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ताओ उपनिषद भाग ५
साक्षी-भाव सघन होगा, तुम्हारा ध्यान ठहरेगा। तुम एक प्रज्ञा की ज्योति भीतर बन जाओगे, जिसमें सब दिखाई पड़ेगा। रोशनी धीरे-धीरे बढ़ेगी और एक-एक विचार पारदर्शी हो जाएगा।
जब विचार पारदर्शी होने लगे और तुम हर विचार को देखने लगो, तब तुम्हें धीरे-धीरे विचार के नीचे छिपे हुए भावों की झलक मिलनी शुरू होगी। हर विचार के नीचे भाव छिपा है, जैसे हर वृक्ष के नीचे जड़ें छिपी हैं। वे भूमि के नीचे हैं। जब तुम विचार को ठीक पहचान लोगे तो तुमको भाव मालूम पड़ेगा कि वह पीछे भाव छिपा है।
और जब भाव दिखाई पड़ने लगेगा तब तुम बड़े गहरे लोक में प्रविष्ट हुए। अब तुम्हारी प्रज्ञा निश्चित ही अकंप होने लगी, उसका कंपन मिटने लगा, थिर होने लगी। जिस दिन तुम विचार को भी देखने के बाद भाव को भी देख लोगे...। भाव का अर्थ है : सिर्फ फीलिंग की दशा; कोई विचार नहीं बना है, सिर्फ एहसास हो रहा है। अभी क्रोध नहीं आया है, सिर्फ एक बेचैनी है, जो प्रकट नहीं है, जो तुम्हें कुछ करने के लिए उकसा रही है। लेकिन अभी साफ नहीं है, कहां जाना है। अभी काम का विचार नहीं उठा है, लेकिन कामवासना शरीर में बह रही है, शरीर को धक्के दे रही है कि विचार को बनाओ। वह विचार के तल पर आना चाहती है।
ऐसे ही जैसे पानी में बबूला उठता है। तो देखो तुम, बबूला नीचे से उठता है। छिपा था, पानी के नीचे पड़ी मिट्टी में पड़ा था। वहां से उठता है। धीरे-धीरे, धीरे-धीरे जैसे-जैसे ऊपर आता है, बड़ा होने लगता है, क्योंकि पानी
का दबाव कम होने लगता है। दबाव कम होता है, बबूला बड़ा होता है। फिर आ जाता है बिलकुल सतह पर। जब बिलकुल सतह पर आने लगता है तब तुम्हें दिखाई पड़ता है। और जब बिलकुल सतह पर आकर बबूला बैठ जाता है तब तुम्हें ठीक से दिखाई पड़ता है।
यह जो बिलकुल सतह पर आ जाना है यह कृत्य है, एक्ट। मध्य में होना विचार है। वहां पानी में जमीन की पर्त के नीचे छिपा होना भाव है। और जिस दिन तुम भाव को देख लोगे उस दिन एक अनूठी घटना घटती है-तुम अपने संबंध में भविष्यद्रष्टा हो जाओगे। क्योंकि भाव के आने के पहले तुम्हारे भीतर बीज आता है। वह बीज सदा बाहर से
आता है। क्योंकि पानी के नीचे बबूला छिपा था; उसके पहले हवा आनी चाहिए जमीन में, अन्यथा कहां से बबूला • छिपेगा? तो भाव को जागने के बाद तुम फिर देख सकते हो कि कौन सा भाव आने वाला है। वह सबसे सूक्ष्म दशा है मन की, अति सूक्ष्म, जहां तुम भविष्यद्रष्टा हो जाते हो, जहां तुम अपने बाबत भविष्यवाणी कर सकते हो कि अब यह होने वाला है, कि आज सांझ मैं क्रोध करूंगा, कि क्रोध का भाव दोपहर होते-होते घना होगा, बीज पड़ गया है।
और जिस दिन तुम इतने सूक्ष्मदर्शी हो जाते हो कि तुम भविष्य को देख लो कि कल क्या होने वाला है, उसी दिन लाओत्से का सूत्र तुम्हारे काम का होगा। निवारण हो सकता है भाव बनने के पहले। क्योंकि भाव है जड़। और भाव के जो पूर्व है, जिसके लिए हमारे पास कोई शब्द नहीं; क्योंकि कोई उतना सूक्ष्म दर्शन नहीं करता; या जो करते हैं वे कभी इतने अकेले होते हैं करने वाले कि किसी को बताने का उपाय नहीं, दूसरा उनको समझता भी नहीं। जो प्रि-फीलिंग स्टेट है, भाव-पूर्व दशा है, वह बीज है। और वह बीज सदा बाहर से आता है। विचार बाहर से आते हैं; भाव बाहर से आते हैं; बीज बाहर से आता है। सब बाहर से आता है। और उस बाहर से आए में तुम ग्रसित हो जाते हो। जिस दिन तुम यह सब देख लोगे और तुम्हारा द्रष्टा परिपूर्ण हो जाएगा, उस दिन निवारण। उस दिन तुम आने के पहले ही द्वार बंद कर दोगे। उस दिन तुम्हारे जीवन में कोई उत्पात न रह जाएगा।
'जो शांत पड़ा है, उसे नियंत्रण में रखना आसान है। जो अभी प्रकट नहीं हुआ है, उसका निवारण आसान है। दैट व्हिच लाइज स्टिल, इज़ इजी टु होल्ड। दैट व्हिच इज़ नाट यट मैनीफेस्ट, इज़ इजी टु फोरस्टाल।'
यट नाट मेनीफेस्ट, जो अभी तक प्रकट नहीं हुआ, उसे बदल देना बिलकुल हाथ की बात है। इस संबंध में तुम्हें मैं कुछ कहूं, कोई समानांतर दृष्टांत, जिससे तुम्हें समझ में आ जाए।
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