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ताओ या धर्म पारनैतिक हैं
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इसलिए लाओत्से कहता है, ध्यान रखना, 'यह उन्हें जन्म देता है, पर उन पर स्वामित्व नहीं करता । यह सहायता करता है, पर उन्हें अधिकृत नहीं करता ।'
सहायता पूरी मिलेगी, लेकिन तुम्हारी मालकियत को जरा भी न छुआ जाएगा। तुम्हारी स्वतंत्रता पर कोई बाधा न डाली जाएगी। तुम चाहो तो लौट सकते हो विपरीत, तुम्हें हाथ पकड़ कर प्रकाश भीतर का रोकेगा नहीं कि मत कुछ भी कहेगा ।
'श्रेष्ठ है...।'
यह भीतर की जो प्रतीति है, परम श्रेष्ठ है।
'पर नियंत्रण नहीं करता ।'
तुम्हें कंट्रोल नहीं करेगा।
'यही है रहस्यमय सदगुण ।'
सदगुण का जन्म स्वभाव में; चरित्र में पालन, और बिना किसी आग्रह के, न कोई दंड, न कोई पुरस्कार । वहां कोई पावलफ नहीं है, कोई कनफ्यूशियस नहीं है। वहां पावलफ और कनफ्यूशियस पहुंच ही नहीं पाए। और इसीलिए तो कनफ्यूशियस घबड़ा गया लाओत्से से मिल कर, डर गया। क्योंकि वह तो नीति-नियम वाला आदमी है, मर्यादा वाला आदमी है। और ये बातें तो बड़ी खतरनाक हैं कि भीतर से लो अपना आदेश; मत सुनो शास्त्र की, मत सुनो परंपरा की, मत सुनो समाज की सुनो अपने भीतर के स्वर की ।
कनफ्यूशियस डर गया, क्योंकि उसने कभी भीतर का स्वर सुना नहीं। वह तो एक ही बात जानता है कि अगर बाहर से नियंत्रण न किया गया तो आदमी पशु हो जाएगा। आदमी आदमी बनाया है बाहर के सहारे लगा कर । तुम्हें कितनी बैसाखियां लगी हैं चारों तरफ से; उसी से तुम आदमी हो। ऐसा कनफ्यूशियस का खयाल है । और सब तरफ से हथकड़ी डाली है, इसलिए तुम आदमी हो। अगर तुम्हारी जरा हथकड़ी छोड़ दी तो तुम खतरनाक हो । और लाओत्से कहता है, परम स्वतंत्रता, यही सदगुण की रहस्यमयता है।
जब कनफ्यूशियस वापस लौटा, उसके शिष्यों ने पूछा, क्या हुआ? तो कनफ्यूशियस ने कहा, भूल कर इस आदमी के पास मत जाना। तुमने जंगली जानवर देखे होंगे, लेकिन उनमें इतना खतरा नहीं है। शेर, सिंह कोई इतने खतरनाक नहीं हैं। चीन में एक आकाश में उड़ने वाले अजगर की पुराणकथा है, जो कहीं पाया नहीं जाता, सिर्फ पौराणिक है। तो कनफ्यूशियस ने कहा, इस आदमी के संबंध में सोचता हूं तो ऐसा लगता है, यही है वह आकाश में उड़ने वाला अजगर । तुम इसकी छाया से बचना क्योंकि यह आदमी जगत में अराजकता ला देगा।
लेकिन मैं तुमसे कहता हूं, यही आदमी जगत में व्यवस्था ला सकता है। और अब तक नहीं सुनी गई है इसकी बात, इसलिए जगत में अराजकता है। कनफ्यूशियस की काफी सुन ली गई । नियंत्रण बहुत किया जा चुका और आदमी के जीवन में कोई क्रांति नहीं घटती, कोई रोशनी नहीं आती, कोई आनंद नहीं प्रकट होता, और आदमी वहीं के वहीं बना रहता है जहां था ।
लेकिन इसका अनुशासन दूसरे तरह का है। ऊपर से कोई देखेगा तो डरेगा। इसका अनुशासन ध्यान का अनुशासन है, चरित्र का नहीं। इसका अनुशासन भीतर से जन्मता है और बाहर की तरफ फैलता है। जैसे हम एक पत्थर फेंकते हैं झील में, लहरें पैदा होती हैं पत्थर के पास, और फैलती चली जाती हैं। ऐसे ही तुम जब अपने को भीतर की चेतना में फेंकोगे — वही ध्यान है— तब उस झील में, भीतर की झील में, जो तुम्हारे चारों तरफ फैली है और तुम्हारे भीतर भी छिपी है, जिसका नाम परमात्मा है, उस झील में लहरें उठेंगी अनंत और वे तुम्हारे चारों तरफ फैलती जाएंगी। वह तुम्हारा चरित्र है।