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________________ ताओ या धर्म पारबतिक हैं परमात्मा ने कहा, तू घबड़ा मत। मैं बुद्ध को पैदा करूंगा। वह अवतारी पुरुष होगा, लेकिन गलत बातें लोगों को समझाएगा; लोगों को भ्रष्ट कर देगा। जब लोग भ्रष्ट हो जाएंगे, अपने आप नरक आने लगेंगे। तू घबड़ा मत। हिंदू ज्यादा कुशल हैं, ज्यादा चालाक हैं। सूली न दी, तरकीब लगाई। बुद्ध को मान भी लिया, क्योंकि बुद्ध मानने जैसे थे। तो अवतार भी स्वीकार कर लिया; कहा कि दसवां अवतार हैं। लेकिन भ्रष्ट करने को पैदा हुए हैं। इसलिए स्वीकार मत करना, बचना। और इसका परिणाम इतना घातक हुआ कि बुद्ध और बुद्ध का विचार भारत से तिरोहित हो गया। पूरा एशिया डूब गया बुद्ध के प्रेम में, सिर्फ भारत वंचित रह गया। बादल यहां पैदा हुआ; बरसा कहीं और। हमारे खेत सूखे पड़े रह गए। होने का कारण है। और कारण यह है कि जिस धर्म में कोई तीर्थंकर, कोई बुद्ध, कोई क्राइस्ट पैदा होता है, उस धर्म की अपनी मान्यता होती है। उस मान्यता से वह मेल नहीं खाता, क्योंकि हर तीर्थंकर नए कोंपल की तरह नया है, नई दूब की ओस की तरह नया है। उसका नयापन अप्रतिम है, आत्यंतिक है। वह बासा और पुराना नहीं है। उसे वर्तमान परिस्थितियां पूर्ण बनाती हैं। वह बिलकुल नया फूल है जो पहले कभी नहीं खिला था। सदगुण एक फूल है। जब तुममें खिलता है तो न तो शास्त्रों में उसका उल्लेख है, न समाज की परंपराओं में उसका पता है। तुम एक बिलकुल नए फूल की तरह खिलते हो। वह सदा नया है, कुंआरा है। सदगुण सदा कुंआरा है; नीति सदा बासी है। क्योंकि नीति दूसरे लोगों ने सिखाई है, और सदगुण तुम्हारे भीतर आविर्भूत होता है। नीति ऐसी है जैसे तुम किसी बच्चे को गोदी ले लो। कितना ही लाड़-प्यार करो, कितना ही अपने को समझाओ कि अपना है, लेकिन हर समझाने में ही पता चलता रहता है कि अपना नहीं है। और फिर एक बच्चा तुम्हारे घर पैदा होता है, तुम्हारी ही कोख से जन्मता है, तुम्हारी ही मांस-मज्जा को लेकर आता है। तब बात और हो जाती है। समझाने की कोई जरूरत नहीं रहती। नीति गोद लिए गए बच्चे की भांति है, और धर्म, धर्म अपनी ही जीवन की ऊर्जा से पैदा हुआ है। और जब तक तुम धार्मिक न हो जाओ तब तक तुम जीवन का जो परम आनंद है, वह न जान पाओगे। क्योंकि वह तुमसे ही पैदा हो तो ही तुम्हारा होगा। इसे तुम कसौटी की तरह अपने हृदय में रख लो कि जो तुमसे पैदा हो वही तुम्हारा है; जो तुमसे पैदा न हुआ हो, किसी और ने दिया हो, वह उधार है। उधार का कोई भी अस्तित्व में मूल्य नहीं है। तुम धोखा दे रहे हो। गोद लेकर तुम अपने को धोखा दे रहे हो। ___'इसलिए संसार की सभी चीजें ताओ की पूजा करती हैं और तेह की प्रशंसा।' - लाओत्से कहता है, चूंकि सदगुण धर्म से पैदा होता है, भीतर के स्वभाव से पैदा होता है, इसलिए संसार में सभी धर्म की पूजा करते हैं। जब भी बुद्ध जैसा व्यक्ति तुम्हारे बीच खड़ा हो जाए तो तुम्हें माथा झुकाना थोड़े ही पड़ता है, वह झुकता है। वह बुद्ध के होने में ही छिपा है। समादर तुमसे बहने लगता है। उसके लिए तुम्हें कोई चेष्टा नहीं करनी पड़ती। वह ऐसे ही बहता है, जैसे पानी गड्ढे की तरफ बहता है। वह स्वभाव है कि प्रशंसा, पूजा . सदगुण की तरफ बहती है। और उस सदगुण से पैदा हुए चरित्र की एक गहरी प्रशंसा, एक गीत, एक गूंज तुममें छूट जाती है। जहां भी तुम देखते हो...। तुम साधारण चरित्र की भी प्रशंसा करते हो जो कि नकली है। तुम खोटे सिक्कों को भी सम्हाल कर रख लेते हो, यही सोच कर कि वे असली हैं। जब तुम्हें असली सिक्का मिलेगा, जब तुम किसी असली सिक्के को पहचान पाओगे, जब तुम्हारी आंखों की धुंध हटेगी, तुम्हारा पीलिया हटेगा, और तुम जीवन का वास्तविक रूप देख पाओगे, उस दिन तुम्हारे भीतर जो प्रशंसा पैदा होगी चरित्र की और तुम्हारे भीतर जो पूजा पैदा होगी सदगुण की, उसे तुम इससे ही सोच सकते हो कि नकली चीजें भी पूजी जा रही हैं।
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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