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ताओ उपनिषद भाग ५
बाहर हो जाती है। वे यह कह रहे हैं कि अब्राहम से भी पहले मैं हूं। कोई अतीत नहीं मेरे लिए अब, कोई भविष्य नहीं मेरे लिए अब; अब मैं शाश्वत हूं। यह घोषणा यहूदी न समझ पाए। यहूदियों ने जीसस को सूली दी।
ऐसा सदा हुआ है; ऐसा सदा होगा। बुद्ध को हिंदू स्वीकार न कर पाए। हिंदू घर में पैदा हुए, हिंदू घर में बड़े हुए, और बुद्ध से बड़ा कोई हिंदू नहीं हुआ, और हिंदू स्वीकार न कर पाए। क्योंकि न राम से उनकी शक्ल मिलती है, न कृष्ण से। कृष्ण नाच रहे हैं गोपियों के साथ, और बुद्ध को राग-रंग बिलकुल पसंद नहीं। नाच का बुद्ध से क्या संबंध? तुम बुद्ध के ओंठों पर बांसुरी रखो, वे बड़े बेहूदे मालूम पड़ेंगे। और मोर-मुकुट बांध दो तो मजाक हो जाएगी। वे बोधिवृक्ष के नीचे शांत, बिना मोर-मुकुट के ही सुंदर मालूम पड़ते हैं।
कृष्ण को तुम बिठाल दो बोधिवृक्ष के नीचे, वे ऐसे लगेंगे जैसे किसी बच्चे को जबरदस्ती बिठाल दिया है। उनको बांसुरी जरूरी है। रूप परिस्थिति से मिलता है। वह मोर-मुकुट कृष्ण पर बहुत शोभा देता है, लेकिन बस उन पर ही शोभा देता है। कोई और करेगा तो सर्कस का जोकर मालूम पड़ेगा। कोई और करेगा तो लोग हंसेंगे। लेकिन कृष्ण के साथ सारा अस्तित्व राजी था वैसे। वह उस क्षण की पूर्णता थी। वह क्षण अब कभी न आएगा; वह पूर्णता अब कभी न आएगी।
परमात्मा चुकता नहीं अपने कृत्य से, वह रोज नए को निर्मित किए चला जाता है। वह पुराने को दोहराता नहीं। पुराने को तो वही दोहराता है जिसकी प्रतिभा कम हो। परमात्मा की प्रतिभा अनंत है, अस्तित्व की संभावना अनंत है। क्या जरूरत है दोहराने की?
तो बुद्ध न तो राम जैसे लगे कि लिए खड़े हैं धनुष-बाण।।
तुलसीदास राम के भक्त हैं। कहते हैं, मथुरा में वे कृष्ण के मंदिर में गए तो झुके नहीं। क्योंकि उन्होंने कहा कि तब तक न झुकूगा, जब तक धनुष-बाण हाथ में न लोगे। तुलसीदास जैसा आदमी भी कृष्ण के सामने नहीं झुक सकता, क्योंकि उसका अपना एक रूप है धारणा का, अपना एक आदर्श है। कहा कि तुलसी का माथा न झुकेगा तब तक, जब तक धनुष-बाण हाथ न लोगे। और कहानी है कि कहती है कि फिर कृष्ण ने धनुष-बाण हाथ लिए, तब . तुलसी का माथा झुका।
तो माथा झुकता है तब जब तुम वर्तमान में अतीत की पुनरुक्ति देखो, नहीं तो नहीं झुकता। और अतीत की कोई पुनरुक्ति नहीं होती। यह कहानी झूठ है। कृष्ण भूल कर भी हाथ में धनुष-बाण नहीं ले सकते; वे जंचेंगे ही नहीं। वह बात मौजू नहीं है। और अगर तुलसीदास को दिखा होगा तो वह उनके मन का ही भ्रम रहा होगा। अक्सर प्रेमी भ्रम को देख लेते हैं। अगर तुम किसी के प्रेम में दीवाने हो, कोई दूसरी स्त्री निकलती रास्ते से, एक क्षण को भ्रम हो जाता है कि वही आ रही है, तुम्हारी प्रेयसी आ रही है। ऐसे ही कोई भ्रम हुआ होगा तुलसी को। धनुष-बाण के प्रेमी थे, राम के प्रेमी थे; प्रेम में आंखें अंधी हो जाती हैं, देख लिया होगा क्षण भर को। लेकिन क्या जरूरत पड़ी कृष्ण को धनुष-बाण लेने की?
लेकिन हिंदू बुद्ध को स्वीकार न कर सके। और बुद्ध का अस्वीकार इतना प्रगाढ़ था कि यहूदियों ने भी इतना बड़ा अस्वीकार जीसस का नहीं किया। उन्होंने कम से कम सूली तो लगा दी। सूली लगाने से जीसस की जड़ें जम गईं। यहूदियों को बड़ी मात्रा में ईसाई हो जाना पड़ा। क्योंकि सूली ने एक घाव बना दिया। हिंदुओं ने ज्यादा होशियारी की। वे ज्यादा चालाक कौम हैं, ज्यादा पुरानी कौम हैं। उन्होंने क्या चालाकी की?
हिंदुओं ने एक कथा गढ़ी। और कथा यह है कि परमात्मा ने नरक बनाया, स्वर्ग बनाया। नरक में बिठाया शैतान को। लेकिन सदियां बीत गईं, कोई पाप ही न करे, कोई नरक ही न जाए। शैतान थक गया। उसने परमात्मा से कहा कि मिटाओ यह नरक और मुझे छुटकारा दो। यह ड्यूटी किस काम की है? यहां बैठे-बैठे क्या सार? कोई आता नहीं। तो
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