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जीवन और मृत्यु के पार
सामनहा
तो सिकंदर ने पूछा कि यह क्या बकवास है? तुम बात मुझसे करते हो, इस कुत्ते से क्या कहते हो, सुन ले?
और वह कुत्ता भी ऐसे ढंग से बैठा था कि लगता है सुनता है। और जब कहता डायोजनीज सुन ले, तो वह सिर हिलाता।
तो डायोजनीज ने कहा कि आदमियों को मैंने इस योग्य नहीं पाया कि उनसे कुछ समझ की बातें की जा सकें। नासमझी की बातें कितनी ही कर लो, समझदारी की बात आदमियों से नहीं हो सकती है। यह कुत्ता बड़ा समझदार है।
और बड़ी से बड़ी समझदारी की बात तो यह है कि मैं कितना ही बोलूं, यह चुप रहता है। यह मुझसे भी ज्यादा समझदार है। कभी बेवक्त-वक्त सिर हिला देता है; इशारे में बात करता है। बड़ा ज्ञानी है।
ना-कुछ से काम चल सकता है; और सब कुछ से भी काम नहीं चलता। तो जरूर सवाल ना-कुछ और सब कुछ का नहीं हो सकता। तुम पर निर्भर है, सब तुम पर निर्भर है। सब कुछ से भी काम नहीं चलता, ना-कुछ से भी काम चल जाता है। जितना तुम ना-कुछ से काम चला लेते हो, उतनी ही वासना की लकीर छोटी होती चली जाती है। जिस दिन लकीर पूरी विदा हो जाती है उस दिन अचानक तुम पाते हो कि तुम्हारे भीतर की चैतन्य की प्रतिमा, तुम्हारी आत्मा अपनी पूरी गरिमा में प्रकट हो गई। अब उसे छुपाने वाला कोई धुआं न रहा। अब सब बदलियां हट गईं। आकाश, नीला आकाश सामने है।
'जो जीवन का सही संरक्षण करता है...।'
इसका अर्थ हुआ, जो तृष्णा से मुक्त होता है और तृष्णा में अपनी जीवन-ऊर्जा को नष्ट नहीं करता, जिसकी बाल्टी छेद वाली नहीं।
'उसे जमीन पर बाघ या भैंसे से सामना नहीं होता; न युद्ध के मैदान में शस्त्र उसे छेद सकते हैं; जंगली भैंसों के सींग उसके सामने शक्तिहीन हैं; बाघों के पंजे उसके समक्ष असमर्थ हैं, और सैनिकों के हथियार निकम्मे हैं।'
__ तुम यह मत सोचना कि तुम्हारे शरीर को छेदा न जा सकेगा। तुम यह भी मत सोचना कि तुम्हारे शरीर को आग न लगाई जा सकेगी। तुम यह भी मत सोचना कि भैंसे तुम्हारे शरीर में सींग न प्रवेश कर सकेंगे। लेकिन तुम शरीर न रह जाओगे। जिसने अपनी ऊर्जा को संरक्षित किया वह अशरीरी हो जाता है। तब सींग भी तुम्हारे शरीर में भैंसा चुभा रहा हो, और शस्त्र-भाला-तुम्हारे शरीर के आर-पार जा रहा हो, तो भी तुम साक्षी ही रहोगे। तब भी तुम जानोगे कि यह तुमसे बाहर घट रहा है-तुम्हारे आस-पास जरूर, पर तुममें नहीं। जैसे तुम्हारे घर में कोई दीवार को छेद दे, इससे तुममें छेद नहीं हो जाता। जैसे तुम्हारा वस्त्र जराजीर्ण हो जाए, उसमें छिद्र हो जाएं, तुममें छिद्र नहीं हो जाता। तुम्हारे शरीर के छिद्र तुम्हारे छिद्र नहीं हैं।
और शरीर तो मौत का ग्रास है ही; वह मरणधर्मा है, वह मरेगा ही। बुद्ध का शरीर भी मर जाता है; कृष्ण का शरीर भी मर जाता है; राम का शरीर भी धूल में खो जाता है। तुम्हारा भी खो जाएगा। क्योंकि शरीर धूल से उठता है। वह धूल से ही आया है। धूल में ही जाना उसकी नियति है। क्योंकि जो जहां से आता है वहीं वापस चला जाता है।
तुममें दो तत्व हैं। एक तो पृथ्वी से आया है, और एक आकाश से उतरा है। जो आकाश से उतरा है वही तुम हो। जो पृथ्वी से आया है वह केवल तुम्हारा आवरण है। वह तुम्हारा वेष्टन है, तुम उससे आच्छादित हो। पृथ्वी पृथ्वी में वापस लौट जाएगी। उसकी मृत्यु सुनिश्चित है। वह उसका स्वभाव है। लेकिन वह मृत्यु तुम्हारी नहीं है। यह तुम उसी दिन जान पाओगे जिस दिन तुम तृष्णारहित होकर अपने भीतर जागोगे। क्यों तृष्णारहित होकर? क्योंकि जो तृष्णा से भरा है, वह जाग ही नहीं सकता। तृष्णा शराब है। वह बेहोशी है, वह अंधापन है।
सुना है मैंने, एक यहूदी फकीर वृद्धावस्था में अंधा हो गया। एक गांव से गुजर रहा था। अंधा था; किसी ने दया की और कहा कि अच्छा हुआ तुम यहां आ गए। यहां एक बड़ा चिकित्सक है, वह तुम्हारी आंखें ठीक कर देगा।
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