________________
ताओ उपनिषद भाग ५
और इसी सब पाने की दौड़ में तुम्हारी मौत बड़ी हो रही है। क्योंकि तुम जीवन को चुका रहे हो। तुम जीवन को सम्हाल नहीं रहे। तुम जीवन की ऊर्जा को बेच रहे हो-ठीकरों में। इस जीवन-ऊर्जा से परमात्मा पाया जा सकता है। यही अवसर तुम तिजोड़ी भरने में लगा रहे हो। इसी अवसर से आत्मा भरी जा सकती है। अवसर बहुमूल्य है। एक-एक क्षण खोया गया वापस नहीं लौट सकता।
तुम जीवन की इस और की दौड़ से बचो। तुम उसे देखना शुरू करो जो तुम्हें मिला ही हुआ है। तुम उसकी बहुत चिंता मत करो जो तुम्हें मिला हुआ नहीं है। क्योंकि उसकी जिसने चिंता की, वह कभी भी विश्राम को न उपलब्ध हो सकेगा। क्योंकि कितना ही मिल जाए, सदा कुछ शेष रहेगा जो नहीं मिला हुआ है। क्या तुम सोचते हो, ऐसी कोई घड़ी आ जाएगी जब पाने को कुछ भी शेष न रहेगा?
कभी भी न आएगी। अनंत है विस्तार। तुम कैसे सब पा सकोगे? तुम्हारे छोटे हाथों में तुम इस अनंत को कैसे समा सकोगे? तुम कुछ पा लोगे तो बहुत कुछ पाने को शेष रहेगा। तुम कितना ही पा लोगे तो भी अनंत गुना पाने को शेष रहेगा। और कभी वह क्षण न आएगा जब तुम धन्यवाद दे सको। शिकायत बड़ी होती जाएगी। सम्राट की शिकायत गरीब की शिकायत से भी बड़ी हो जाती है। जितनी वासना बड़ी होती है उतनी ही बड़ी शिकायत हो जाती है। और शिकायत अधार्मिक आदमी का लक्षण है।
अगर कोई मुझसे पूछे तो मैं नास्तिक उसको नहीं कहता जो कहता है ईश्वर नहीं है। नास्तिक मैं उसको कहता हूं जिसके जीवन में सिवाय शिकायत के और कुछ भी नहीं है। भला वह मंदिर जाता हो, मस्जिद जाता हो, गुरुद्वारा जाता हो, लेकिन वह वहां भी शिकायत करता है। वह वहां भी कहता है कि यह तू क्या कर रहा है? तू क्या करवा रहा है? बेईमान जीते जा रहे हैं, मैं ईमानदार हारा जा रहा हूं। जिनकी कोई योग्यता नहीं है, वे सिर पर बैठे हैं और मुझ जैसा योग्य आदमी सड़कों पर भटक रहा है। अन्याय हो रहा है।
तुम्हारी सारी प्रार्थनाएं तुम्हारी शिकायतें हैं। और प्रार्थना कहीं शिकायत हो सकती है?
तुम उसी दिन मंदिर पहुंच पाओगे जिस दिन तुम धन्यवाद देने जाओगे, जिस दिन तुम कहने जाओगे कि मैं . किसी योग्य न था, मेरी कोई क्षमता और पात्रता न थी, और तूने इतना दिया! जिस दिन तुम्हारे पास जो है, तुम्हारी पात्रता से तुम्हें ज्यादा दिखाई पड़ेगा, उसी दिन प्रार्थना का जन्म होगा। फिर उस प्रार्थना का कोई अंत नहीं है। वह बढ़ती जाती है, बढ़ती जाती है। और एक घड़ी ऐसी आती है कि तुम्हारी पात्रता शून्य हो जाती है। उस शून्य पात्र में ही सारा अस्तित्व उतर आता है। जिस दिन तुम कह पाते हो, मेरी कोई भी योग्यता नहीं, मैं जीवन के योग्य भी न था, एक सांस भी ले सकू अस्तित्व की, इसकी भी मेरी कोई क्षमता न थी, और तूने मुझे अनंत जीवन दिया, जिस दिन तुम्हें इसमें परमात्मा के अनुग्रह के अतिरिक्त कुछ भी न दिखाई पड़ेगा, तुम बिलकुल शून्य मात्र हो जाओगे, उसी क्षण फिर तुम्हारी कोई मृत्यु नहीं है।
मृत्यु वासना की है। तुम्हारा जीवन वासना है, इसलिए तुम्हारे भीतर मृत्यु बड़ी होती है। तुम्हारे भीतर की वासना ही तुम्हारे भीतर की मृत्यु है। जो निर्वासना को उपलब्ध हुआ वह अमृत को उपलब्ध हो गया।
'कहते हैं, जो जीवन का सही संरक्षण करता है, उसे जमीन पर बाघ या भैंसे से सामना नहीं होता; न युद्ध के मैदान में शस्त्र उसे छेद सकते हैं; जंगली भैंसों के सींग उसके सामने शक्तिहीन हैं; बाघों के पंजे उसके समक्ष व्यर्थ हैं; और सैनिकों के हथियार निकम्मे हैं। यह कैसे होता है? क्योंकि वह मृत्यु से परे है।'
कृष्ण ने गीता में यही कहा है : नैनं छिन्दंति शस्त्राणि-न तो तुझे शस्त्र छेद सकते हैं; नैनं दहति पावकः-न अग्नि तुझे जला सकती है।
लेकिन शरीर तो जल जाता है। शरीर को तो छेद देते हैं शस्त्र। और युद्ध के मैदान पर कृष्ण कहते हैं अर्जुन
46