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________________ जो प्रारंभ हैं वही अंत हैं 375 एक फकीर और यात्रा पर आ रहा था। उसके पास और भी छोटी लालटेन थी। उसने उस फकीर को रोका कि रुको, झंझट में पड़ोगे । हम पर बड़ी लालटेन है; दस कदम तक रोशनी पड़ती है। तुम ऐसी लालटेन लिए हो कि मुश्किल से चार कदम दिखाई पड़ रहा है। कैसे पहुंचोगे ? बीस मील की यात्रा है ! वह फकीर खिलखिला कर हंसा। उसने कहा, पागल, अगर एक कदम रोशनी पड़ जाए तो काफी है। क्योंकि एक कदम से ज्यादा कोई चलता कहां है! और एक कदम रोशनी से तो लोग हजारों मील की यात्रा पूरी कर लेते हैं । बस उतनी रोशनी काफी है, एक कदम दिख जाए। तुम एक कदम चल लिए, फिर एक कदम और दिखने लगा, तुम एक कदम और चल लिए। दो कदम तो कोई भी एक साथ चल नहीं सकता। उस गणितज्ञ ने कहा, तुम मुझे समझाने की कोशिश मत करो। गणित में मैं निष्णात हूं। साफ बात है कि दस मील में दस कदम का भाग दो। इस तरह तुम मुझे धोखा न दे सकोगे। और मैं कोई श्रद्धालु आदमी नहीं हूं, तर्कनिष्ठ आदमी हूं। लाओत्से कहता है कि वह आदमी कभी भी यात्रा पर न जा पाएगा। एक कदम से हजार मील की यात्रा शुरू होती है; एक कदम से ही पूरी भी हो जाती है। इसलिए तो लाओत्से इसको कहता है, आरंभ और अंत । बिगनिंग एंड एंड। पहले कदम पर ही यात्रा की शुरुआत है और पहले कदम पर ही यात्रा का अंत है। पहला कदम क्या है? कि तुम समस्याओं को उनके आने के पहले निवारण कर लो; यही प्रथम, यही अंतिम है । इतना तुमने कर लिया, सब हो गया। इतना तुमने साध लिया, सब सध गया। एक कदम तुम साध लो - गंगोत्री का, प्रथम चरण का — फिर कुछ उलझता नहीं। चीजें सुलझती चली जाती हैं। और एक कदम सुलझाना तुम जानते हो। एक कदम से ज्यादा कोई कभी उठाता ही नहीं। जब भी एक कदम उठाओगे, सुलझा लोगे। आज सुलझा लिया, कल भी सुलझा लोगे, परसों भी सुलझा लोगे। एक कदम उठता रहेगा, सुलझता रहेगा; एक कदम रोशनी पड़ती रहेगी। फिर तीर्थ कितने ही दूर हो, किसको चिंता है? पहला कदम जिसका उठ गया ठीक, सुलझा हुआ, उसकी मंजिल आ गई करीब । इसलिए लाओत्से कहता है, यही अंत, यही प्रारंभ। और जो प्रारंभ में ही भटक जाए वह कभी अंत तक नहीं पहुंचता। वह एक ऐसी नदी की तरह है जो मरुस्थल में खो जाती है, जो सागर तक नहीं पहुंच पाती । तुम्हें अगर सागर तक पहुंचना हो तो नजर सागर पर मत रखो, नजर एक कदम पर रखो। एक कदम काफी है। उसको सुलझाया हुआ उठा लो बस । इस क्षण सुलझे रहो। सभी क्षण इसी क्षण से निकलेंगे। सभी कदम इसी कदम से निकलेंगे। एक सुलझ गया, दूसरा उस सुलझांव से ही तो निकलेगा । इसलिए उसकी चिंता मत करो। कल की फिक्र मत करो । भविष्य का विचार मत करो। मंजिल मिलेगी या न मिलेगी, इस चिंता में मत पड़ो। तुम एक कदम को सुलझा लो। जिन्होंने एक सुलझा लिया, उन्होंने सदा ही मंजिल पा ली है। क्योंकि वही प्रारंभ है और वही अंत है। आज इतना ही ।
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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