________________
जीवन और मृत्यु के पार
को। कैसा झूठ बोल रहे हैं? युद्ध के मैदान पर, जहां कि मृत्यु अपनी प्रगाढ़ता में प्रकट होती है, जहां कि अर्जुन को साफ दिखाई पड़ रहा है कि ये मेरे प्रियजन, सगे, बंधु-बांधव, मेरे गुरुजन, ये सब थोड़ी ही देर में मिट्टी चाटते होंगे, थोड़ी ही देर में हम धूल-धूसरित हो जाएंगे, खून हमारा जमीन पर बह रहा होगा, शरीर कटे हुए पड़े होंगे, लाश और लाश के पहाड़ लग जाएंगे, वहां कृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि नहीं, तुझे न शस्त्र छेद सकते हैं और न अग्नि जला सकती है। यह ऐसे ही है जैसे मरघट पर कोई जल रही हो लाश और मैं तुमसे कहूं कि घबड़ाओ मत, आग तुम्हें जला नहीं सकती।
लेकिन कृष्ण ठीक ही कह रहे हैं। वे कोई मजाक नहीं कर रहे, न कोई झूठ बोल रहे हैं। क्योंकि तुम जो हो, उसका तुम्हें पता ही नहीं। अग्नि में जो जलता है, वह तुम नहीं हो। शस्त्र जिसे छेद जाते हैं, वह तुमसे बाहर है। वह तुम्हारा आवास हो भला, तुम्हारा वस्त्र हो, तुम नहीं हो। थोड़ी देर तुम रुके हो, पड़ाव हो भला, लेकिन तुम्हारी सत्ता नहीं है। तुम तो चैतन्य हो, तुम शुद्ध चैतन्य हो। शुद्ध चैतन्य को कैसे शस्त्र छेदेंगे? चेतना को शस्त्र छुएंगे कैसे? चेतना को अग्नि में जलाओगे कैसे? चेतना, अग्नि का कोई मिलन ही नहीं हो सकता। लोग कहते हैं, पानी और तेल को नहीं मिलाया जा सकता। लेकिन फिर भी पानी और तेल को मिलाने की कोशिश की जा सकती है। लेकिन अग्नि और चेतना को तो मिलाने की कोशिश भी नहीं हो सकती। चेतना कैसे जलेगी?
लाओत्से यही कह रहा है। वह यह कहता है कि कहते हैं, जो जीवन का सही संरक्षण करता है...।।
जो जीवन का ठीक-ठीक सम्यक उपयोग करता है, जीवन को वासना में नहीं गंवाता, समय को और की दौड़ में नहीं लगाता, अभाव के पीछे नहीं भागता, जो जीवन का संरक्षण करता है। क्या है संरक्षण?
तुम दो तरह से जी सकते हो। एक तो फूटी बाल्टी की तरह। कुएं में डालो, शोरगुल बहुत होता है, बाल्टी भरती भी दिखाई पड़ती है, जब पानी में डूबती है कुएं के तो भर जाती है। फिर खींचो, बड़ी आवाज मचनी शुरू होती है, क्योंकि सब तरफ से पानी गिरना शुरू होता है। और ऐसा लगता है कि बाल्टी पूरा सागर लेकर आ रही है। लेकिन जब तक तुम्हारे हाथ तक पहुंचती है, खाली हो जाती है। वह शोरगुल सागर का नहीं था, वह शोरगुल छिद्रों का था। वह शोरगुल इसलिए नहीं हो रहा था कि बाल्टी बड़ी विराट घटना को लेकर आ रही थी; वह इसलिए हो रहा था कि बाल्टी हजार-हजार छिद्रों से भरी थी।
तो एक तो फूटी बाल्टी की तरह का जीवन है। मरते दम तुम पाओगे कि तुम्हारे छेद से सब बह गया, जो भी तुम लेकर आए थे वह तुमने गंवा दिया, और बदले में तुम कुछ भी लेकर नहीं जा रहे हो। जीवन यूं ही गया। दूसरा एक ऐसा जीवन है, जिस बाल्टी में छिद्र नहीं। उसी को लाओत्से संरक्षण कह रहा है।
वासनाएं तुम्हारे छेद हैं, जिनसे जीवन की ऊर्जा बह जाती है। जब भी तुम वासना से भरते हो, तभी तुम अपने को गंवाते हो। निर्वासना संरक्षण है। इसलिए तो बुद्ध, महावीर, सभी का एक जोर है कि तृष्णा छोड़ दो, वासना छोड़ दो। मांगो मत। जो है, वैसे ही काफी है। तुम, जो है, उसको जी लो। और जितने कम से चल जाए। क्योंकि वह कम भी तुम्हारी वासना के कारण मालूम पड़ता है। वासना हटाओगे तो तुम पाओगे, वह कम कभी था ही नहीं।
बहुत बार तुमसे मैंने कहा है। अकबर ने एक दिन अपने दरबार में एक लकीर खींच दी और कहा, इसे बिना छुए छोटा कर दो। दरबारी बड़ी परेशानी में पड़ गए; न कर पाए छोटा। बिना छुए करोगे भी कैसे? फिर उठा बीरबल और उसने एक बड़ी लकीर उसके नीचे खींच दी। बिना छुए लकीर छोटी हो गई, तत्क्षण छोटी हो गई।
तुम्हारे पास जो है, वह बहुत थोड़ा मालूम पड़ रहा है; क्योंकि बड़ी वासना की लकीर तुमने खींच रखी है। वह थोड़ा नहीं है। वह जरूरत से ज्यादा है। परमात्मा सदा जरूरत से ज्यादा देता है। वह कोई कृपण नहीं है। और अस्तित्व कोई सौदा थोड़े ही कर रहा है तुम्हारे साथ। और अस्तित्व का तो देना आनंद है, ओवरफ्लोइंग है। अस्तित्व
47