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________________ . ताओ या धर्म पारबँतिक है लेकिन तुम्हें बड़ी मुश्किल है, क्योंकि तुम्हें भीतर का तो कोई आदेश ही नहीं है। तुम तो शास्त्र से नियम उठा लिए हो। शास्त्र जा चुके, उनका समय जा चुका, उनकी परिस्थिति बदल गई। इसलिए शास्त्र के अनुसार जो भी जीएगा वह जड़ हो जाएगा। स्वयं की अंतःप्रज्ञा के अनुसार जो भी जीएगा, उसके जीवन में तरलता, उसके जीवन में जीवंतता होगी। . इसलिए तो तुम तुम्हारे पुराने परंपरागत संन्यासियों को देखो, उनके चेहरों पर धूल जमी हुई है। वे ऐसे लगते हैं-अब गए, तब गए। वे ऐसे लगते हैं जैसे म्युजियम में पुरानी चीजें रखी हों। दर्शनीय भला हों, किसी काम के न रहे। खंडहर हैं। अतीत की कोई गौरव-गाथा कहते होंगे, लेकिन गौरव-गाथा आज की और वर्तमान की नहीं है। किसी पुराने समय की ऐतिहासिक सामग्री हैं वे, फोसिल्स, सम्हाल कर रखने योग्य, जैसा कि हम पुरानी चीजों को सम्हाल कर रखते हैं। लेकिन उपयोग के योग्य नहीं; आज के जीवन से उनका कोई भी संबंध नहीं है। अगर तुम्हारी अंतःप्रज्ञा से पैदा होता हो, ताओ से पैदा होता हो आचरण, तो तुम कभी भी मुर्दा न होओगे, तुम सदा जीवंत रहोगे, तरल रहोगे, बहोगे। और जैसी परिस्थिति होगी, वैसा तुम्हारा रूप निर्मित हो जाएगा। तुम्हें चिंता नहीं करनी है, तुम्हें सिर्फ संवेदनशील और बोधपूर्ण होना है। 'और वर्तमान परिस्थितियां उसे पूर्ण बनाती हैं।' और जो भी तुम्हारे भीतर से प्रकट होगा...। तुम किसी अतीत की पूर्णता को आधार मान कर मत चलना। तुम किसी अतीत की पूर्णता को आदर्श मत मान लेना। अन्यथा तुम बड़ी मुश्किल में पड़ जाओगे। आज की परिस्थिति, वर्तमान क्षण ही तुम्हें पूर्णता देगा। कोई भी नहीं जानता कि वर्तमान क्षण अगर पूर्णता देगा तो तुम कैसे होओगे-महावीर जैसे? बुद्ध जैसे? लाओत्से जैसे? सच तो यह है, तुम उनमें से किसी जैसे भी नहीं होओगे। तुम तुम जैसे ही होओगे। क्योंकि उनकी कोई की भी परिस्थिति ऐसी न थी। सब कुछ बदल गया। शास्त्र नहीं बदलते, क्योंकि शास्त्र मुर्दा हैं। लेकिन चेतना का आदेश सदा बदलता रहता है। जैसी परिस्थिति होती है, उसके अनुकूल उदभाव होता है, और प्रति क्षण एक तरह की पूर्णता निर्मित होती है। वह पूर्णता किसी आदर्श के अनुसार नहीं होती, वह पूर्णता तुम्हारे भीतर के आनंद की होती है। और इसीलिए तो ऐसा हो जाता है कि जब भी कोई एक व्यक्ति तीर्थंकर, अवतार की भांति पैदा होता है, तब जिस धर्म में पैदा होता है उस धर्म के लोग ही उसे स्वीकार नहीं करते। क्योंकि वह एक नए तरह की पूर्णता होती है जो पहले कभी नहीं हुई। तो उसका कोई मापदंड पीछे से नहीं तौला जा सकता। . जीसस यहूदी घर में पैदा हुए, यहूदी जीवन भर रहे; लेकिन यहूदियों ने इनकार कर दिया। क्योंकि यहूदी कहते कि तुम अब्राहम जैसे हो? इजेकिल जैसे हो? तुम किस जैसे हो? वे अपने पुराने पैगंबरों का नाम लेते। और जीसस बिलकुल भिन्न थे। और जीसस बिलकुल नए थे। वैसा फूल पहले कभी हुआ नहीं था, क्योंकि वैसी परिस्थिति कभी न थी। यह सुबह और थी। यह हवा और थी। यह वक्त और था। एक नई पूर्णता खिली थी। लेकिन यहूदी पंडित अपने शास्त्रों में खोज रहे थे कि इस तरह की पूर्णता का मेल बैठता है या नहीं। और जीसस ने बड़ी अनूठी बात कह दी। जब उनसे पूछा गया कि क्या तुम अब्राहम जैसे हो? पुराना, पुरानी याददाश्त, पुराना पैगंबर। तो जीसस ने कहा, बिफोर अब्राहम वाज़, आई एम। अब्राहम के पहले भी मैं हूं। अखर गई बात यहूदियों को। यह तो बड़ा अहंकारी मालूम होता है कि अब्राहम के पहले भी और यह कहता है मैं हूं। __ वे समझ न पाए। जीसस यह कह रहे हैं कि मैं समय के बाहर हूं। जब भी कोई चेतना परिपूर्णता को उपलब्ध होती है, समय के बाहर हो जाती है। समय तैयार करता है, समय निर्मित करता है, समय पूर्णता के करीब लाता है, निन्यानबे डिग्री तक लाता है; सौ डिग्री पर तत्क्षण चेतना समय के 65
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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