________________
ताओ उपनिषद भाग ५
सुना है मैंने, मुल्ला नसरुद्दीन नियाग्रा जलप्रपात देखने गया। शिकायती आदमी है; अहोभाव मुश्किल है। किसी चीज को देख कर तृप्त होना असंभव है। किसी चीज को देख कर प्रसन्न होना मुश्किल है। खड़ा है नियाग्रा जलप्रपात के पास। जो मार्गदर्शक है, वह प्रशंसा करता है। क्योंकि ऐसा कोई जलप्रपात नहीं, ऐसी अनूठी घटना है नियाग्रा। लेकिन मुल्ला नसरुद्दीन ऐसे खड़ा है जैसे कुछ भी नहीं।
वह मार्गदर्शक कहता है, आप ऐसे खड़े हैं, गौर से तो देखें! यह अनूठी घटना है। कितना जल गिर रहा है, पता है आपको? अरबों-खरबों गैलन प्रति सेकेंड! मुल्ला ने ऐसी नजर डाली और कहा, दिन भर में कितना गिरता है? आंकड़े। दिन भर में कितना गिरता है? उस आदमी ने कहा, मुझे हिसाब नहीं, लेकिन आप अंदाज कर सकते हैं। असंख्य गैलन! और मुल्ला ने कहा, रात भर भी गिरता रहता है? लेकिन उसके मन पर कोई भाव नहीं है। इस विराट घटना के करीब भी वह ऐसे ही खड़ा है जैसे बाथरूम में नल की टोंटी खोल कर खड़ा रहता हो। कोई फर्क नहीं है।
शिकायती को तुम किसी भी क्षण में विराट से नहीं भर सकते। वह विराट की भी नाप-जोख कर लेगाः कितने गैलन दिन में? रात में भी गिरता है? वह विराट को भी माप लेगा।
और जब भी तुम किसी चीज को माप लोगे, तुम्हारा मन कहेगा, इससे बड़ा भी तो हो सकता है। तो इसमें प्रभावित होने का क्या है? पानी ही तो गिर रहा है। कोई सोना तो नहीं बरस रहा। और जितनी भी बड़ी संख्या हो, इससे क्या फर्क पड़ता है। अन्यथा तो एक पानी की बूंद, सुबह दूब पर पड़ी एक ओस, सूरज की चमकती किरणें-और विराट प्रकट हो जाता है। कोई नियाग्रा जाने की जरूरत है? एक बूंद काफी है, अगर अहोभाव हो। अन्यथा नियाग्रा भी काफी नहीं है।
कैसे तुम्हारे भीतर मौत बड़ी होती है?
लाओत्से कहता है, तुम्हारे भीतर मौत बड़ी होती है, क्योंकि तुम जो हो उससे तुम तृप्त नहीं। लाओत्से यह कह रहा है, अतृप्ति से मौत सघन होती है, बनती है, निर्मित होती है। अतृप्ति मौत है।
इसलिए तो बूढ़े मरते हैं। क्योंकि बूढ़े अतृप्ति के ज्यादा करीब पहुंच जाते हैं बच्चों की बजाय। बच्चे • छोटी-छोटी चीजों में तृप्त मालूम होते हैं। एक खिलौना, एक उड़ती तितली काफी है। एक छोटा सा घास में खिला फूल पर्याप्त खजाना है। छोटे बच्चे इतने ताजे और जीवंत हैं, मौत बड़ी दूर है। क्योंकि छोटे-छोटे में, क्षुद्र में भी विराट का दर्शन हो रहा है।
लेकिन यह अज्ञान के कारण हो रहा है। जल्दी ही मौत प्रवेश कर जाएगी। जल्दी ही शिकायत शुरू हो जाएगी। जल्दी ही बच्चा भी कहने लगेगा, और चाहिए। फिर उसका कोई अंत नहीं है।
एक मित्र मेरे पास आते थे। एक राज्य में शिक्षा मंत्री हैं। उन्होंने मुझसे कहा, मुझे नींद नहीं आती। और कहने लगे, न मुझे ईश्वर की खोज है, न मुझे आत्मा जाननी, न मुझे मोक्ष की इच्छा है। मैं आपके पास सिर्फ इसलिए आया हूं कि मुझे सिर्फ नींद आ जाए। यह मेरे जीवन-मरण का प्रश्न है। मैं सब दवाइयां लेकर हार चुका। ट्रैक्वेलाइजर लेता हूं तो सुस्ती आ जाती है, नींद नहीं आती। उलटा सुबह और भी ज्यादा बेचैन उठता हूं। फिर सुबह मुझे शक्ति पाने के लिए और ताजगी पाने के लिए दूसरी दवाइयां लेनी पड़ती हैं। तो आप इतना ही करें कि मुझे किसी तरह नींद आ जाए। क्या ध्यान से नींद आ सकेगी? और ज्यादा मेरी मांग नहीं है।
जब वे यह बोल रहे थे तो मैंने इशारा किया और उनकी सब बातें टेप कर ली गईं। क्योंकि मैं जानता हूं, राजनीतिज्ञ हैं, इनकी बात का कोई भरोसा नहीं है। और यह भी मैं जानता हूं कि जब साधारण आदमी की और की दौड़ इतनी ज्यादा होती है तो राजनीतिज्ञ की तो और ज्यादा होनी ही चाहिए। वह तो मनुष्यों में सब से ज्यादा पागल मनुष्य है। ये कैसे सिर्फ नींद से राजी हो जाएंगे? मुझे भरोसा नहीं आया।