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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ लेकिन किर्लियान की फोटोग्राफी से बड़ी चीजें साफ हो गईं। अब तो प्लेट को वैसे ही देखा जा सकता है जैसे कि एक्स-रे की प्लेट को चिकित्सक देखता है। जैसे एक्स-रे की प्लेट हर बड़े अस्पताल में जरूरी हो गई, आने वाले दस वर्षों में किर्लियान के यंत्र हर अस्पताल में जरूरी हो जाएंगे। तब उचित यह होगा कि बजाय बीमार पड़ने के, पहले ही आप चले जाएं, हर महीने चेक-अप करवा लें कि कहीं कोई गड़बड़ की शुरुआत तो नहीं है। और उसको वहीं ठीक किया जा सकता है बड़ी आसानी से। क्योंकि मूल में चीजें बड़ी छोटी होती हैं। गंगोत्री बड़ी छोटी है, गौमुख से गिरती है, जरा सा झरना है। बूंद-बूंद पानी रिसता है। वहां कोई भी बदलाहट करनी हो, आसान है। हरिद्वार में कठिनाई होगी। प्रयाग में बहुत मुश्किल। बनारस तो असंभव। बनारस में तो असाध्य हो गया रोग आकर। अब कुछ नहीं किया जा सकता। अब करने का कोई उपाय न रहा। तुम क्यों बनारस के लिए रुके हो जब कि गंगोत्री में ही चिकित्सा हो सकती है? जैसा शरीर के संबंध में सत्य है वैसा ही आत्मा के संबंध में भी सत्य है। तुम अपने भीतर अंतस-जीवन को उसी समय हल कर लेना जब कि चीजें होने वाली थी, हुई नहीं थीं; आने वाली थीं, आई नहीं थीं। तुम भविष्य का निवारण आज ही कर लेना। पर इस निवारण के लिए तुम्हारा बहुत प्रगाढ़ होशपूर्ण, जागरूक होना जरूरी है। 'जो बर्फ की तरह तुनुक है, वह आसानी से पिघलता है। जो अत्यंत लघु है, वह आसानी से बिखरता है।' किसी चीज के अस्तित्व में आने से पहले उससे निपट लो। परिपक्व होने के पहले ही उपद्रव को रोक दो। 'जिसका तना भरा-पूरा है, वह वृक्ष नन्हे से अंकुर से शुरू होता है। नौ मंजिल वाला छज्जा मुट्ठी भर मिट्टी से शुरू होता है। हजार कोसों वाली यात्रा यात्री के पैर से शुरू होती है।' बहुत चल लेने के बाद बदलना मुश्किल हो जाता है। चलने के पहले बहुत सोच कर चलना, ताकि पहले कदम पर ही चीजें ठीक रखी जा सकें। मकान बनाने के पहले ही ठीक से सोच लेना, ताकि नींव ठीक से भरी जा सके। वहां रह गई भूल सदा पीछा करेगी। लौट कर सुधारना बहुत कठिन हो जाता है। कुछ चीजें तो लौट कर सुधारी ही नहीं जा सकतीं। और तुम्हारे जीवन की यही विपदा है कि तुम हजार-हजार यात्राएं चल लिए हो। पहले कदम पर बेहोशी में चले, अब सुधारने की इच्छा होती है। डरते हो तुम खुद ही, कैसे सुधरेगा? सुधर सकता है। कितना ही कठिन हो, असंभव नहीं है। अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है। अभी भी ज्यादा देर नहीं हो गई है। समय हाथ में है। और अभी भी अगर जाग जाओ तो कुछ भी खोया नहीं है। जब जाग गए तभी भोर, जब जाग गए तभी सुबह।। लेकिन अब एक-एक सूत्र को ठीक-ठीक से समझ कर कदम रखना है। आज से एक बात का खयाल रखो: टालो मत। जो समस्या आए उसे निबटाने की कोशिश करो। मत कहो, कल निबटा लेंगे। अगर पत्नी पर क्रोध आया है तो बैठ कर उससे अभी बात कर लो। अभी गंगोत्री में है। अभी चीजें बड़ी सरल हैं। अभी क्रोध में दंश नहीं है, जहर नहीं है। अभी क्रोध सिर्फ एक भाव-दशा है। उससे कह दो कि मैं क्रोधित अनुभव कर रहा हूं। कारण बता दो। बीच बातचीत कर लो। अभी तुम इतने क्रोधित नहीं हो; बातचीत हो सकती है। क्रोध में कहीं बातचीत होती है? फिर तो झगड़ा ही होता है। फिर तो विवाद हो सकता है; चर्चा तो नहीं हो सकती। अभी क्रोध की पहली झलक आई है, पहला धुआं उठा है। अभी बैठ जाओ। हजार जरूरी काम हों, छोड़ दो। इससे ज्यादा जरूरी कुछ भी नहीं है। बैठ कर बात कर लो। मत कहो कि सांझ को कर लेंगे, कि कल कर लेंगे, और कौन जानता है, आई हवा है, चली जाए, बिना ही किए निकल जाए। बिना किए कुछ भी नहीं निकलता। सब अटका रह जाता है। अगर तुम गंगोत्री में पकड़ने में कुशल हो जाओ, तुम पाओगे, चीजें इतनी सरल हो गईं, इतनी हलकी हो गईं कि समस्या बनती नहीं। अगर मन में लोभ जगा है तो उसे पड़ा मत रहने दो, आंख बंद करके बैठ जाओ, अपने 370/
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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