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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ नकली की पूजा ही इसलिए होती है कि असली में कोई पूजा है। नकली धोखा क्यों दे पाता है? क्योंकि वह असली की नकल कर रहा है, वह काफी दूर तक असली का ढंग जाहिर कर रहा है। इसीलिए तो तुम पूजा करते हो। चोर भी, बेईमान भी ईमानदारी का सहारा लेता है। और तुम्हें झूठ भी बोलना हो तो तुम्हें सच बोलने का आभास पैदा करना पड़ता है। बेईमान को भी पहले ईमानदारी की हवा अपने चारों तरफ पैदा करनी पड़ती है। अगर तुम्हें किसी आदमी को धोखा देना हो तो तुम उससे एक रुपया उधार मांगते हो, लौटा देते हो; भरोसा आ गया। दस रुपया मांगते हो, लौटा देते हो; भरोसा और बढ़ गया। फिर हजार रुपए लेकर चंपत हो जाते हो। अगर ठीक से समझो तो हुआ क्या? तुम्हें बेईमानी भी करनी हो तो भी तुम्हें ईमानदारी करनी पड़ती है। बेईमानी के पास अपने पैर नहीं हैं, ईमानदारी के पैर उधार लेने पड़ते हैं। झूठ के पास अपना प्राण नहीं है, उसे भी सच का प्राण ही लेना पड़ता है। इससे सिर्फ एक ही बात पता चलती है कि सत्य के प्रति कोई सहज पूजा है और ईमानदारी के प्रति कोई सहज आकर्षण है। तभी तो बेईमान भी लाभ उठा लेता है। 'संसार की सभी चीजें ताओ की पूजा करती हैं, तेह की प्रशंसा। ताओ पूजित है, तेह प्रशंसित।' धर्म की पूजा है, चरित्र की प्रशंसा। 'और ऐसा अपने आप है, किसी के हुक्म से नहीं।' यह थोड़ा समझ लेने जैसा है। ऐसा अपने आप है, ऐसा कोई करवा नहीं रहा है। शास्त्रों में कहा है, गुरु का समादर। मैं एक विश्वविद्यालय में मेहमान था। और वहां विश्वविद्यालय के अध्यापकों की एक छोटी गोष्ठी थी। और जैसा कि अध्यापकों को सारे संसार में एक ही चिंता है अब कि विद्यार्थियों में उनका सम्मान खो गया है, उनको भी चिंता थी। वह बात उठ गई कि ऐसा क्यों हो रहा है कि विद्यार्थी क्यों पूजा नहीं देते? क्यों आदर नहीं देते? और भारत जैसे मुल्क में, जहां कि हजारों साल की परंपरा है गुरु को भगवान मानने की! तो वे सभी दोष दे रहे थे कि कुछ दोष वर्तमान समय का, परिस्थितियों का; विद्यार्थियों का चरित्र हीन हो गया। लेकिन, मैं सुनता रहा और हैरान हुआ, किसी ने भी यह न कहा कि अब गुरु गुरु जैसा नहीं है। शास्त्र में जो कहा है कि गुरु को पूजा मिलती है, वह कोई आदेश थोड़े ही है। जब भी कोई गुरु होता है तो पूजा मिलती ही है। जब न मिलती हो तो समझ लेना चाहिए गुरु वहां नहीं है। यह सीधी सी बात है। इसमें कुछ अड़चन नहीं है। इसमें हजार कारण खोजने की कोई जरूरत नहीं है। शिक्षक कोई गुरु नहीं है। वह शिक्षा का धंधा कर रहा है। वह वैसे ही दुकानदार है जैसे और दुकानदार हैं। वह कुछ बेच रहा है। ठीक है। और लोग पैसा देकर ले रहे हैं। खत्म हो गई बात। अब आदर का और क्या सवाल है? विद्यार्थी फीस चुका रहा है, शिक्षक पढ़ा रहा है। कोई आंतरिक नाता नहीं है। गुरु है नहीं वहां, इसलिए श्रद्धा उठती नहीं। जब कहीं गुरु हो, श्रद्धा अपने आप उठती है। जैसे पतिंगा जाता है प्रकाश की तरफ भागा हुआ ऐसे ही गुरु की तरफ श्रद्धा जाती है भागी हुई। ऐसा अपने आप है। यह स्वभाव का गुणधर्म है। जैसे सौंदर्य की तरफ वासना जगती है; कोई जगाता है? कोई आज्ञा देता है? कोई प्रेसिडेंट को अधिनियम बनाना पड़ता है? राष्ट्रपति को घोषणा करनी पड़ती है कि अब आज से पक्का कर दिया गया कि जब भी कोई सुंदर व्यक्ति को देखे तो वासना से भर जाए, और जो न भरेगा वह दंडित किया जाएगा। कोई जरूरत नहीं है। ऐसा अपने आप है कि सुंदर की तरफ मन आकर्षित होता है। तुम कितना ही दबाओ, तुम कितना ही आंख छिपाओ, तुम्हारे आंख छिपाने में भी इसी बात का पता चलता है। तुम कितनी ही आंख बंद करो, आंख बंद करने में उसी की ही खबर मिलती है। सौंदर्य की तरफ वासना दौड़ती है; सत्य की तरफ श्रद्धा दौड़ती 68
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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