तुम भूल ही गए हो कि हमने कभी खोदे थे। एक गांव में मैं मेहमान था। वहां एक हत्या हो गई। हत्या बड़ी अनूठी थी। छोटा गांव है। पहाड़ी गांव है। छोटा सा स्टेशन है। बस दिन में एक ही बार ट्रेन आती-जाती है। एक आदमी-और रात को कोई नौ बजे ट्रेन आती है-एक आदमी बहुत सा रुपया लेकर ट्रेन पकड़ने के लिए आया हुआ था। स्टेशन मास्टर को सुराग लग गया। नौ बजे ट्रेन आने वाली थी; वह तीन घंटे लेट थी। बारह बजे आएगी। स्टेशन सन्नाटा है। कोई ज्यादा लोग नहीं हैं। स्टेशन मास्टर है, एक पोर्टर है; बस ऐसा दो-तीन आदमी हैं। उन तीनों ने तैयारी कर ली इस आदमी को समाप्त कर देने की। पोर्टर को राजी कर लिया। पता भी नहीं चलेगा किसी को। और वह आदमी स्टेशन के प्लेटफार्म पर एक बेंच पर लेटा हुआ है, विश्राम कर रहा है। बारह बजे ट्रेन आएगी। रुपए का तो उसे भी भय है। पोर्टर तैयार है कि ठीक वक्त ग्यारह बजे तय कर लिया है कि वह आकर कुल्हाड़ी से इस आदमी की गर्दन काट देगा। 82
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy