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ताओ उपनिषद भाग ५
फिर एक तीसरी अवस्था है, यह भी काफी नहीं है: जब वह व्यक्ति स्वयं हिम का शिखर हो गया। एक सत्य की झलक, दूसरा सत्य का अनुभव, और तीसरा सत्य के साथ एक हो जाना। बस तीसरे को लक्ष्य रखना। उसके बाद फिर लौटना नहीं है। क्योंकि कोई बचा नहीं जो लौट सके। सीढ़ी गिर गई; सीढ़ी पर चढ़ने वाला ही खो गया। यह प्वाइंट ऑफ नो रिटर्न है; अब यहां से कोई वापस नहीं लौटता।
ध्यान में पहले झलक मिलती है स्वभाव की। उस स्वभाव को तुम काफी मत समझ लेना। बहुत वहां रुक जाते हैं। समझ लेते हैं मंजिल आ गई; पड़ाव बना लेते हैं; वहीं डेरा-डंगर डाल देते हैं। वह काफी नहीं है। सुखद है, उसका स्वाद लेना। और उसे आचरण में ढालना। अगर स्वभाव में उतर कर प्रेम की झलक मिली हो तो अब आचरण में प्रेम को लाना। अगर स्वभाव में शांति की झलक मिली हो तो अब आचरण में शांति को लाना। उठते-बैठते, बाजार में, दुकान पर काम करते भी उस शांति को सम्हालना। वह खो न जाए। वह तुम्हारा कृत्य भी बने, तो मजबूत होगा। अगर तुमने, जो तुमने झलक देखी, उसको आचरण बना लिया तो तुम दूसरी घटना के लिए तैयार हो गए। तुम अब सत्य का पूरा अनुभव कर सकोगे।
और जब सत्य का तुम्हें अनुभव होगा तब सत्य के अनुभव के कुछ अलग गुण हैं : करुणा, अहोभाव, एक सदा अकारण आनंदित रहना, एक्सटैसी। अब उसको आचरण में लाना। सदा आनंदित रहना। चाहे अच्छा हो चाहे बुरा, चाहे हानि हो चाहे लाभ, चाहे सफलता चाहे असफलता, तुम्हारा आनंद खंडित न हो। जब तुम्हारे आचरण में आनंद प्रगाढ़ हो जाएगा, करुणा सघन हो जाएगी, तब तुम तीसरे के योग्य हो जाओगे। और जब तीसरे के कोई योग्य हो जाता है तो उसके आचरण को ही हम ब्रह्मचर्य कहते हैं।
ब्रह्मचर्य का अर्थ है : ब्रह्म जैसा आचरण, ब्रह्म जैसी चर्या। ब्रह्मचर्य का अर्थ सेलीबेसी से जरा भी नहीं है। वह तो उसका एक अंग मात्र है, छोटा सा, क्षुद्र अंग है। क्योंकि उसके जीवन से वासना खो जाती है, कामवासना खो जाती है। और उसका सारा जीवन ब्रह्मचर्य, ब्रह्म जैसी चर्या का हो जाता है। वह इस पृथ्वी पर एक ईश्वर जैसा है-एक बुद्ध, कृष्ण, क्राइस्ट। वह एक अवतार है, तीर्थंकर है। वह परमात्मा है। अब उसके व्यवहार में सारी. मनुष्यता खो गई। वह आखिरी शिखर है। जब तुम गौरीशंकर ही हो गए। अब कोई लौटना न हो सकेगा।
'यह उन्हें जन्म देता है, और उन पर स्वामित्व नहीं करता।'
ये भीतर के कुछ गुप्त रहस्य, जो साधक के लिए परम उपयोगी हैं। जन्म तो ताओ से होता है, स्वभाव से होता है, लेकिन उन पर स्वामित्व नहीं करता, मालकियत नहीं करता। और इसलिए कई बार तुम चूक जा सकते हो। क्योंकि भीतर तुम जो भी पाओगे, अगर तुमने न सम्हाला, तो जहां से पैदा हुआ है वह स्रोत आग्रह नहीं करेगा सम्हालने का। वह तुम्हें दबाएगा नहीं कि करो ऐसा। कोई दबाव नहीं है भीतर। स्वभाव परम स्वतंत्रता है। वह तुम्हें दिखाएगा, लेकिन कोड़ा नहीं उठाएगा कि चलो! इशारा करेगा, लेकिन इशारा परोक्ष होगा। समझा तो समझा, नहीं तो चूक गए। सीधे-सीधे आज्ञा नहीं देगा। क्योंकि सीधी आज्ञा हिंसा है। और स्वभाव में कोई हिंसा नहीं हो सकती। वह तुम्हें भला बनाने की कोशिश भी नहीं करेगा, क्योंकि सब कोशिश जबरदस्ती है। भला बनाने की कोशिश भी जबरदस्ती है। इसलिए अगर तुम न सम्हले तो तुम्हारे हाथ में है बात।
स्वभाव से रोशनी मिलेगी; रोशनी लेकर चलना तुम्हें है। जहां भी तुम चलोगे, रोशनी तुम्हें प्रकट कर देगी। लेकिन रोशनी यह न कहेगी कि अंधेरे में मत जाओ, गलत जगह पर मत जाओ, सांप-बिच्छू हैं वहां मत जाओ। रोशनी कुछ न कहेगी। रोशनी तो तुम जहां जाओगे वहीं जो भी है प्रकट कर देगी। रोशनी आदेश नहीं है। और तुम्हारी अगर सारी जिंदगी आदेश पर बनी हो, कि तुम सदा सुनते रहे हो कि कोई बताए, यह करो, यह मत करो, तो तुम बड़ी मुश्किल में पड़ोगे। तो तुम चूक ही जाओगे।
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