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________________ पुनः अपने मूल स्रोत से जुड़ो तुमने कभी देखा नहीं, तुमने कभी सोचा भी नहीं; चोर को तुमने कभी उसकी पूरी महिमा भी नहीं दी, तुम सिर्फ निंदा ही करते रहे हो। अपने ही घर में तुम चलते हो तो टेबल-कुर्सी से टकरा जाते हो-दिन के उजाले में। हाथ से बर्तन छूट जाता है—दिन के उजाले में, भरे होश में। चोर दूसरे के घर में चलता है, जहां के रास्ते उसे पता नहीं, कमरों के द्वार पता नहीं। रात के अंधेरे में चलता है, जरा भी आवाज नहीं होती, आहट नहीं होती; कोई चीज टकराती नहीं। दीवारें तोड़ लेता है, और घर के लोग मजे से घुर्राते रहते हैं, सोये रहते हैं—प्रगाढ़ निद्रा में। बिना रोशनी जलाए खजाने खोज लेता है। तुमने खुद भी गड़ाया हो अपना खजाना तो भी खोदने में बड़ा शोरगुल मचेगा; उसने गड़ाया भी नहीं है। दूसरे के मन और दूसरे की चेतना के नियमों को समझ कर, कहां गड़ाया गया होगा, कैसे गड़ाया गया होगा, चुपचाप सब निबटा लेता है। तुम सोए ही रहते हो, और चोरी हो जाती है। चोर को बड़ी सजगता रखनी पड़ती है, बड़ा होश रखना पड़ता है। जिसको अवेयरनेस, सम्यक बोध कहा है, वह चोर को रखना पड़ता है। ऐसा हुआ एक बार कि एक चोर एक झेन फकीर के पास गया। झेन फकीर बड़ा प्रसिद्ध फकीर था, लिंची। और चोर ने कहा कि मुझे ध्यान सिखाएं। लिंची को पता भी नहीं कि वह कौन है। लेकिन लिंची ने कहा, ध्यान? ध्यान तू जानता है; तेरी हवा में ध्यान है। तुझे देख कर लगता है, तू मुझे धोखा देने की कोशिश मत कर, तूने ध्यान पहले सीखा है। उस आदमी ने कहा कि आप भ्रांति में पड़ गए हैं और आपको मैं गलत कहूं, यह उचित नहीं। लेकिन ध्यान से मेरा क्या नाता? आप मुझे जानते नहीं हैं; ध्यान मैंने कभी नहीं किया। लिंची विचार में पड़ गया। उसने आंखें बंद की, बहुत खोजा। उसने कहा कि तूने जरूर कुछ न कुछ किया है। तू तलवार चलाना जानता है? क्योंकि झेन फकीर तलवार के माध्यम से भी ध्यान करवाते हैं। तलवार का खेल ध्यान का खेल है। क्योंकि रत्ती तुम चूके होश कि गए। दूसरा तलवार उठाए, इसके पहले बचाव हो जाना चाहिए। दूसरा वार करे, इसके पहले तैयारी हो जानी चाहिए। बड़ी सजगता चाहिए। और जरा सा फासला नहीं है समय का, तलवार सामने खड़ी है। तो तलवार के माध्यम से ध्यान का जापान में बड़ा प्रयोग किया गया है। तो तू तलवार चलाना जानता है? नहीं, मेरा काम ऐसा नहीं, उसमें तलवार की जरूरत नहीं। मेरा कोई नाता नहीं है। तो तू क्या करता है? लिंची ने पूछा फिर; क्योंकि मैं यह समझ ही नहीं पा रहा हूं। और मेरी भूल कभी नहीं हुई आज तक जीवन में। मैं भलीभांति पहचान सकता हूं कि ध्यान की आभा क्या है। और तेरे चारों तरफ ध्यान का मंडल है। वह आदमी रोने लगा। उसने कहा कि जरूर कोई भूल हो रही है; जीवन भर न किए हों, लेकिन इस बार हो रही है। मैं एक साधारण चोर हूं। अब मत वह बात उठाएं, उससे मन में ग्लानि उठती है। लिंची हंसने लगा। उसने कहा, बात साफ हो गई; मैं गलती में नहीं हूं। क्योंकि चोर को ध्यान तो साधना ही पड़ता है। पर तू साधारण चोर नहीं है, मास्टर थीफ। तू बड़ा असाधारण, असाधारण चोर है। और तू मुझसे क्या सीखने आया है? जो तूने चोरी में जाना है उसको ही तू जीवन में उतार ले। जितनी सजगता से तूने चोरी की है उतनी सजगता से और काम भी कर। बस, हल हो जाएगा। सूत्र तुझे मिल गया है; तुझे खबर नहीं है। तेरे पास क्या है उसका तुझे पता नहीं है। जितनी सजगता से दूसरे के घर रात के अंधेरे में पैर उठाता था, श्वास लेता था...। श्वास भी चोर जोर से नहीं ले सकता दूसरे के घर में; उसको प्राणायाम साधना होता है। और तुम जानते हो, जब भी तुम कभी ऐसा कोई काम कर रहे हो जिसमें घबड़ाहट होती है तो श्वास ज्यादा हो जाती है। और चोर को श्वास साधनी पड़ती है कि वह ज्यादा न हो जाए, एक लयबद्धता रहे। श्वास का भी पता न चले। खांसता नहीं चोर, 77
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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