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ताओ उपनिषद भाग ५
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लेकिन धर्म को प्रयोजन है। अगर व्यवहार बाहर से पैदा हुआ तो तुमने जीवन गंवाया। तुम अभिनेता बन कर रह गए; तुमने नाटक किया। अगर तुम्हारा आचरण भीतर से आया तो तुम्हारे जीवन में क्रांति हुई ।
अब इस सूत्र को तुम समझ पाओगे। सदगुण का जन्म कहां से होता है?
'ताओ जन्म देता है सदगुण को ।'
ओका अर्थ है स्वभाव । ताओ का अर्थ है तुम्हारा आंतरिक धर्म । ताओ का अर्थ है तुम्हारी चेतना । 'ताओ से जन्म होता है सदगुणों का, और चरित्र उनका पालन करता है।'
तो चरित्र मूल नहीं है, छाया की तरह है। जन्म तो भीतर की प्रज्ञा में होता है, ध्यान की गहन अवस्था में होता है। लेकिन उतना काफी नहीं है, वह बीज है। उसके पालने के लिए तुम्हें उसके अनुसार आचरण करना होता है। तो वह प्रगाढ़ होता जाता है। जो तुमने जाना है भीतर, उसे अपने जीवन में उतार लेने से वह प्रगाढ़ होता है, उसकी जड़ें जमने लगती हैं। तो चरित्र मूल नहीं है, मूल तो बोध है। और फिर बोध को प्रगाढ़ करने का प्रयोग चरित्र है । इसलिए ताओ से जन्म और तेह से पोषण ।
तेह का अर्थ है चरित्र। जो तुम जानो भीतर, उसे कुरना । अन्यथा तुम्हारा ज्ञान झलक की तरह बनेगा और खो जाएगा। जब तुम ध्यान की गहरी अवस्था में कुछ उदभाव पाओ, कोई भीतर आदेश मिले, भीतर तुम्हारा अंतःकरण कुछ कहे, तो उसे करना भी । नहीं तो उसको जड़ न मिल पाएगी। अगर तुम करोगे तो आदेश रोज-रोज स्पष्ट होने लगेगा, और अंतःकरण की आवाज रोज-रोज साफ सुनाई पड़ने लगेगी। जितना ही तुम करोगे, जितना ही तुम अपने बोध को चरित्र में रूपांतरित करोगे, उतना ही तुम पाओगे, बोध साफ होने लगा, भीतर की ज्योति स्पष्ट जलने लगी; धुआं कम होने लगा, चीजें साफ दिखाई पड़ने लगीं। जन्म तो होता है भीतर, लेकिन व्यवहार में लाने से चरित्र की जड़ें गहरी होती हैं।
'ताओ में जन्म, चरित्र में पालन । भौतिक संसार उन्हें रूप देता है।'
तुम्हारा चारों तरफ जो संसार है। जन्म तो होता है भीतर, चरित्र में जड़ें मिलती हैं, और जो विस्तार है तुम्हारे . जीवन का, वह चारों तरफ के भौतिक संसार से उसे रूप मिलता है।
'भौतिक संसार उन्हें रूपायित करता और वर्तमान परिस्थितियां पूर्ण बनाती हैं। '
स्रोत है भीतर। फिर तुम्हारे व्यवहार पर आते हैं, वहां तुम्हारा चरित्र है, उससे जड़ें जमती हैं। फिर बाहर की भौतिक परिस्थितियों पर आते हैं, उनसे रूप मिलता है। जैसे अगर आज महावीर पैदा होना चाहें तो उनका रूप वही नहीं होगा जो ढाई हजार साल पहले था। क्योंकि आज की भौतिक परिस्थितियां उन्हें रूप देंगी। अगर वे तिब्बत में पैदा हुए होते तो नंगे नहीं खड़े हो सकते थे। नंगे खड़े होते तो मर जाते। नग्नता भारत में सरल थी, क्योंकि भारत का भौतिक संसार भिन्न है। महावीर अगर लंदन में पैदा हों तो व्यवहार और होगा, क्योंकि परिस्थितियां भिन्न हैं । महा के नग्न रहने के कारण दिगंबर जैन मुनि भारत के बाहर नहीं जा सका। वह संदेश भी नहीं ले जा सका बाहर, क्योंकि नंगा कैसे जाए बाहर! वह नंगापन अड़चन बन गई। महावीर को न बनती, क्योंकि ज्ञानी तरल होता है।
रूप देती हैं परिस्थितियां । तुम्हारे दीए का क्या रूप है, इससे क्या फर्क पड़ता है ? तुम्हारी ज्योति जगनी चाहिए। दीए तो हर मुल्क में अलग होंगे, उनका ढंग अलग होगा, मिट्टी अलग होगी, रंग अलग होगा, लेकिन ज्योति का रंग एक ही होगा। दीए बदल जाएंगे, ज्योति नहीं बदलेगी।
तो तुम जिस परिस्थिति में पैदा हुए हो, जिस भौतिक परिस्थिति में तुम हो, तुम्हारे आचरण का रूप उससे बनेगा। इसलिए आचरण का कोई बंधा हुआ रूप नहीं है । और जो भी बंधे हुए रूप को मान कर चलता है वह जड़ता को उपलब्ध हो जाएगा। परिस्थिति बदलेगी, रूप बदलेगा ।