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________________ जो प्रारंभ हैं वही अंत हैं 361 तुम्हारी मालकियत मन के ऊपर की सतह पर ही है। अगर मन को हम दस खंडों में बांटें तो पहले खंड में तुम्हारी मालकियत थोड़ी-बहुत चलती है; नौ खंडों में तुम्हारी मालकियत का कोई ... नौ खंडों का तुमसे कोई संबंध ही नहीं रहा है। एक बार कोई समस्या अचेतन में, अनकांशस में चली गई तो बीज जमीन में चला गया। जमीन के ऊपर से झाड़-बुहार देना बड़ा आसान था; जमीन के नीचे बहुत कठिनाई है। और खोदने में डर है । क्योंकि खोदोगे एक, हज़ार निकल आएंगे। इसलिए कोई अचेतन को खोदता नहीं, छूता नहीं । भय लगता है। क्योंकि एक बीज नहीं दबा है, वहां तुम जन्मों-जन्मों से दबाए हुए पड़े हो । अचेतन तुम्हारा कबाड़खाना है, जिसमें तुमने सब कूड़ा-कर्कट भर दिया है। वहां जाने में भय लगता है कि वहां गए और सब चीजें एकदम से टूट पड़ीं तो क्या होगा ? इसलिए एक बार कोई चीज अचेतन में उतर गई तो तुम जटिलता में पड़ जाओगे । पर मन पहले टालता है। जब मन टालता हो तब तुम जाग जाना। उस क्षण को खोना उचित नहीं है। हजार काम छोड़ कर पहले इसे निबटा लेना; बड़े काम छोड़ कर इस छोटे को निबटा लेना। क्योंकि जो आज छोटा है, कल बड़ा हो जाएगा। अभी हल हो सकता है, कल हल होना मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि अकेली नहीं आती समस्या, अपने साथ हजार समस्याएं लाती है। तुमने सुनी है कहावत, बीमारी अकेली नहीं आती, एक बीमारी अपने साथ हजार बीमारियां लाती है। सब के संगी-साथी हैं। समस्याओं के भी संगी-साथी हैं। अगर एक समस्या ने जड़ जमा ली तो उसी तरह की हजार समस्याएं भी तुम्हारे द्वार पर दस्तक देने लगेंगी - हमको भी जगह दो ! और जब तुमने एक को जगह दी है तो तुम्हारे भीतर छिद्र हो गया। उसी छिद्र से हजार समस्याएं भीतर प्रवेश पा जाएंगी। अगर तुमने क्रोध को जगह दी तो तुम हिंसा से कितनी देर तक दूर रह सकोगे? अगर तुमने क्रोध को जगह दी तो तुम काम से कितनी देर दूर रह सकोगे ? क्योंकि वे सब जुड़े हैं। वे सब एक ही घटना के ताने-बाने हैं। इसलिए ज्ञानियों ने कहा है, अगर एक समस्या भी कोई व्यक्ति हल कर ले, उसकी सारी समस्याएं हल हो जाती हैं। क्योंकि एक समस्या को हल करने में तुम पाओगे, सभी समस्याएं समाविष्ट हैं। अगर तुम कामवासना से मुक्त हो जाओ तो तुम क्रोध न कर सकोगे। क्योंकि कामवासना ही, जब कोई तुम्हारी कामवासना में बाधा डालता है, तो क्रोध बन जाती है। तुम कुछ पाना चाहते थे, और किसी ने अड़चन डाल दी। तुम कहीं जाना चाहते थे, कोई बीच में आ गया। तुम जाना चाहते थे, और एक पत्थर की दीवार किसी ने खड़ी कर दी। जो भी तुम्हारे मार्ग में अवरोध खड़ा करेगा उस पर क्रोध आता है। लेकिन अगर तुम कहीं जाना ही न चाहते थे, अगर तुम्हारी कोई कामना ही न थी, कोई कसना ही न थी, तुम कुछ पाना ही न चाहते थे, तो कौन तुम्हारे मार्ग में अवरोध खड़ा करेगा? कैसे तुम्हें क्रोध आएगा ? जिसकी कामवासना नहीं है उसको लोभ कैसा ? लोभ कामवासना का अनुषंग है । क्योंकि कामी लोभी होगा ही । लोभ का मतलब यह है कि कल की वासना के लिए मैं आज इंतजाम कर रहा हूं, परसों की वासना के लिए आज इंतजाम कर रहा हूं। बुढ़ापे के लिए तिजोरी भर रहा हूं। भविष्य के लिए आज तैयारी करनी पड़ेगी। तो लोभ का मतलब है : इकट्ठा कर रहा हूं, ताकि कल भोग सकूं। जिसकी कामवासना नहीं है उसका लोभ कैसा ? जिसकी कामवासना नहीं है उसका कल ही न रहा; उसका भविष्य ही समाप्त हो गया। उसका समय रुक गया। उसकी घड़ी बंद हो गई। वह यहीं है, आज है । और आज पर्याप्त है। आज से ज्यादा की कोई मांग नहीं है। जो छोटा सा मिल रहा है, वह काफी है। आज के लिए काफी से ज्यादा है। अगर तुम कल को बीच में न लाओ तो जो तुम्हें मिला है काफी है। तुम समृद्ध हो। अगर तुम कल को बीच में ले आओ तो बड़े से बड़े सम्राट भी भिखारी हैं । क्योंकि कल को कोई भी नहीं भर सकता। कल दुष्पूर है।
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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