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ताओ उपनिषद भाग ५
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खखारता नहीं चोर । तुम्हें पता है कि संन्यासी भी ध्यान करने बैठता है तो खांसी आ जाती है तो नहीं रोक पाता, लेकिन चोर को तो रोकना ही पड़ेगा। क्योंकि खांस दे तो सब बात ही खराब हो गई। कैसा सम्यक ! काम गलत है, लेकिन काम करने की जो प्रक्रिया है उसमें होश तो रखना ही पड़ेगा ।
लाओत्से को भी बड़ा प्रिय है चोर का प्रतीक । और लाओत्से कहता है, उस परमात्मा को चुराना है; चोर की तरह अंधेरे में चलना है दूसरे के घर में। यह दुनिया पूरा दूसरे का घर है, अपना यहां कुछ भी नहीं। यहां हर जगह संभावना है टकराने की, यहां हर जगह कलह, संघर्ष की। उस संघर्ष से बचना है, कलह से बचना है। यहां हर जगह संभावना है भटक जाने की, क्योंकि अंधेरा है घना । उस भटकाव से बचना है, और एक ऐसे ढंग से चलना है कि अंधेरे में भी दिखाई पड़ने लगे। चोर को धीरे-धीरे अंधेरे में दिखाई पड़ने लगता है।
तुम भी अगर अंधेरे में थोड़े दिन बैठ कर शांत देखने की कोशिश करो तो तुम पाओगे, जैसे-जैसे तुम्हारी कोशिश गहन होती है वैसे-वैसे तुम्हें हलकी हलकी प्रतीति होने लगती है। क्योंकि कोई अंधकार अंधकार नहीं है; सभी अंधकार प्रकाश के रूप हैं। जिसको हम अंधकार कहते हैं उसको अगर हम ठीक से कहें, वैज्ञानिक भाषा में कहें, आइंस्टीन से पूछ कर कहें, तो हम कहेंगे, वह कम प्रकाश है। सापेक्ष। अंधकार कहना उचित नहीं है; थोड़ा
प्रकाश । क्योंकि उस अंधेरे में भी बिल्ली देखती है। बिल्ली की आंखें ज्यादा सचेत हैं। अगर तुम कभी बिल्ली की आंखों में देखो तो तुम्हें बहुत बेचैनी मालूम पड़ेगी। इसीलिए तो बिल्ली शैतान का प्रतीक हो गई। बहुत सचेत है। और इसीलिए तो बिल्ली को, जो लोग भी काली विद्याओं में यात्रा करते हैं, बिल्ली उनकी साथी हो गई। अंधेरे में देख सकती है, यह उसकी बड़ी गहन कला है।
और बिल्ली को तुमने कभी चलते देखा ? बस चोर भी वैसे ही चलता है। जब बिल्ली चूहे को पकड़ने जाती है तब उसे देखो, चोर भी वैसे ही चलता है, आवाज भी नहीं होती। और जब चोर संपत्ति के करीब पहुंचता है, दूसरे की संपत्ति के, तब वह वैसी ही हालत में सजग होता है जैसे बिल्ली चूहे के छेद के पास बैठी रहती है। जरा भी पता नहीं चलता कि वह है । हलकी थिरकन भी नहीं करती, लेकिन तैयार ऐसी कि ओलंपिक में दौड़ने के लिए जो प्रतियोगी खड़े होते हैं वे भी इतने तैयार नहीं। चूहा निकला नहीं कि वह झपटी नहीं, लेकिन झपट में भी आवाज नहीं होती। दूसरे चूहों को भी पता नहीं चल पाता कि एक चूहा पकड़ा गया है, नहीं तो वे निकलना बंद कर देंगे।
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बिल्ली की नींद तुमने देखी ? गहन निद्रा में लीन होती है; हो सकता है कोई गहरा सपना देख रही हो; मूंछों को चाटती है, हो सकता है सपने में चूहा खा रही हो; बड़ी गहरी नींद में लीन है। लेकिन जरा सी खटक, चूहे का चलना-हिलना, आंख खुल गई। योगी की निद्रा बिल्ली जैसी होनी चाहिए। और बिल्ली चोरों में चोर है। बिल्ली, जानवरों में वैसा कोई दूसरा चोर नहीं जैसा बिल्ली । चुरा कर ही जीती है; सारा धंधा ही चोरी का है।
स्मरण रहे कि सारा संसार पराया है, दूसरे का घर है । सब तरफ अंधेरा है। लेकिन अगर तुम थोड़ी अपनी दृष्टि को जमाना सीख जाओ - और दृष्टि के जमाने के अतिरिक्त ध्यान क्या है— अगर तुम्हारी दृष्टि थोड़ी थिर होने लगे, तो यह अंधकार धीरे-धीरे - धीरे-धीरे कम अंधकार होता जाता है और इसमें प्रकाश का आविर्भाव हो जाता है। और एक घड़ी ऐसी आती है कि जब तुम्हारा ध्यान पूरी तरह थिर हो जाता है तो अंधकार बचता ही नहीं । तुम्हारे भीतर का दीया जल उठता है; उस दीए की रोशनी चारों तरफ पड़ने लगती है। और जब तक तुम ऐसी अंतर - ज्योति को उपलब्ध न हो जाओ तब तक परमात्मा की चोरी नहीं हो सकती। इसलिए चोर का प्रतीक है।
दूसरी बात सूत्र के पहले। तुमने कहावत सुनी है कि वृक्ष को जानना हो तो फल से जाना जाता है। हम सभी कहते हैं कि बेटे से बाप की परख हो जाती है। लेकिन लाओत्से ठीक उलटी बात कहता है। वह कहता है, फल को जानना हो तो वृक्ष से जाना जाता है, और बेटे को जानना हो तो बाप को या मां को पहचानना जरूरी है।