SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धारणारहित सत्य और शर्तरहित श्रद्धा - संत एक दर्पण है। और जब तुम संत के पास जाओ तो बहुत सम्हल कर जाना। क्योंकि वह तुम्हीं को बताएगा, और तुम समझोगे कि यह उसकी धारणा है। वह तुम्हीं को प्रकट कर देगा। वह तुम्हीं को तुम्हारे सामने रख देगा कि यह रहे तुम! सुलझा लो, उलझा लो; जो तुम्हें करना हो। लेकिन वह तुम्हें खोल कर रख देगा। अगर तुम समझदार हो-थोड़े भी समझदार हो-तो तुम उस सुलझाव से बड़े कीमती सूत्र पा लोगे; तुम्हारा पूरा पथ खुल जाएगा। अगर तुम बिलकुल ही बुद्धिहीन हो तो तुम संत के पास जाकर और भी उपद्रव होकर लौटोगे। क्योंकि जो उसने बताया था दर्पण की तरह, उसे तुम आदेश समझोगे। जैन शास्त्रों में एक बड़ी अदभुत बात है। वे कहते हैं, तीर्थंकर उपदेश देते हैं, आदेश नहीं। उपदेश और आदेश का यही फर्क है। उपदेश का मतलब यह है : कह दिया, मानना हो मानो; न मानना हो न मानो; बता दिया, चलना हो चलो; न चलना हो न चलो। आदेश का मतलब है: चलना पड़ेगा। पूछा ही क्यों था अगर नहीं चलना था? आदेश का अर्थ है: लो कसम, व्रत लो! उपदेश का अर्थ है: जो मेरे भीतर झलका तुम्हें देख कर, वह कह दिया; इसको तुम जीवन का बंधन मत बना लेना। इस पर चल सको, चलना; न चल सको, फिक्र मत करना, चिंता मत बना लेना। यह तुम्हारे ऊपर बोझ न हो जाए। सब आदेश बोझ हो जाते हैं; क्योंकि आदेश पत्थर की तरह हैं। उपदेश फूलों की तरह हैं, वे बोझ नहीं होते। नानक एक गांव में आकर ठहरे। तो गांव बड़े फकीरों का गांव था, बड़े संत थे वहां; सूफियों की बस्ती थी। तो सूफियों का जो प्रधान था उसने एक कटोरे में दूध भर कर भेजा। कटोरा पूरा भरा था। नानक बैठे थे गांव के बाहर एक कुएं के पाट पर। मरदाना और बाला गीत गा रहे थे। नानक सुबह के ध्यान में थे। कटोरा भर कर दूध आया तो बाला और मरदाना ने समझा कि फकीर ने स्वागत के लिए दूध भेजा है-सुबह के नाश्ते के लिए। लेकिन नानक ने पास की झाड़ी से एक फूल तोड़ा, दूध के कटोरे में रख दिया। दूध तो एक बूंद भी नहीं समा सकता था उस कटोरे में, वह पूरा भरा था; लेकिन फूल ऊपर तिर गया। छोटा सा फूल झाड़ी का, जंगली झाड़ी का फूल, ऊपर तिर गया। कहा, कटोरा वापस ले जाओ। मरदाना और बाला ने कहा, यह आपने क्या किया? यह तो नाश्ते के लिए दूध आया था। और हम कुछ समझे नहीं। उन्होंने कहा, रुको, सांझ तक समझोगे।। क्योंकि सांझ को वह फकीर नानक के चरणों में आ गया। उसने चरण छुए और कहा कि स्वागत है आपका! तब मरदाना और बाला, नानक के शिष्य कहने लगे, हमें अब अर्थ खोल कर कहें! तो नानक ने कहा, इस फकीर ने भेजा था दूध का कटोरा पूरा भर कर कि अब यहां और फकीरों की जरूरत नहीं है, बस्ती पूरी भरी है। यहां वैसे ही काफी गुरु हैं; और गुरु की कोई जरूरत नहीं है। शिष्यों की तलाश है, गुरु तो ज्यादा हैं। और अब आप और आ गए, इससे और उपद्रव होगा, कुछ सार नहीं होने वाला। आप कहीं और जाएं। तो मैंने फूल रख कर उस पर भेज दिया कि मैं तो एक फूल की भांति हूं, कोई जगह न भरूंगा, तुम्हारी कटोरी पर तिर जाऊंगा। आदेश पत्थर की भांति है; उपदेश फूल की भांति है। उपदेश जब तुम्हें कोई संत देता है तो वह तुम्हें भरता नहीं, तुम्हारे ऊपर फूल की तरह तिर जाता है। उसकी सुगंध का अनुसरण तुम कर सको तो तुम्हारा जीवन भी वैसा फूल जैसा हो जाएगा। न कर सको तो संत तुम्हारे ऊपर बोझ नहीं है। आदेश बोझ है। आदेश! मिलिटरी में देना तो ठीक है आदेश; क्योंकि वहां अंधों की कतार खड़ी करनी है, वहां बुद्धिहीनों की जमात बनानी है। इसलिए जनरल आदेश दे, वह तो समझ में आता है; संत आदेश दे, वह बिलकुल समझ में नहीं आता। संत कोई सैनिक खड़े नहीं कर रहा है। सैनिक और संत बिलकुल विपरीत हैं। सैनिक को आदेश देना पड़ता है। और अगर तुम्हें भी संतत्व की तरफ ले जाना हो, उपदेश काफी है। वे लोगों के मत व भाव को सिर्फ झलका देते हैं।
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy