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ताओ उपनिषद भाग ५
इसलिए तो कबीर कहते हैं : शून्य मरे, अजपा मरे, अनहद हू मरि जाए।
शून्य भी मर जाता है। क्योंकि शून्य भी अनुभव है। अगर तुम कहते हो कि मुझे शून्य का अनुभव हो रहा है, यह भी मन का ही नाटक है। अनुभव मात्र मन का है। एक्सपीरिएंस ऐज सच इज़ ऑफ दि माइंड। जब सब अनुभव चला जाता है। शून्य मरे, अजपा मरे, अनहद हू मरि जाए।
कुछ भी नहीं बचता, वही वास्तविक शून्य है। जहां कोई अनुभव नहीं बचता, वही वास्तविक शून्य है। जहां तुम यह भी नहीं कह सकते कि मुझे शून्य का अनुभव हो रहा है। कुछ बचा ही नहीं; अनुभव किसका? सिर्फ अनुभोक्ता रह गया-अपनी परम महिमा में, अपनी परम ऊर्जा में प्रतिष्ठित। सब खो गया। नाटक बंद हुआ। तुम अपने घर आ गए। यह घर लौट आना मोक्ष है।
इसलिए लाओत्से कहता है, 'किसी चीज के अस्तित्व में आने से पहले उससे निपट लो।'
यही निपटना है। मन में सब सूक्ष्म बीज छिपे हैं। तुम उनसे निपट लो। उनको प्रकट हो जाने दो मन में; कृत्य मत बनाओ उन्हें। कृत्य बनते ही कर्म का जाल शुरू होता है। मन में प्रकट होने दो। तुम उन्हें देखो और साक्षी बन जाओ। ___ 'परिपक्व होने के पहले उपद्रव को रोक दो। जिसका तना भरा-पूरा है, वह वृक्ष नन्हे से अंकुर से शुरू होता है।'
मिटाना हो तो नन्हे अंकुर को मिटा दो। बड़े वृक्ष को मिटाना मुश्किल हो जाएगा। फिर जिसे मिटाना ही है उसे बड़ा क्यों करना? फिर जिससे पार ही होना है उसे सींचना क्यों? फिर जिससे दूर ही जाना है उससे लगाव क्यों बनाना? फिर जिससे मुक्त ही होना है उससे किसी तरह का मोह क्यों बसाना? जब इस जगह से हट ही जाना है, तो इसे धर्मशाला ही समझो, घर क्या बना लेना? पड़ाव को मंजिल मत बनाओ। इसके पहले कि पड़ाव मंजिल बने, हट जाओ। इसके पहले कि कोई चीज तुम्हें पकड़ ले, इसके पहले कि तुम जकड़ जाओ, तभी सावधान हो जाओ।
'नौ मंजिल वाला छज्जा मुट्ठी भर मिट्टी से शुरू होता है। हजार कोसों वाली यात्रा यात्री के पैर से शुरू होती है। ए जर्नी ऑफ ए थाउजैंड ली बिगिन्स एट वंस फीट।' __ लाओत्से के प्रसिद्धतम वचनों में से एक यह है।
कथा है-पुरानी चीनी कथा है कि एक आदमी बहुत वर्षों से सोचता था कि पास के पहाड़ पर एक तीर्थ स्थान था, उसकी यात्रा को जाना है। लेकिन दूरी थी। कोई बीस मील दूर था। तो सुबह लोग बड़ी जल्दी जाते थे; दो बजे रात निकल जाते थे, ताकि ठंडे-ठंडे पहुंच जाएं। पैदल जाना ही एकमात्र उपाय था उस पहाड़ पर। वह टालता रहा था बहुत दिन तक। दूर-दूर से यात्री उसके गांव से गुजरते थे। आखिर उससे न रहा गया। एक दिन उसने तय ही कर लिया। उसने पुराने यात्रियों से पूछा कि साज-सामान क्या ले जाना पड़ेगा? उन्होंने और सब सामान भी बताया और कहा कि एक लालटेन भी ले जाना। क्योंकि रात दो बजे अंधेरा होता है। रास्ता बीहड़ है। रोशनी के बिना चलना खतरनाक है। अनेक लोग गिर गए हैं और मर गए हैं।
तो वह आदमी रात दो बजे उठा। उसने लालटेन जलाई। वह गांव के बाहर आया। वह बड़ा गणितज्ञ रहा होगा। बड़े हिसाब-किताब का आदमी था। उसने गांव के बाहर आकर देखा लालटेन को, कितनी दूर तक रोशनी पड़ती है? मुश्किल से कोई दस कदम रोशनी पड़ती थी। उसने कहा, दस कदम रोशनी पड़ती है और बीस मील का रास्ता है। मारे गए। अंधेरा बहुत, रोशनी कम। गणित साफ है। दस कदम रोशनी पड़ती है; बीस मील का रास्ता है। कैसे पार होगा? वह वहीं बैठ गया, कि क्या करना? लौटना भी शोभा नहीं देता, बामुश्किल तो निकले घर से। कई वर्षों से सोचा, चर्चा की, आखिर घर के लोग भी ऊब गए थे उससे कि जाना हो तो जाओ भी, बातचीत क्या लगा रखी है! तो वह बैठ गया।
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