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ताओ या धर्म पारबँतिक है
क्यों तुम करते हो निंदा? क्यों करते हो प्रशंसा? पीछे बड़े गहरे जाल हैं, वे समझ लेने जरूरी हैं। तब हम लाओत्से के सूत्र में प्रवेश कर सकेंगे।
लाओत्से के समय में एक आदमी हुआ कनफ्यूशियस। जगत में दो ही तरह के लोग हैं। तुम भी या तो लाओत्से के मानने वाले हो सकते हो या कनफ्यूशियस के। बस दो ही विभाजन हैं। और सदा से एक धारा कनफ्यूशियस की है, वह अलग बह रही है। और एक धारा लाओत्से की है, वह बिलकुल अलग बह रही है।
कनफ्यूशियस है नीतिवादी, समाजवादी, समूहवादी-आचरण, व्यवहार। लाओत्से है नीति का अतिक्रमण करने वाला, समाज के पार एकांत में ले जाने वाला। लाओत्से का संबंध स्वभाव से है, आचरण से नहीं; तुम्हारी मूल प्रकृति से है, तुम्हारे होने से है, तुम क्या करते हो इससे नहीं। और जब हम ठीक से समझेंगे तो हम समझ पाएंगे कि क्यों इतना जोर उसका है।।
कहते हैं कनफ्यूशियस लाओत्से से मिलने गया था तो बहुत डर गया। क्योंकि जब लाओत्से की बातें उसने सुनी तो उसने कहा, यह तो अराजकता हो जाएगी। तुम तो नष्ट कर दोगे समाज को। नीति कहां बचेगी?
नीति का आधार ही दंड और पुरस्कार है। कनफ्यूशियस का जोर उस पर है कि बुरे को दंड दो, ताकि बुरा दुबारा बुरा काम न कर सके; भले को पुरस्कृत करो, ताकि दुबारा भला काम करने का लोभ जगे। और ध्यान रखना, दुनिया कनफ्यूशियस को मान कर चल रही है। लाओत्से को मानने वाला तो कभी कोई एकाध है-कोई विरला जन। सारी दुनिया कनफ्यूशियस के आधार पर निर्मित हुई है। फिर कनफ्यूशियस की धारा में बहुत लोग आए हैं; मार्क्स, स्टैलिन, लेनिन, माओ, सभी कनफ्यूशियस की धारा में हैं।
लोग मुझसे पूछते हैं कि चीन जैसे बौद्ध मुल्क में कम्युनिज्म सफल कैसे हो गया?
सफल होने का कारण है। क्योंकि चीन के विचार का जो आधार है वह कनफ्यूशियस है। और कनफ्यूशियस और मार्क्स बिलकुल एक जैसे चिंतक हैं। अगर भारत में किसी दिन कम्युनिज्म आया तो तुम चकित होओगे, उसका कारण बुद्ध और महावीर नहीं होंगे, उसका कारण मनु और मनु की स्मृति होगी। क्योंकि मनु ठीक कनफ्यूशियस जैसा विचारक है। कनफ्यूशियस, मनु, मार्क्स, माओ-अगर राजनीति के जगत में तुम्हें देखना हो तो ये एक ही सूत्र में बंधे हुए लोग हैं। मार्क्स कहता है कि चेतना का कोई भी मूल्य नहीं है। समाज की परिस्थिति मूल्यवान है। समाज की जैसी परिस्थिति होती है, चेतना वैसी ही ढल जाती है। चेतना का कोई मूल्य नहीं है, मूल्य है समाज की व्यवस्था का। अगर लोगों को बदलना हो, व्यवस्था को बदल दो। और अगर लोगों को बदलना हो तो बुरे को दंडित करो।
इसलिए तो रूस में कोई एक करोड़ लोग मार डाले उन्होंने। जिसको वे बुरा समझते थे उसको फिर उन्होंने ठीक से ही दंडित कर दिया। चीन में भयंकर दंड दिया जा रहा है। लाखों लोग जेलों में पड़े हैं। बुरी तरह सताए जा रहे हैं। जिसको भी चीन की आज की धारणा, माओ की धारणा समझती है कि बुरे लोग हैं, उनके जीने का कोई उपाय
नहीं है। और बुरा कौन है? बुरा वही है जो तुम्हारी धारणा से मेल न खाए। . आखिर चोर का कसूर क्या है, जिसको हमने जेल में डाल रखा है? उसका कसूर इतना ही है कि वह हमारी व्यक्तिगत संपत्ति की धारणा में भरोसा नहीं करता। उसका कसूर क्या है? वह एक तरह का साम्यवादी है। वह यह कहता है कि संपत्ति सब की है। इसलिए तुम्हारी संपत्ति उठा कर ले गया। वह कहता है, संपत्ति पर किसी की मालकियत नहीं है। कहता न हो, लेकिन यह उसकी भीतरी गहरी धारणा है। तुम मालिक हो, यही सिद्ध नहीं है, वह यह कह रहा है। इसलिए तुम्हें अधिकार क्या है कि तुम रखे रहो? वह यह कह रहा है कि जिसके पास ताकत हो वह ले जाए। ताकत मालिक है। माइट इज़ राइट। जिसको भी तुम गलत समझते हो-और गलत तुम उसे समझते हो जो तुम्हारी धारणा के प्रतिकूल है-उसे तुम जेल में डाल देते हो।