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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ . करोगे। तुम भरोसे योग्य नहीं हो। वह पुलिसवाला तुम्हारी महिमा की खबर नहीं दे रहा है, तुम्हारे चोर, बेईमान, नियमहीन होने की सूचना दे रहा है। अदालतों के बड़े-बड़े भवन तुम्हारे गौरव की गाथा नहीं कहते; तुम्हारे अपराधों के भवन हैं। बड़े आश्चर्य की बात है! अदालतों के हम बड़े आलीशान भवन बनाते हैं। अपराध की कथा है वहां। वहां तुम्हारा सारा नरक लिखा हुआ है। वह अदालत खड़ी इसलिए है कि तुम ठीक नहीं हो। अदालत अस्पताल है। अस्पताल से ज्यादा उसका मूल्य नहीं है। क्योंकि आदमी रुग्ण है, इसलिए नीति की जरूरत है। अगर सारे लोग स्वस्थ हो जाएं तो चिकित्सा खो जाएगी। और सारे लोग अगर सदवृत्ति के हो जाएं तो नीतिशास्त्र खो जाएगा। लेकिन धर्मशास्त्र फिर भी रहेगा। वस्तुतः तभी धर्मशास्त्र शुरू होता है जहां नीति पूरी होती है। धर्मशास्त्र के नाम से बहुत से नीतिशास्त्र भी धर्मशास्त्र माने जाते हैं। क्योंकि तुम्हारी आंखें उतने ऊपर नहीं देख सकतीं, जहां धर्मशास्त्र हैं। तुम नीति तक देख पाते हो। जब पहली दफा उपनिषदों का अनुवाद हुआ पश्चिम की भाषाओं में तो पश्चिम के विचारक बड़े चिंतित हुए। क्योंकि उपनिषदों में बाइबिल जैसी दस आज्ञाएं नहीं हैं; टेन कमांडमेंट्स का कोई उल्लेख नहीं है। चोरी मत करो, बेईमानी मत करो, पर-स्त्री को मत देखो, ऐसी उपनिषदों में कोई बात ही नहीं। पश्चिम के विचारक बड़े हैरान हुए कि ये कैसे धर्मशास्त्र हैं। इनमें कुछ भी तो नीति-व्यवहार की बात नहीं। नीति, नियम, व्रत, अनुशासन, कुछ भी तो नहीं। सिर्फ ब्रह्म की चर्चा करते हैं। इस चर्चा से कहीं कोई धार्मिक हुआ है? बाइबिल-पुरानी और नई दोनों-किन्हीं-किन्हीं हिस्सों में धार्मिक हो पाती हैं। अन्यथा वे नैतिक शास्त्र हैं। कुरान कभी-कभी धार्मिक हो पाता है; अन्यथा नब्बे प्रतिशत नीतिशास्त्र है। वेद कभी-कभी धार्मिक हो पाता है, अन्यथा नीतिशास्त्र है। उपनिषद शुद्ध सोना है। आभूषण हम सोने का बनाते हैं तो कुछ न कुछ अशुद्ध करना पड़ता है, कुछ मिलाना पड़ता है। तो अठारह कैरेट होगा, सोलह कैरेट होगा, चौदह कैरेट होगा लेकिन ठीक चौबीस कैरेट नहीं होता। क्योंकि सोना इतनी मुलायम धातु है कि उसके आभूषण नहीं बन सकते; थोड़ी सख्ती चाहिए। धर्म का शुद्ध सोना, चौबीस कैरेट, तो मुश्किल से कभी किसी शास्त्र में मिलता है। फिर तुम जहां खड़े हो उतने ही नीचे. धर्म को उतारना पड़ता है, क्योंकि तुम्हीं को सम्हालना है। जितना धर्म नीचे उतरता है उतना नैतिक हो जाता है। तो उपनिषद या लाओत्से का ताओ तेह किंग या हेराक्लाइटस के वचन परम, आखिरी हैं। चौबीस कैरेट सोना हैं। तुम अगर न समझ पाओ तो अपनी मजबूरी समझना। तुम्हें अगर लाओत्से को समझना हो तो बड़ी ऊंची आंखें उठानी पड़ेंगी। अब अगर तुम गौरीशंकर देखना चाहते हो तो टोपी गिरेगी। तुम अगर टोपी को सम्हाले रहे तो गौरीशंकर न देख सकोगे। उतनी ऊंची आंखें उठानी हों तो तुम वैसे ही थोड़े खड़े रहोगे जैसे तुम बाजार में चलते हो, समतल भूमि पर चलते हो। आंख उठाने के लिए गर्दन मुड़ेगी, टोपी गिरेगी। जिन्होंने भी धर्मशास्त्र को जाना, टोपी ही नहीं, उनका सिर गिर गया, उनकी बुद्धि गिर गई, उनका सोचना-विचारना तहस-नहस हो गया। तभी वे जान पाए। उतने शुद्ध को जानने के लिए उतना ही शुद्ध होना पड़ेगा। सदगुण की परिभाषा लाओत्से की है कि जब तुम बुरे को भी भला जानो, और जब तुम पापी को भी आशीर्वाद दे सको, और जब तुम्हारे हृदय में पापी के लिए भी स्वर्ग की सुविधा हो। पुण्यात्मा के स्वर्ग के जाने में कौन सा गुण-गौरव है? गणित की बात है; काव्य तो बिलकुल नहीं। दुकानदारी की बात है। जो भला है वह स्वर्ग जाएगा; जो बुरा है वह नरक जाएगा। परमात्मा दुकानदार है जैसे। लिए है तराजू, बैठा है, तौल रहा है; तराजू में जो हिसाब में आ जाए। तो परमात्मा भी बुद्धि बन जाता है फिर, हृदय नहीं। हृदय तो शुभ-अशुभ को पार कर जाता है। एक मां के दो बेटे हैं। एक अच्छा है, एक बुरा है; इससे क्या फर्क पड़ता है? और अगर फर्क पड़ जाए तो मां भी दुकानदार है, मां नहीं। सच तो यह है कि अच्छे की चाहे मां थोड़ी कम चिंता करे, बुरे की ज्यादा करेगी। क्योंकि 56
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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