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जो प्रारंभ हुँ वही अंत है
रूस में किर्लियान ने एक नए किस्म की फोटोग्राफी विकसित की है। और वह है बीमारी को अप्रकट अवस्था में पकड़ने के लिए। एक आदमी आज से छह महीने बाद कैंसर का मरीज होगा, तो कोई भी चिकित्सक अभी नहीं पकड़ सकता। क्योंकि शरीर में अभी कहीं भी कोई छाप नहीं पड़ी है। मनोवैज्ञानिक भी नहीं पकड़ सकता, क्योंकि अभी मन में भी कोई छाप नहीं पड़ी है। किर्लियान पकड़ लेता है। ... उसने इतनी सूक्ष्म फोटोग्राफिक प्लेटें तैयार की हैं, इतनी संवेदनशील, कि वह शरीर और मन से भी जो गहरा है, जिसको आध्यात्मिक लोग ऑरा कहते रहे हैं, शरीर का आभामंडल, शरीर का इलेक्ट्रिक फील्ड, उसमें पकड़ता है वह। जैसे अगर यह मेरे हाथ की अंगुली छह महीने बाद बीमार होने वाली है तो इस अंगुली के आस-पास विद्युत का एक क्षेत्र है जो अभी बीमार हो गया है। पहले विद्युत के क्षेत्र में बीमारी प्रवेश करती है; फिर उस क्षेत्र के माध्यम से वह मन में आती है। फिर मन के माध्यम से वह शरीर तक आती है। भाव, विचार, कृत्य; विद्युत-क्षेत्र, मन, शरीर। छह महीने पूर्व किर्लियान पकड़ लेता है। और वह कहता है, अभी इलाज कर लिया जाए तो यह बीमारी कभी न आएगी। और अभी इलाज बिलकुल आसान है, क्योंकि अभी कुछ नहीं करना है। अभी इस व्यक्ति के विद्युत-क्षेत्र को ठीक करना है, जो कि कई साधनों से किया जाता रहा है। चीन में एक्युपंचर के द्वारा किया जाता रहा है।
किर्लियान की फोटोग्राफी ने पांच हजार साल पुराने एक्युपंचर को बड़ी महिमा दे दी। लोग समझते थे, यह तो सिर्फ पूर्वीय लोगों की कल्पना है। एक्युपंचर बड़ा वैज्ञानिक सिद्ध हुआ। और पांच हजार साल पुराना है। और एक्युपंचर का जन्म तभी हुआ जब ताओ की विचारधारा गहन हो रही थी। वह ताओ का ही अंग है। एक्युपंचर ताओ का अंग है, जैसे भारत में आयुर्वेद योग का अंग है। ताओ की जो साधना-पद्धति है उसी साधना-पद्धति का हिस्सा है एक्युपंचर। लाओत्से के ये वचन ही उसका आधार हैं कि पूर्व-निवारण कर लो। इस विचार का ही नियोजन शरीर की बीमारी के लिए है कि बीमारी जब आ जाए तब लड़ना बहुत मुश्किल, और जब शरीर तक आ जाए तो हटाना बहुत कठिन और असाध्य, लेकिन अगर प्राथमिक चरण में ही मुक्त कर ली जाए बीमारी...।
तो एक्युपंचर क्या करता है? एक्युपंचर सिर्फ शरीर का जो विद्युत-क्षेत्र है, जो इलेक्ट्रिक फील्ड है, उसको बदलता है। एक्युपंचर ने सात सौ बिंदु खोजे हैं शरीर में जहां से बदलाहट की जा सकती है। और उन बिंदुओं पर एक्युपंचर सिर्फ सूई को चुभा देता है, जरा सी गर्म की हुई सूई चुभा दी जाती है। उस गर्म सूई के कारण उस स्थान पर जहां कि छेद पड़ रहा था विद्युत के फील्ड में, विद्युत के क्षेत्र में, उस सूई के कारण विद्युत की धारा बदल जाती है। उस धारा के परिवर्तन से, जो बीमारी होने वाली थी, वह ठीक हो जाती है।
. अब यह बात काल्पनिक रहेगी। काल्पनिक इसलिए रहेगी, क्योंकि यह बीमारी अप्रकट थी। अभी तो बीमार को भी पता नहीं था; अभी तो चिकित्सक भी मानने को राजी नहीं था कि इसको कोई बीमारी है। सिर्फ एक्युपंचरिस्ट, जिनकी कि सारी की सारी दीक्षा बड़ी सूक्ष्म आंखों को जन्माने की है, जो कि शरीर के पास विद्युत को देखने की कोशिश करते हैं। इसलिए एक्युपंचर की ट्रेनिंग बड़ी दुस्साध्य है। दस-बीस साल, पच्चीस साल, फिर भी पक्का नहीं। क्योंकि आपकी आंखों और ध्यान की गति पर निर्भर करेगी कि आप शरीर के आस-पास विद्युत को देखना शुरू कर दें। यह जो किर्लियान है, इसने काम आसान कर दिया। कैमरा पकड़ कर बता देता है। कैमरे में फोटो आ जाता है पूरे शरीर का; शरीर के आस-पास विद्युत की रेखाएं आ जाती हैं। और जहां-जहां रेखाएं छिन्न-भिन्न हैं, टूटी-फूटी हैं, वहीं कोई बीमारी प्रकट होने वाली है। उस विद्युत-क्षेत्र को ठीक कर दिया जाए, बीमारी कभी प्रकट न होगी।
अब इसमें एक अड़चन है। अगर बीमारी प्रकट न हो तो क्या पक्का कि होने वाली थी या नहीं? अगर प्रकट हो तो साफ है कि एक्युपंचर वाले लोग गलत बातें कह रहे थे। अगर वे सफल हो जाएं तो साफ है कि बकवास है, क्योंकि बीमारी हुई नहीं। होने वाली थी, इसका क्या पक्का?
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