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ताओ उपनिषद भाग ५
एक जैन साधु मुझसे पूछने आए थे। तो मैंने उनसे यही कहा कि जो सत्य है उसको छिपाने की कोई जरूरत नहीं। अगर तुम्हें कुछ भी नहीं मिला इस सब उपवास, त्याग, ढोंग, उपद्रव से, छोड़ दो। उन्होंने कहा, छोड़ तो दें, लेकिन अभी जो लोग मेरे पैर छूते हैं वे ही मुझे जूते मारेंगे। वे कहेंगे, यह भ्रष्ट हो गया।
बड़ी मजेदार दुनिया है। यानी इस ईमानदार आदमी को, अगर यह कह दे कि मुझे कुछ नहीं मिला, तो लोग कहेंगे, तुम्हें नहीं मिला, क्योंकि तुम पापी हो, तुमने ठीक से प्रयास नहीं किया। कहीं ऐसा हो सकता है कि इतने दिन से, और इतने पूंछ कटे लोग, और किसी को न मिला हो? सदा से जो चली आ रही है, सनातन जो धर्म है, उसमें तुम्ही एक ज्ञानी पैदा हुए! तुम्हारे पाप कर्मों की बाधा पड़ रही है। तुम्हीं गड़बड़ हो। लोग यह कहेंगे।
तो मैंने कहा, तुम करते क्या हो? उन्होंने कहा, मैं भी वही समझा रहा हूं लोगों को जिसमें मुझे कुछ नहीं मिला। रोज दिन भर समझाता हूं, रात भर सिर ठोकता हूं कि यह क्या मामला हो गया! और यह भी मैं जानता हूं कि इनको समझा कर मैं ज्यादा से ज्यादा यही करवा सकता हूं जो मैंने किया है। भीतर डर भी लगता है कि यह पाप भी है। लेकिन मैं पढ़ा-लिखा भी नहीं हूं। अगर मैं छोड़ भी दूं-अभी मैं सब तरह की प्रतिष्ठा का पात्र हूं-अगर मैं छोड़ दूं तो मुझे कोई पचास रुपए की नौकरी यही भक्त नहीं दे सकेंगे जो अभी मेरे पैर छूते हैं और लाखों रुपए लाकर रखते हैं। फिर . भी मैंने कहा कि तुम आदमी ईमानदार अगर हो तो यह कष्ट से भी गुजर जाओ; छोड़ दो। देखें, क्या होता है?
सच में ही उसने छोड़ दिया। और वही हुआ जो उसने कहा था। सारे जैनी उसके पीछे पड़ गए कि वह भ्रष्ट हो गया; पापी है; संसार में वापस लौट आया।
___एक सभा में हैदराबाद में मैं बोल रहा था तो वह भ्रष्ट–जैनियों की नजरों में, पूंछ कटा आदर्मी वह भी मौजूद था। वह मेरे साथ ही सभा-मंडप तक आया और मेरे साथ ही मंच पर जाकर बैठ गया। वह जैनियों का मंदिर था। वहां उपद्रव मच गया। वे मेरी वजह से कुछ कह भी न सके, लेकिन खुसर-पुसर शुरू हो गई कि यह आदमी मंच पर नहीं होना चाहिए। आखिर मेरे पास एक चिट्ठी आई कि और सब ठीक है, इस आदमी को यहां से हटाइए; यह आदमी भ्रष्ट है।
मैंने उनको बहुत समझाया कि यह आदमी भ्रष्ट नहीं है, बहुत ईमानदार है। और असली त्याग इसने अब किया है कि यह हिम्मत इसने जुटाई। क्योंकि मैं तुम्हारे दूसरे साधुओं को भी जानता हूं। उनसे भी मेरी अंतरंग बातें हुई हैं। और उनको भी मैंने इसी हालत में पाया है। लेकिन यह आदमी ईमानदार है। उन्होंने कहा, यह आप भ्रष्टाचार फैलवा रहे हैं; इसको नीचे उतारो। आखिर उन्होंने इतना उपद्रव मचाया कि वे चढ़ बैठे मंच पर और उस आदमी को खींच लिया नीचे; उसकी मार-पीट कर दी। और वह आदमी सच में ईमानदार है। जब नहीं मिला कुछ तो वह कह रहा है कि भई मुझे नहीं मिला। लेकिन ईमानदारी की थोड़े ही पूजा है! बेईमान पूजे जाते हैं।
यह कटी-पूंछ वाली लोमड़ी अगर लोगों से जाकर कहेगी कि हम फिजूल कट गए, तुम मत कटवाना, तो लोमड़ियां ही इस पर हंसेंगी कि ऐसा कहीं होता है? सनातन से पूंछ कटे हुए लोग ज्ञान को उपलब्ध होते रहे हैं।
बड़ा दुष्ट जाल है। तुम भी जानते हो कि तुमने भी बहुत उपाय करके देख लिए हैं, वे व्यर्थ जाते हैं, फिर भी तुम किसी को कहते नहीं कि वे व्यर्थ जाते हैं। तुम भी अपने मन को समझा लेते हो कि चुप ही रहो। क्योंकि लोग यही कहेंगे कि उपाय तो गलत हो ही नहीं सकते, तुम ही गलत होओगे। अपने को ढांके हुए हो।
लाओत्से उसी को संत कहता है जो न तो किसी को सुधारने में उत्सुक है और इसलिए किसी को बिगाड़ने का कारण नहीं बनता। संत की तो भाव-दशा यह है कि जो हो रहा है उसे वह और सुगमता से होने के लिए तुम्हें मार्ग दे। और तुम्हें सहयोग दे कि ठीक है, तुम पश्चिम जा रहे हो, जाओ; मेरे आशीर्वाद। और पश्चिम में मैं भी गया हूं; उस रास्ते पर ये-ये कठिनाइयां हैं, बच सको तो ठीक। और उससे लौटने के उपाय हैं, खयाल में रखना। कभी
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