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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ एक वासना को बदलो, तुम पाओगे, और वासनाओं में बदलाहट होने लगी। एक समस्या को हल कर लो, सब समस्याएं हल हो जाती हैं। पहला तो मन कहता है, टालो; कल देखेंगे, परसों देखेंगे। ऐसा टालते जाते हो। लेकिन जितना तुम टाल रहे हो उतना समय बीज को मिल रहा है—फूटने को, अंकुरित होने को। फिर मन की दूसरी वृत्ति है, जब टालना मुश्किल ही हो जाए, समस्या सामने ही खड़ी हो जाए, तो तुम समस्या से लड़ना शुरू करते हो। पहले टालते हो, वह भी गलत। फिर लड़ते हो; दीवार खड़ी है, उसके साथ सिर फोड़ते हो। वह भी गलत। क्योंकि समस्या को कोई लड़ कर हल नहीं कर सकता। तुम लड़े कि समस्या को हल करना असंभव ही हो जाएगा। क्योंकि हल करने के लिए तो शांत चित्त चाहिए; लड़ने वाली वृत्ति तो अशांत है। तो पहले तो क्रोध को पनपते देते हो। फिर जब क्रोध मुश्किल में डाल देता है, सब तरफ जीवन को उलझा देता है, सब तरफ कांटे बो देता है, कहीं भी चलने की जगह नहीं रह जाती, जहां देखो वहां दुश्मनी दिखाई पड़ने लगती है, सारा संसार विरोध में मालूम पड़ता है, जैसे सब तरफ तुम्हारे तरफ कोई षड्यंत्र चल रहा है, सभी लोग तुम्हारी दुश्मनी में खड़े हैं; तब तुम जागते हो। तब तुम दूसरी भूल करते हो कि तुम लड़ने की कोशिश करते हो कि दबा दो क्रोध को, मिटा दो क्रोध को। लेकिन कभी कोई किसी समस्या से लड़ कर जीता है? समझ लो कि तुम धागे साफ कर रहे थे और धागे उलझ गए। इनसे लड़ोगे? लड़ कर धागे सुलझ जाएंगे? लड़ कर तो और उलझ जाएंगे, टूट जाएंगे। एक बार धागे उलझ गए हों तो फिर तो बड़ी ही शांति चाहिए, फिर तो बड़ा मैत्री भाव चाहिए। फिर तो बड़ी सरलता और धीरज से एक-एक धागे को निकालोगे तो ही निकल पाएंगे। अगर जरा भी जोर से खींच दिया तो और उलझाव बढ़ जाएगा। धैर्य बिलकुल नहीं है। पहले तुम टालते हो; उसे तुम धैर्य मत समझना। वह धैर्य नहीं है, वह आलस्य है। कहते हो, कल कर लेंगे, परसों कर लेंगे। अभी जल्दी क्या है? पहले तुम टालते हो; वह धैर्य नहीं है। कई लोग उसे . धीरज समझते हैं कि हम धैर्यवान हैं; कभी भी कर लेंगे, जल्दी क्या है? वह आलस्य है। वह प्रमाद है। वह केवल. अपने को धोखा देना है। धैर्य की कसौटी तो उस दिन आएगी जिस दिन उलझाव खड़ा हो जाएगा। और तुम अब क्या करते हो? धैर्य से सुलझाते हो या लड़ते हो? तुम लड़ोगे। छोटी चीजों से लड़ोगे, मुश्किल में पड़ जाओगे। मैंने सुना है, ऐसा हुआ, जापान में एक बहुत बड़ा योद्धा था। और योद्धा प्रासंगिक है यहां। उसकी तलवार चलाने की कला का कोई मुकाबला न था। जापान में उसकी धाक थी। उसके नाम से लोग कांपते थे। बड़े-बड़े तलवार चलाने वाले उसके सामने क्षणों में धूल-धूसरित हो गए थे। उसके जीवन की एक कहानी है। वह कहानी झेन फकीर बड़ा उपयोग करते हैं, क्योंकि वह बड़ी विचारपूर्ण है, और तुम्हारे जीवन से जुड़ी है। एक रात ऐसा हुआ कि योद्धा घर लौटा, अपनी तलवार उसने टांगी खूटी पर, तभी उसने देखा कि एक चूहा उसके बिस्तर पर बैठा है। वह बहुत नाराज हो गया। योद्धा आदमी! उसने गुस्से में तलवार निकाल ली, क्योंकि गुस्से में वह और कुछ करना जानता ही न था। न केवल चूहा बैठा रहा तलवार को देखता, बल्कि चूहे ने इस ढंग से देखा कि योद्धा अपने आपे के बाहर हो गया। चूहा और यह हिम्मत? और चूहे ने ऐसे देखा कि जा जा, तलवार निकालने से क्या होता है? मैं कोई आदमी थोड़े ही हूं जो डर जाऊं? उसने क्रोध में उठा कर तलवार चला दी। चूहा छलांग लगा कर बच गया। बिस्तर कट गया। अब तो क्रोध की कोई सीमा न रही। अब तो अंधाधुंध चलाने लगा तलवार वह जहां चूहा दिखाई पड़े। और चूहा भी गजब का था। वह उचके और बचे। पसीना-पसीना हो गया योद्धा और तलवार टूट कर टुकड़े-टुकड़े हो गई। और चूहा फिर भी बैठा था। वह तो घबड़ा गया; समझ गया कि यह कोई चूहा साधारण नहीं है, कोई प्रेत, कोई भूत। क्योंकि मुझसे बड़े-बड़े योद्धा हार चुके हैं और एक चूहा नहीं हार रहा! 362
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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