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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ जैनोव की प्रक्रिया है : अगर तुम्हारे जीवन में कहीं भी कोई अड़चन है, दुविधा है, कोई रोग है, मानसिक तनाव, चिंता है, तो वह कहता है, बचपन की तरफ वापस लौटो। वह कहता है, आंख बंद करो और पीछे लौटो। ध्यान को पीछे ले जाओ। प्रतिक्रमण करो, प्रत्याहार करो। लौटो पीछे की तरफ। पहले जब तुम लौटोगे तो तुम ज्यादा नहीं लौट पाओगे, चार साल की उम्र तक लौट पाओगे। तीन साल, बहुत अगर सचेत हुए तो। फिर सब धुंधला हो जाता है, फिर कुछ याद नहीं आता, कोई स्मृति खयाल में नहीं आती। लेकिन अगर तुम रोज-रोज, रोज-रोज याद को लगाए रखो तो धीरे-धीरे अंधेरा कम होने लगता है, छोटी-छोटी स्मृतियां प्रकट होने लगती हैं। अगर तुम लौटते ही चले जाओ तो कुछ लोग सफल हो जाते हैं उस घड़ी को याद करने में जब उनका जन्म हुआ। जब वे पैदा हुए, जब मां के गर्भ से वे बाहर आए, उस तक याददाश्त पहुंच जाती है। और जैसे ही उस पर याददाश्त पहुंचती है, जैसे ही एक बार उन्होंने ठीक से याद कर लिया-इसको प्राइमल, इसको जैनोव प्राथमिक घटना कहता है। जब तुम गर्भ के बाहर आए, वहीं से संसार शुरू हुआ। वहीं से विस्तार हुआ चीजों का। बीज टूटा, अंडा फूटा, पक्षी उड़ा। अगर तुम उस क्षण में पहुंच जाओ तो उस क्षण तुम बिलकुल निर्दोष थे। न कोई बीमारी थी, न कोई तनाव था, न कोई चिंता थी। अगर तुम उस क्षण को लौट कर एक बार फिर से जान लो तो अचानक तुम अपने मूल स्वभाव को समझ लोगे कि चिंतित होना तुम्हारा स्वभाव नहीं है। चिंता दुर्घटना है, बाहर से आई है। तुम इसे लेकर न आए थे। लेकिन जैनोव का प्रयोग अभी पूरा नहीं है, अधूरा है। हिंदुओं ने, लाओत्से के अनुयायियों ने, पतंजलि ने, महावीर ने इसे और गहरा किया। वे कहते हैं कि जिस दिन तुम्हारा जन्म हुआ उस दिन भी तुम नौ महीने पुराने हो चुके थे। उस दिन भी तुम पूरे शुद्ध न थे। जन्म से गंगा काफी दूर निकल गई थी, गंगोत्री यात्रा कर चुकी थी। नौ महीने लंबा वक्त है। इसलिए महावीर तो कहते हैं कि प्रतिक्रमण तुम्हारा वहां तक जाना चाहिए जहां गर्भाधान हुआ, जहां तुम शरीर में प्रविष्ट हुए। उस क्षण तुम और भी शुद्ध थे। क्योंकि नौ महीने में भी बच्चे की स्मृतियां बन जाती हैं। अगर मां बीमार पड़ती है तो बच्चा पीड़ित होता है; स्मृति बनती है। अगर मां गिर पड़ती है, पैर फिसल जाता है गुसलखाने में, तो बच्चे को चोट लगती है, और बच्चे को स्मृति बनती है। मां प्रसन्न होती है तो स्मृति बनती है। . अगर मां गर्भवती है और तब भी पति संभोग किए जाता है तो भी बच्चे को स्मृति बनती है। इसलिए हिंदुओं ने बिलकुल वर्जित किया है कि गर्भस्थ स्त्री के साथ संभोग न किया जाए। अभी एक बहुत बड़े वैज्ञानिक ने पश्चिम में काम किया है और उसने भी हिंदुओं के साथ सहमति प्रकट की है कि जब मां गर्भवती हो तब संभोग न किया जाए। क्योंकि संभोग की घटना बच्चे के लिए घातक है, और बच्चे के चित्त में कामवासना को अभी से पैदा कर रही है। और बच्चे की निर्दोषता अभी से नष्ट हुई जा रही है। फिर तुम चिल्लाते हो कि बच्चे कामुक हैं; फिर तुम चिल्लाते हो कि बच्चे गंदे हैं, और बच्चे भटक गए हैं, और भ्रष्ट हो गए हैं। और तुम्हें पता नहीं कि तुमने उन्हें भ्रष्ट किया। जब वे बिलकुल निर्दोष थे और जब संसार का कुछ भी भीतर न प्रविष्ट किया था, जब वे अभी बिलकुल कोमल थे, तभी कामवासना का वातावरण उनके चारों तरफ इकट्ठा हुआ। और तुम्हें पता नहीं, अब तो वैज्ञानिक आधार से यह बात पुष्ट हो गई है। क्योंकि जब मां गर्भ की अवस्था में संभोग करे तो संभोग पूरे शरीर के रसायन को बदलता है। श्वास तेज हो जाती है, आक्सीजन की कमी हो जाती है शरीर में। इसीलिए तो तेजी से श्वास लेने लगते हैं संभोग करते हुए युगल; क्योंकि ज्यादा आक्सीजन की जरूरत है। जैसे दौड़ने में जरूरत है वैसे ही संभोग में जरूरत है। आक्सीजन की कमी पड़ जाती है। और बच्चा आक्सीजन मां से लेता है। जब मां को आक्सीजन की कमी पड़ जाती है तो बच्चा एकदम सफोकेटेड हो जाता है, उसको भीतर श्वास लेने की सुविधा नहीं रह जाती, उसका बिलकुल कंठ अवरुद्ध हो जाता है। वह उसके लिए बहुत संघातक है। और इसलिए यह भी हो सकता है कि अगर नौ महीने के गर्भ की मां से संभोग किया जाए तो कभी-कभी बच्चा गर्भ में 80
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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