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________________ 75 লা ओत्से को चोरी का प्रतीक बहुत प्रिय है। इस प्रतीक को थोड़ा हम समझ लें, फिर सूत्र में प्रवेश करें। सूफी फकीर हुआ जुनैद । वह एक गांव से गुजरता था । और गांव के काजी ने एक चोर को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। गांव का काजी जुनैद का भक्त था। खबर सुन कर जुन्नैद अदालत गया और काजी से बड़ी प्रार्थना की कि इस आदमी को छोड़ दो; कितना ही बड़ा पाप हो, लेकिन पूरा जीवन इसका नष्ट न करो। और अभी यह जवान है, शायद सुधर जाए। काजी ने चोर को क्षमा कर दिया। चोर को अदालत के बाहर लेकर जुनैद निकला और उस चोर से कहा कि अब बहुत हो गया, अब सम्हलो, अब चोरी बंद करो। और जीवन बचाया है तो इसीलिए मैंने कि तुम्हारे जीवन में अब प्रार्थना और परमात्मा का जन्म हो। उस चोर ने कहा, क्यों करूं बंद चोरी ? एक बार असफल हुए तो क्या सदा असफल होते रहेंगे? और जीवन मिला है तो एक बार प्रयास करना और जरूरी है। वे दिन जुन्नैद के जीवन में बड़ी कठिनाई के दिन थे । और वह बड़े संकट से गुजर रहा था। वर्षों से खोज रहा था परमात्मा को, और उस सुबह ही उसने यह तय किया था कि अब बहुत हो गया; नहीं मिलता, होगा ही नहीं । चोर की यह बात सुन कर जुनैद आंख बंद करके वहीं बीच रास्ते पर खड़ा हो गया और उसने सोचा, एक चोर भी कहता है कि जीवन मिला है तो एक प्रयास और। अब तक असफल हुए, लेकिन आगे भी होंगे इसका क्या पक्का है ! सफलता संभव है। भविष्य सदा खुला है। मौके का और उपयोग कर लेना जरूरी है। जुनैद ने आंखें खोलीं, चोर को कहा, धन्यवाद ! और अपने रास्ते पर चलने लगा। चोर ने कहा, रुको! किस बात का धन्यवाद ? जुन्नैद ने कहा, मैं भी उस घड़ी में आ गया था, जहां हताशा मन को पकड़ ली थी। और सोचता था, छोड़ दूं यह प्रयास; न कोई परमात्मा है, न कोई मोक्ष । बहुत हो गया । खोज लिया बहुत कुछ हाथ न आया। संसार भी गंवा रहा हूं, शक्ति भी खो रहा हूं, जीवन हाथ से जा रहा है, और उसकी कोई खबर नहीं मिलती। लेकिन तूने मेरी हिम्मत जगा दी। और जब एक चोर भी चोरी छोड़ने को राजी नहीं है, क्योंकि एक अवसर और मिला है, इसका उपयोग करना चाहता है, तो अभी मेरे पास भी जीवन है और मैं भी तब तक उपयोग करूंगा जब तक कि आखिरी क्षण बचता है। तू मेरा गुरु है। धन्यवाद ! जब जुन्नैद ज्ञान को उपलब्ध हुआ कोई बीस वर्ष बाद इस घटना के तो उसके शिष्यों ने पूछा, कौन है तुम्हारा गुरु? किसकी कृपा से ? तो उसने उस चोर का स्मरण किया । और जुन्नैद ने कहा, परमात्मा को पाना भी चोरी है। और चोर की तरह ही सतत हिम्मत चाहिए - अंधेरे में चलने की, अंधेरी रात में यात्रा करने की । खतरा वहां चोर जैसा ही है। मिले न मिले, कुछ पक्का नहीं है। जीवन खो जाए और न मिले। आजीवन कारावास हो जाए, फांसी
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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