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ताओ उपनिषद भाग ५
लगे, और कोई संपदा हाथ न लगे। चोर जैसे ही हिम्मतवर लोगों का काम है। दूसरे के घर में ऐसे चलना है जैसे अपना हो-रात अंधेरे में। यह संसार दूसरे का घर है, जुनैद ने कहा, यह अपना घर नहीं है। और यहां हिम्मत बनाए रखनी है। और अंधेरा हताशा न बन जाए, असफलता गहरी न बैठ पाए। आशा को जगाए रखना है-आज नहीं तो कल होगा; कल नहीं तो परसों होगा; होकर रहेगा। यह बात कभी टूटे न मन से, यह धागा कभी छूटे न। तो उस चोर ने ही मुझे बचाया। उस दिन तो मैंने तय कर लिया था ः लौट जाऊं संसार में वापस।
लाओत्से को भी चोरी शब्द बड़ा प्रिय है। हिंदुओं ने भी, जिन्होंने भी खोज की है कभी, चोरी शब्द का कहीं न कहीं प्रयोग किया है। हिंदुओं ने तो परमात्मा का एक नाम, हरि, चोरी के कारण ही चुना है। हरि का मतलब है जो हर ले, चुरा ले। हरि का मतलब है चोर, परम चोर। उसने तुम्हें चुरा लिया है। और जब तक तुम उसे न चुरा लो तब तक यात्रा अधूरी है। जैसे उसने तुम्हें चुरा लिया है, जैसे उसने एक दांव खेला है, ऐसा ही तुम्हें भी जवाब देना है। तुम जब तक उसे न चुरा लोगे तब तक तुम हारी बाजी हो। इसलिए हिंदू परमात्मा को हरि कहते हैं।
लाओत्से कहता है, उस परम सत्य को भी चुराना है। क्यों चुराना है? क्योंकि है तो वह हमारे हृदय का हृदय, लेकिन हमसे बहुत दूर पड़ गया है। अपना ही है, लेकिन इतना पराया हो गया है कि अब उसे पाने की कोशिश चोरी ही कही जाएगी। तुमने ही उसे इतना पराया कर दिया है, इतना दूर कर दिया है। अपनी ही संपदा है, लेकिन फासला तुमने इतना कर लिया है कि अब उसे भी पाने के लिए तुम्हें करीब-करीब चोर की हालत से गुजरना पड़ेगा। तुम उसे पूरा गंवा चुके हो, तुम उसे पूरा खो चुके हो। अब फिर से पाने जाओगे। तुम्हारा कोई दावा नहीं रह गया है; तुम्हारी मालकियत कभी की समाप्त हो गई है। तभी तो तुम भिखारी की तरह भटक रहे हो। यह भिखारी अब सम्राट फिर बनना चाहे तो करीब-करीब चोरी की हालत है। क्योंकि साम्राज्य तो कभी का उसका नहीं रहा है। न मालूम अतीत के किन क्षणों में, किन जन्मों में, तुम उसे गंवा दिए हो। फिर से पाना है, फिर से दावा करना है। वह दावा चोर जैसा ही दावा है। और चोर जैसा ही प्रयास है। अंधेरे में टटोलना है; रोशनी अभी है नहीं। रोशनी को धीरे-धीरे निर्मित करना है। और दूसरों को पता न लगे। क्योंकि दूसरों को पता लग जाए तो भी बाधा पड़ जाती है। इसलिए चोरी जैसा है। .
सूफी कहते हैं कि तुम जब प्रार्थना करो तो रात के गहन अंधकार में, जब तुम्हारे बच्चे और तुम्हारी पत्नी भी सो गई हो तब करना। क्यों? क्योंकि किसी को पता चल जाए कि तुम प्रार्थना कर रहे हो, इससे हर्जा नहीं है; लेकिन किसी को यह पता चल जाए कि तुम प्रार्थना कर रहे हो, इससे तुम्हें रस पैदा होता है और तुम्हारा अहंकार निर्मित होता है। तब तुम, किसी को पता चले, इसीलिए प्रार्थना करने लगते हो। तब परमात्मा की खोज तो दूर रह जाती है, प्रार्थना भी अहंकार की पुष्टि बन जाती है। लोग जानें कि तुम साधक हो, लोग जानें कि तुम खोजी हो, लोग जानें कि तुम परमात्मा की यात्रा पर निकले हो—यह जो तुम्हारी चेष्टा है, यह चेष्टा ही बाधा बन जाएगी।
जीसस ने कहा है, तुम बाएं हाथ से दो तो तुम्हारे दाएं हाथ को खबर न लगे। तुम दान करो तो पता न चले, तुम पुण्य करो तो पता न चले; तुम्हीं को पता न चले, कानों-कान खबर न हो। देना और भूल जाना।
सूफी कहते हैं, नेकी कर और कुएं में डाल। अच्छा किया और कुएं में डाल दिया। उसको घर मत ले आना। उसको हृदय में मत रख लेना कि मैंने अच्छा किया, कि मैंने पूजा की, कि प्रार्थना की, कि पुण्य किया, कि दान किया, सेवा की। अगर तुम्हारा कर्ता आ गया तो तुमने गंवा दिया; पाया कुछ भी नहीं। तो दूसरे को पता न चले। क्योंकि दूसरे की आंखों में अपनी झलक देख कर तुम्हारा अहंकार बड़ा होता है।
चोरी का काम है, चुपचाप निबटा लेना है। कानों-कान खबर न हो। जब सब सोए हों और सब सोए हैं-तब किसी की नींद न टूटे, ऐसे चुपचाप निबटा लेना है काम को। इसलिए चोरी जैसा कृत्य है, और बड़ा सम्हल कर करना होगा। चोर को बड़े सम्हल कर चलना पड़ता है।
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