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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ तुम सोचते हो कि दंड देने से वह फिर यह काम न करेगा। तो तुम गलती में हो। और तुम अंधे हो, और इतिहास को तुम कभी देखते नहीं। क्योंकि हमने कितना दंड दिया, लेकिन पाप रत्ती भर कम नहीं हुआ। और लाओत्से खिलखिला कर हंस रहा है पूरे इतिहास के राह के किनारे खड़े कि तुमने कितना दंड दिया, लेकिन अपराधी कम कहां हुए? बढ़ते चले गए। और जिसको तुम एक बार दंड देते हो, फिर कभी तुम लौट कर नहीं देखते कि तुम्हारे दंड से वह सुधरा? जेलखाने में जो एक बार हो आया, वह फिर बार-बार जाता है। मुल्ला नसरुद्दीन के बेटे पर मुकदमा चला। कई बार उसे सजा दी जा चुकी। जेब काटने की उसे आदत है। मजिस्ट्रेट को भी दया आने लगी, क्योंकि वह कई बार सजा काट चुका और फिर भी वही करता है। आखिर उसने मुल्ला को बुलाया और कहा कि तुम बाप होकर इसे समझाते क्यों नहीं? यह बार-बार वही कर रहा है; दंड पा रहा है। तुम इसे समझाओ। मुल्ला ने कहा, समझा-समझा कर मैं भी हार गया; सुनता ही नहीं। कितनी बार इसे समझाया कि ढंग से काट, पकड़ा मत। सिखा-सिखा कर परेशान हो गए हैं। जेलखाने से लोग सीख कर लौटते हैं कि कैसे ढंग से काटें, कैसे ढंग से चोरी करें। क्योंकि वहां उस्ताद उपलब्ध हो जाते हैं। जेलखाना एक विश्वविद्यालय है अपराधों का। आदमी नया-नया जाता है, सिक्खड़ होता है, चेला होता है। वहां बड़े गुरु मिल जाते हैं जो निष्णात हैं, जिनसे वह कई कलाएं सीख कर लौटता है, जिनके अभाव में वह पकड़ा गया था। वह वहां से और मजबूत होकर लौटता है, वहां से वह और तैयार होकर लौटता है। सारा इतिहास यह कहता है कि जितना हमने दंड दिया, उतने लोग बुरे होते गए। लेकिन अंधे लोग देखते भी नहीं कि क्या हो रहा है। तुम्हारे पुरस्कार से कौन भला हो गया है? तुम्हारे पुरस्कार से इतना ही हुआ है कि लोग भले का नाटक कर रहे हैं। पाखंडी हो गए हैं। और जो आदमी पुरस्कार के लोभ और लालच में भला है, क्या वह भला है? उसकी साधुता कितनी गहरी है? चमड़े की जितनी गहरी भी नहीं है। हड्डियों तक नहीं पहुंच सकती; आत्मा तक तो पहुंचने का कोई उपाय नहीं है। लेकिन यह सूत्र है हमारी धारणा का। मनोविज्ञान में भी कनफ्यूशियस से राजी होने वाले लोग हैं : रूस का पावलफ, अमरीका में जिंदा एक मनोवैज्ञानिक है बी.एफ.स्कीनर। उन सबका कहना यह है कि एक ही ढंग है नीति को लाने का और वह यह है कि बचपन से ही बच्चे को, अगर वह बुरा करे तो ठीक से दंड दो, वह भला करे, पुरस्कार दो। और यही हम सब कर रहे हैं। यद्यपि पूरा इतिहास हमारा असफल हुआ है, लेकिन लाओत्से की कोई सुनने को राजी नहीं। सुनते हम कनफ्यूशियस की हैं। क्योंकि किन्हीं कारणों से वह सरल मालूम पड़ता है। उसे मैं समझाऊंगा कि क्यों। कनफ्यूशियस गलत होते हुए सरल मालूम पड़ता है, लाओत्से ठीक होते हुए गलत मालूम पड़ता है, या सुनने योग्य मालूम नहीं पड़ता। तुम भी यही कर रहे हो अपने बच्चों के साथ। उससे कुछ बदलता नहीं। तुम दंड देते हो; बच्चा दंड के लिए धीरे-धीरे राजी हो जाता है। इसलिए अक्सर ऐसा होता है कि अच्छे बाप बरे बेटे पैदा करते हैं; अच्छे परिवारों से अपराधी निकलते हैं। जब बाप बहुत कोशिश करता है अच्छा करने की तो बेटे बुरे हो जाते हैं। वहीं कुछ सड़ जाता है, उस चेष्टा में ही कुछ मर जाता है, क्योंकि बाप अतिशय चेष्टा करता है। तो दो ही उपाय हैं। या तो बेटा पाखंडी हो जाए, वह ऐसा चेहरा दिखाने लगे जैसा वह नहीं है; चेहरा ओढ़ ले। तो पुरस्कार भी पा ले और कोई पीछे का दरवाजा भी खोल ले, जहां से जो उसे रसपूर्ण लग रहा है वह भी किए जाए। और जिस-जिस को हम पाप कहते हैं, वह हमारे पाप कहने से और भी रसपूर्ण हो जाता है, उसमें और आकर्षण आ जाता है, उसमें चुंबक पैदा हो जाता है। एक घर में ऐसा हुआ कि घर के लोग बड़े नीति-नियम वाले लोग थे; एक भोज में आमंत्रित थे। तो घर के छोटे से बच्चे को उन सबने कहा कि देखो, ध्यान रखना, कोई चीज मांगना मत। सब चीज दी जाएगी; प्रतीक्षा करना, 60
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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