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जीवन और मृत्यु के पार
फकीर उसके साथ ही फिर-फिर टहलता रहा। आखिर उस आदमी ने पूछा, और मैं तो तुमसे पूछा ही नहीं, आप किसका पहरा दे रहे हैं? उस फकीर ने कहा कि जरा कहना कठिन है, मालिक भीतर है, पहरा उसका दे रहा हूं। लेकिन तुम जैसा कुशल नहीं। चौबीस घंटे बहुत दूर, चौबीस क्षण भी पहरा नहीं लग पाता। कभी क्षण भर को लग जाए तो बहुत। फिर छूट जाता है; फिर छूट जाता है। फिर छूट जाता है।
. फिर दोनों टहलते रहे। उस फकीर ने विदा होते वक्त कहा कि क्या तुम मेरे नौकर होना पसंद करोगे? उस आदमी ने कहा, बड़ी खुशी से। तुम प्यारे आदमी मालूम पड़ते हो; तुम्हारा पास होना ही सुखद था। ऐसी शांति मैंने कभी किसी के पास नहीं जानी। खुशी से। लेकिन काम क्या होगा? फकीर ने कहा, काम यही होगा, मुझे याद दिलाते रहना, टु रिमाइंड मी। जब-जब मैं सो जाऊं, मुझे जगा देना। जब-जब मैं होश खोऊं, मुझे हिला देना। याद मेरी बनी रहे। उसने पूछा, लेकिन याद क्या कर रहे हो? कौन सी चीज की याद कर रहे हो? तो उसने कहा, एक तरफ से मौत की याद और दूसरी तरफ से परमात्मा की याद।।
और ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इधर तुमने मौत को पूरी तरह याद किया कि उधर परमात्मा की याद अपने आप सघन होने लगती है। अगर तुम्हें मौत अभी दिखाई पड़ जाए तो तत्क्षण तुम्हारे हृदय से परमात्मा की पुकार और प्यास उठेगी। जैसे प्यासे आदमी को पानी की याद आती है। मौत प्यास है; मौत से भयभीत मत होना। मौत तो पानी की याद है। इसलिए मौत से बचना नहीं है; मौत से छिपना भी नहीं है। छिप भी न सकोगे, बच भी न सकोगे। कोई कभी नहीं बचा। हां, मौत के पार जा सकते हो। मौत तुम्हारे भीतर उग रही है, बड़ी हो रही है। तुम उसे सम्हाल रहे हो। वह तुम्हारा गर्भ है। यह पहली बात। _ 'जीवन से निकल कर मृत्यु आती है। जीवन के साथी (अंग) तेरह हैं। मृत्यु के भी साथी (अंग) तेरह हैं। और जो मनुष्य को इस जीवन में मृत्यु के घर भेजते हैं, वे भी तेरह ही हैं।'
चीन में लाओत्से के समय में ऐसी प्रचलित धारणा थी। धारणा ठीक भी है कि आदमी के शरीर में नौ छेद हैं; उन्हीं नौ छेदों से जीवन प्रवेश करता है। और उन्हीं नौ छेदों से जीवन बाहर जाता है। और चार अंग हैं। सब मिला कर तेरह। दो आंखें, दो नाक के स्वर, मुंह, दो कान, जननेंद्रिय, गुदा, ये नौ तो छिद्र हैं। और चार-दो हाथ और दो पैर। ये तेरह जीवन के भी साथी हैं और यही तेरह मृत्यु के भी साथी हैं। और यही तेरह तुम्हें जीवन में लाते हैं और यही तेरह तुम्हें जीवन से बाहर ले जाते हैं। तेरह का मतलब यह पूरा शरीर। इन्हीं से तुम भोजन करते हो; इन्हीं से तुम जीवन पाते हो; इन्हीं से उठते-बैठते-चलते हो; ये ही तुम्हारे स्वास्थ्य का आधार हैं। और ये ही तुम्हारी मृत्यु के भी आधार होंगे। क्योंकि जीवन और मृत्यु एक ही चीज के दो नाम हैं। इन्हीं से जीवन तुम्हारे भीतर आता, इन्हीं से बाहर जाएगा। इन्हीं से तुम शरीर के भीतर खड़े हो। इन्हीं के साथ शरीर टूटेगा, इनके द्वारा ही टूटेगा।
यह बड़ी हैरानी की बात है, ये ही तुम्हें सम्हालते हैं, ये ही तुम्हें मिटाएंगे। भोजन तुम्हें जीवन देता है, शक्ति देता है। और भोजन की शक्ति के ही माध्यम से तुम अपने भीतर की मृत्यु को बड़ा किए चले जाते हो। भोजन ही तुम्हें बुढ़ापे तक पहुंचा देगा, मृत्यु तक पहुंचा देगा। आंख से, कान से, नाक से, जीवन की श्वास भीतर आती है, उन्हीं से बाहर जाती है। नौ द्वार और चार अंग।
लाओत्से कहता है, तेरह ही जीवन के साथी, तेरह ही मौत के साथी। ये तेरह ही लाते हैं, ये तेरह ही ले जाते हैं। अगर तुम सजग हो जाओ तो तुम चौदहवें हो। इन तेरह में तुम नहीं हो; इन तेरह के पार हो।
इस तेरह की संख्या के कारण चीन में, और फिर धीरे-धीरे सारी दुनिया में, तेरह का आंकड़ा अपशकुन हो गया। वह चीन से ही फैला। पश्चिम में जहां तेरह का आंकड़ा अपशकुन है उनको पता भी नहीं कि क्यों अपशकुन है। उसका जन्म चीन में हुआ। उस सुपरस्टीशन की पैदाइश चीन में हुई।
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