________________
ताओ उपनिषद भाग ५
- लार्ड एक्टन ने कहा है, पावर करप्ट्स एंड करप्ट्स एब्सोल्यूटली। शक्ति व्यभिचारिणी है और परिपूर्ण रूप से व्यभिचार कर देती है व्यक्ति के साथ।
लेकिन मैं एक्टन से राजी नहीं हूं। शक्ति व्यभिचारिणी नहीं है। असल में, व्यभिचारी व्यक्ति ही शक्ति की तरफ उत्सुक होते हैं। शक्ति तो केवल उघाड़ती है। जैसे ही शक्ति मिलती है तुम्हें...। तुम एक वेश्या के घर जाना चाहते थे, लेकिन कभी तुम उतने नोट न इकट्ठे कर पाए। तो तुम द्वार से भटक कर, गीत गुनगुना कर लौट आए। चक्कर तुमने बहुत मारे। लेकिन जिस दिन तुम्हारे पास रुपए होंगे, जिस दिन उतने नोट होंगे, उस दिन तुम्हें कैसे रोका जा सकेगा? नोट किसी को बिगाड़ते नहीं। धन क्या बिगाड़ेगा? धन से ज्यादा नपुंसक क्या है? धन कैसे बिगाड़ सकता है? और पद से ज्यादा नपुंसक क्या है? पद कैसे बिगाड़ सकता है? बिगड़े हुए लोग ही पद की तरफ लोलुप होते हैं। लेकिन जब वे पद की तरफ लोलुप होते हैं तब चारों तरफ एक साधुता का आवेष्टन निर्मित करना पड़ता है; क्योंकि तुम साधु को ही पद तक पहुंचाओगे। तो उनको साधु होना पड़ता है।
ऐसा हुआ कि सम्राट एक विनम्र आदमी की खोज में था। और उसने अपने लोग भेजे और उसने कहा, कोई ऐसा आदमी खोज कर आओ जो बिलकुल विनम्र हो। वे मुल्ला नसरुद्दीन के गांव में आए। नसरुद्दीन बाजार से निकल रहा था। उसके पास काफी धन था, बड़ी हवेली थी, लेकिन कंधे पर उसने मछलियों को पकड़ने का एक जाल लटका रखा था। उस मंडल ने, जो विनम्र आदमी की तलाश में था, पूछा कि क्या बात है? तुम इतने बड़े धनी हो, तुम यह मछली का जाल क्यों लटकाए हुए हो पुराना, फटा हुआ? नसरुद्दीन ने कहा कि मैं मछलियां पकड़-पकड़ कर ही बड़ा हुआ। मैं उस छोटेपन को भूल नहीं जाना चाहता जहां से मूल स्रोत है। मैं गरीब मछुआ था। इस जाल को मैं अपने साथ रखता हूं, ताकि अहंकार न आ जाए। उन्होंने कहा कि यह आदमी, यह आदमी ठीक विनम्र आदमी है। जिसके पास बड़ी हवेली है, राजाओं जैसा जो रह सकता था, वह मछुए के कपड़े पहने हुए है और जाल लटकाए हुए है। उसे चुन लिया गया। उसे राज्य का वजीर बना दिया गया। जिस दिन वह वजीर बन गया उस दिन वह शानदार कपड़े पहन कर राजभवन पहुंचा। उस मंडल के लोगों ने कहा कि नसरुद्दीन, क्या हुआ उस जाल. का? उसने कहा कि जब मछली पकड़ ली गई तो जाल को कौन लिए फिरता है!
सब जाल-नाम कुछ भी हों-मछलियां पकड़ने के लिए हैं। जब मछली पकड़ ली गई, जाल फेंक दिए जाते हैं। गणित सीधा है। नीति ने, कनफ्यूशियस, मार्क्स, पावलफ, इन सबने एक ही बात सिखाई है कि नीति का आचरण ऊपर से थोपा जा सकता है। नीति एक कल्टीवेशन है, एक संस्कार है। पावलफ का शब्द है : कंडीशंड रिफ्लेक्स। नीति एक संस्कार है। तो पावलफ का प्रसिद्ध प्रयोग तुमने सुना होगा। एक कुत्ते को वह खाना खिलाता है। जब रोटी कुत्ते के सामने आती है तो उसकी जीभ से लार टपकती है। यह स्वाभाविक है। वह घंटी बजाता है। जब भी रोटी देता है, घंटी भी बजाता है। पंद्रह दिन के बाद रोटी तो नहीं देता, सिर्फ घंटी बजाता है। लार टपकनी शुरू हो जाती है। अब घंटी बजने से कुत्ते की लार टपकने का कोई भी स्वाभाविक संबंध नहीं है। यह कंडीशंड रिफ्लेक्स है। रोटी के साथ घंटी बजती थी, इसलिए कुत्ते के मन में घंटी और रोटी एक हो गए। रोज घंटी रोटी के साथ बजती थी; इसलिए घंटी के बजने से लार शुरू हो गई।
पावलफ यह कह रहा है कि समस्त नीति कंडीशंड रिफ्लेक्स है। अगर बच्चे ने कुछ गलत काम किया, उसे मारो, दंड दो। क्योंकि दंड देने का संबंध हो जाएगा गलत काम से। तो दुबारा जब भी वह गलत काम करेगा, उसे याद आएगा कि मार पड़ेगी। घंटी जुड़ गई! तो वह बुरा काम नहीं करेगा। भला काम करे-मिठाई दो, पुरस्कार दो, खिलौना दो। भला काम और पुरस्कार जुड़ जाएगा। जब भी वह पुरस्कार पाना चाहेगा—जो कौन नहीं पाना चाहता-तो वह भला काम करेगा। और धीरे-धीरे यह इतनी गहरी आदत हो जाएगी, यह आदत ही आचरण है।
62