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भ को शुभ मानना साधारण सी बात है, कोई सदगुण नहीं। अशुभ को भी शुभ मानना सदगुण की महिमा है। साधु पर भरोसा तथ्यगत है, तुम्हारा कोई गौरव नहीं। असाधु पर भी भरोसा तुम्हारा गौरव है, सदगुण की श्रद्धा है। सबसे पहले सदगुण का अर्थ समझ लें। सदगुण नीति नहीं है। नीति तो तथ्य पर पूरी हो जाती है। कोई अच्छा है, उसका स्वागत करो; कोई बुरा है, उसे दंड दो। नीति बहुत साधारण सामाजिक व्यवहार है। साधु की प्रशंसा करो, असाधु की निंदा। अगर असाधु की भी प्रशंसा करोगे तो इससे साधुता की हानि होगी। भेद रखो। नीति भेद करती है। बुरे को दंड दो; भले को पुरस्कार दो। नीति नरक और स्वर्ग बनाती है। जो भले हैं उनके लिए स्वर्ग, जो बुरे हैं उनके लिए नरक।
नीति पापी और पुण्यात्मा को अलग-अलग करती है। सदगुण नैतिक बात नहीं है; सदगुण नीति के पार है। लाओत्से कहता है, बुरे की भी मैं प्रशंसा करता हूं, भले की भी; यही सदगुण की श्रद्धा है।
तो सदगुण पारनैतिक है-बियांड मारेलिटी। उसका सामाजिक व्यवहार से कोई संबंध नहीं। उसका अगर कोई भी संबंध है तो विश्व की आंतरिक सत्ता से है, परमात्मा से है।
नीति का संबंध है समाज से, समूह से, हमारे आस-पास जो लोग हैं उनसे। धर्म का संबंध है व्यक्ति का समष्टि से; समाज से नहीं, समष्टि से। हम जैसे ही आदमियों से नहीं, बल्कि हमारे पार जो हमारा मूल स्रोत है, जो हम सबकी नियति है, उस पारलौकिक तत्व से। उस पारलौकिक तत्व की दृष्टि में न तो कोई बुरा है, न कोई भला। न तो वह किसी को दंड देता है और न किसी को पुरस्कृत करता है।
लेकिन तुम थोड़ी मुश्किल में पड़ोगे। क्योंकि तुम्हारे धर्मशास्त्र कहते हैं, परमात्मा बुरे को दंडित करेगा और परमात्मा भले को स्वर्ग देगा, और बुरे को नर्क में डालेगा, सड़ाएगा, गलाएगा, आग में जलाएगा। ये शास्त्र भी सामाजिक हैं, और ये शास्त्र भी नीति के ही आधार से लिखे गए हैं। इन शास्त्रों में भी सामाजिक व्यवहार सिखाया गया है। लाओत्से का शास्त्र भिन्न है। यह पारलौकिक है। उपनिषद न दंड की बात करते, न पुरस्कार की। उपनिषद पारलौकिक हैं।
दुनिया में दो तरह के शास्त्र हैं, नैतिक शास्त्र और पारलौकिक शास्त्र। जो पारलौकिक शास्त्र हैं वही धार्मिक शास्त्र हैं। नीति के शास्त्र जरूरी हैं, पर उनमें कोई गुण-गौरव नहीं। नीति के शास्त्र इसलिए जरूरी हैं कि तुम बुरे हो, अन्यथा उनकी कोई उपादेयता नहीं। राह के चौराहे पर पुलिसवाला खड़ा है, वह कोई गरिमा नहीं है। अदालत में मजिस्ट्रेट बैठा है, वह कोई गौरव नहीं है। वे हमारी दीनता के प्रतीक हैं। वे हमारी क्षुद्रता के सबूत हैं। वह पुलिसवाला खड़ा है वहां इसलिए, क्योंकि तुम पर भरोसा नहीं किया जा सकता कि तुम रास्ते के नियम का पालन
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