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ताओ उपनिषद भाग ५
और अगर सयानों में तुम्हें भेद दिखाई पड़े तो अपनी भूल समझना। वह भेद तुम्हारी नासमझी के कारण दिखाई पड़ता होगा। सयानों के कहने के ढंग अलग-अलग होंगे। होने ही चाहिए। सयानों के व्यक्तित्व अलग-अलग हैं। वे जो भी बोलेंगे, वह अलग-अलग होगा। उनके गीतों के शब्द कितने ही अलग हों, लेकिन उनका गीत एक ही है। और संगीत वे अलग-अलग वाद्यों पर उठा रहे होंगे, लेकिन उनका संगीत एक ही है, उनकी लयबद्धता एक ही है। जो कबीर ने कहा है वही लाओत्से कह रहा है-अपने ढंग से।
लाओत्से के एक-एक वचन को समझने की कोशिश करें। 'जीवन से ही निकल कर मृत्यु आती है। आउट ऑफ लाइफ डेथ एण्टर्स।'
तो तुम ऐसा मत सोचना कि मृत्यु कहीं अलग खड़ी है। ऐसा मत सोचना कि मृत्यु कोई दुर्घटना है। ऐसा मत सोचना कि मृत्यु कहीं बाहर से आती है; कोई भेजता है। तुम्हारे भीतर ही मृत्यु बड़ी हो रही है। तुम्हारे साथ ही चल रही है। अगर तुम बायां कदम हो तो मृत्यु दायां, अगर तुम दायां कदम हो तो मृत्यु बायां। वह तुम्हारा ही पहलू है। एक पैर तुम्हारा जीवन है तो दूसरा पैर तुम्हारी मौत है। वह तुम्हारे साथ ही बढ़ रही है। तुम जब भोजन कर रहे हो तब जीवन को ही गति नहीं मिल रही है, मृत्यु को भी मिल रही है। जब तुम श्वास ले रहे हो तो जीवन ही उससे शक्तिमान नहीं हो रहा है, मृत्यु भी हो रही है। तुम्हारी हर श्वास में छिपी है। भीतर आती श्वास अगर जीवन है तो बाहर जाती श्वास मृत्यु है।
इसलिए तुम ऐसा मत सोचना कि मृत्यु कहीं भविष्य में है, दूर; सत्तर-अस्सी साल बाद घटेगी। ऐसे ही टाल-टाल कर तो तुमने जीवन गंवाया है; यही सोच-सोच कर कि कभी होगी, अभी क्या जल्दी है। और मृत्यु अभी हो रही है। क्योंकि संसार इस क्षण के अतिरिक्त किसी समय को जानता ही नहीं; कोई भविष्य नहीं है। अस्तित्व के लिए वर्तमान ही एकमात्र समय है। जो भी हो रहा है अभी हो रहा है। इसी क्षण तुम पैदा भी हो रहे हो, इसी क्षण तुम मर भी रहे हो। इसी क्षण जीवन, इसी क्षण मौत। वे दो किनारे; तुम्हारी जीवन की सरिता उनके बीच इसी क्षण बह रही है। तो तुम जो भी कर रहे हो, वह दोनों के लिए ही भोजन बनेगा। तुम उठोगे तो जीवन उठा और मौत भी उठी; तुम । बैठोगे तो जीवन बैठा और मौत भी बैठी।।
तो पहली बात लाओत्से कहता है कि मृत्यु को तुम अपने से अलग मत समझ लेना।
सारे जगत में, सारे पुराणों में कथाएं हैं। सभी कथाएं धोखा देती हैं। धोखा यह देती हैं कि मौत कोई भेजता है। कोई यमदूत आता है भैंसे पर सवार होकर, या कि कोई यमराज भेजता है मृत्यु को तुम्हें लेने के लिए। ये सब बातें कहानियां हैं। मृत्यु उसी दिन आ गई जिस दिन तुम पैदा हुए; तुम्हारे जन्म के बीज में ही छिपी थी।
अब तो वैज्ञानिक कहते हैं कि बहुत जल्दी इस बात के उपाय हो जाएंगे कि जैसे ही बच्चा गर्भ धारण करेगा वैसे ही हम पता लगा लेंगे कि कितने दिन जिंदा रहेगा। क्योंकि वह जो पहला बीज है, उस बीज में ब्लू-प्रिंट है, उस बीज में पूरी कथा छिपी है कि यह कितने साल जीएगा-सत्तर, कि अस्सी, कि पचास, कि दस, कि पांच। ज्योतिषी तो हार गए भविष्य के संबंध में बता-बता कर; विज्ञान जल्दी ही बताने में पूरी तरह समर्थ हो जाएगा। तो बच्चे के सर्टिफिकेट के साथ, कि बच्चे का जन्म हुआ, तुम जाकर सर्टिफिकेट ले आ सकोगे वैज्ञानिक से कि यह कितने दिन जीएगा, कितनी इसकी उम्र होगी। मौत उसी दिन आ गई जिस दिन यह पैदा हुआ। कहीं और मौत घटने वाली नहीं है। इसलिए तुम टाल न सकोगे। इसलिए पोस्टपोन करने का कोई उपाय नहीं है। .
और तुम टालते हो। और तुम भी भलीभांति पहचानते हो इस बात को कि रोज तुम बूढ़े हो रहे हो, रोज तुम मर रहे हो। रोज तुम्हारे हाथ से जीवन-ऊर्जा छूटी जाती है; रोज तुम खाली हो रहे हो। लेकिन फिर भी तुम टालते हो। वह कहानी तुम्हें सहायता देती है कि मौत कहीं अंत में है, जल्दी क्या है। अभी और दूसरे काम कर लो।
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