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ताओ उपनिषद भाग ५
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ताओ है झील, तेह है उसमें उठी लहरें । तुम ध्यान में गहरे जाना । जितने गहरे जाओगे उतना ही एक नया अनुशासन पैदा होगा जो तुम्हारे भीतर से ही आता है। और न तो उसमें कोई नियंत्रण है, न कोई कारागृह है, न कोई दंड है, न कोई स्वर्ग-नरक का भय और प्रलोभन है । और उस सदगुण की पूजा सहज ही शुरू हो जाती है। ऐसा स्वभाव है। ऐसा किसी की आज्ञा से नहीं होता, ऐसा अपने आप होता है।
आज इतना ही ।