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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ तो ऊपर से बह रहा है। यह अस्तित्व है ही इसलिए कि परमात्मा के पास जरूरत से ज्यादा है। यह उसका आनंद है बांटना। बिना बांटे वह नहीं रह सकता। इसलिए तुम यह मत सोचना कि तुम्हें जरूरत के हिसाब से दिया जा रहा है। तुम्हें तो जरूरत से सदा ज्यादा दिया जा रहा है। लेकिन तुम वासना की बड़ी लकीर खींचते चले जाते हो। और कितना ही तुम्हें मिलता जाए, तुम्हारी लकीर बड़ी होती जाती है। तो जो भी तुम पाते हो, वह सदा थोड़ा मालूम पड़ता है। जब तक वासना है तब तक तुम गरीब रहोगे, तब तक तुम भिखारी रहोगे। जिस दिन कोई वासना न रही उस दिन तुम्हारा सम्राट प्रकट होता है। उस दिन फिर तुम सम्राट हो। राम, स्वामी राम अपने को बादशाह कहते थे। लंगोटी थी उनके पास एक। और जब किसी ने पूछा अमरीका में कि क्यों कहते हो तुम अपने को बादशाह, कुछ तुम्हारे पास है नहीं! तो रामतीर्थ ने कहा, इसीलिए। मेरी कोई जरूरत नहीं है और कोई मांग नहीं है, तो तुम मुझे भिखारी कैसे कह सकते हो? और जो भिखारी नहीं है, वही सम्राट है। एक फकीर के घर एक अमीर आदमी एक बार मेहमान हुआ। फकीर का घर था, उसमें ज्यादा कुछ साज-सामान न था। थोड़ी-बहुत जरूरत की चीजें थीं। बस काम चल जाए, इतनी थीं। क्योंकि कम में काम चला लेने की कला फकीरों को आती है। अमीर बड़ा परेशान था। जब रात सोने लगा तो फकीर उसके द्वार पर आया और उसने कहा कि देखो, कोई ऐसी चीज जो यहां न हो और तुम्हें जरूरत मालूम पड़े तो मुझे बता देना। तो उस अमीर आदमी ने मजाक में कहा, बताने से क्या होगा? तुम करोगे भी क्या? जो है ही नहीं, मैं बता भी दूं तो तुम करोगे क्या? उस फकीर ने कहा, मैं तुम्हें रास्ता बता दूंगा कि उसके बिना कैसे काम चलाया जाए। हाउ टु डू विदाउट इट। कोई मैं चीज लाने वाला नहीं हूं। यहां चीज है ही नहीं, वह मुझे भी पता है। लेकिन जब मैं जी रहा हूं देखो, तो तुम भी जी सकते हो। तो अगर कोई अड़चन मालूम पड़े, तुम मुझे बता भर देना; फिर मैं तुम्हें तरकीब बता दूंगा कि उसके बिना कैसे चलाया जाए। यूनान में एक फकीर हुआ डायोजनीज। वह महावीर जैसा फकीर था, नग्न ही रहता था। दुनिया में डायोजनीज और महावीर समानांतर हैं, और करीब-करीब एक ही समय में हुए हैं। जब वह फकीर हो गया और नग्न घूमने लगा, तो एक भिक्षा-पात्र उसने अपने पास रखा था, जिसमें वह पानी पी लेता था, रोटी ले लेता था। फिर एक दिन उसने देखा एक झरने में एक कुत्ते को पानी पीते, उसने फौरन भिक्षा-पात्र फेंक दिया, और कुत्ते के जाकर चरणों में नमस्कार किया कि गजब कर दिया तूने भी, मात दे दी। हम यह सोचते थे कि बिना भिक्षा-पात्र के पानी कैसे पीएंगे। उस दिन से वह कुत्ते जैसा ही पानी पीने लगा। और जब लोग उससे पूछते, यह क्या है! तो उसने कहा, जब एक कुत्ता चला लेता है तो मैं कोई कुत्ता से गया-बीता तो नहीं। जब कुत्ता इतना बुद्धिमान है, बिना भिक्षा-पात्र के चला लेता है, तो मैं कितना ही गया-बीता होऊं, कुत्ते से गया-बीता तो नहीं। हम भी चला लेंगे। अगर कुत्ता इतनी फकीरी की शान रखता है तो हम कोई कुत्ते से छोटे फकीर नहीं।। और जिस कुत्ते के उसने पैर छुए थे और जिस कुत्ते से उसने सीखा था, कहते हैं, वह कुत्ता फिर सदा डायोजनीज के साथ रहा। जब सिकंदर डायोजनीज को मिला, तब वह कुत्ता भी पास बैठा हुआ था डायोजनीज के। वे दोनों रहते थे एक...। कचरेघर के आस-पास टीन का पोंगरा रख देते हैं कचरे को रोकने के लिए। ऐसा ही एक पोंगरा उसको कहीं पड़ा हुआ मिल गया था। उसी पोंगरे को आड़ा कर लिया था, उसी में वे दोनों रहते थे। सिकंदर जब मिलने आया, तब कुत्ता भी पास बैठा हुआ था। और जब सिकंदर ने डायोजनीज से प्रश्न पूछे तो वह सिकंदर को भी उत्तर देता था, बीच-बीच में वह कुत्ते से भी कहता था, सुन ले! 48
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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