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ताओ उपनिषद भाग ५
वह अपने को सदा सम्मान से ही पुकारता था: बांके बिहारीलाल जी। लोग उसको बन्नू पागल कहते थे। वह मुस्कुराया और उसने कहा, कहो बांके बिहारीलाल जी, रास्ते पर आ गए? जरा सी रेखा उठी थी क्रोध की भीतर, वहीं उसने चांटा मार कर निबटारा कर लिया। उसने कहा, बजाय इसके कि दूसरे चांटा मारें, खुद ही मार लेना बेहतर है। और इसके पहले कि बात आगे बढ़ जाए, उसे रोक देना उचित है।
उसने मुझे कहा था कि आग जब शुरू-शुरू में सुलगती है, जरा से पानी से बुझ जाती है। और हवा का यह नियम है कि छोटे दीए को तो बुझा देता है, बड़ी लपटों को बढ़ाता है। उस पागल ने मुझे यह कहा कि शुरू में मिटा दो तो मिट जाता है, बाद में तो मिटाने से भी लपटें बढ़ती हैं। वह लाओत्से ने भी नहीं कहा है इस सूत्र में। तुमने भी देखा होगा, हवा का झोंका आता है, छोटा दीया बुझ जाता है; और घर में आग लगी हो, उस वक्त अगर हवा चल जाए तो मारे गए, फिर बुझना मुश्किल है। लपटों को हवा भी बढ़ाती है। बढ़े हुए को सब तरफ से बढ़ने की सुविधा मिल जाती है। छोटे में मिटा दो तो हवा भी मिटाती है।
यह जो पागल आदमी था, यह पागल आदमी नहीं था, यह समझ-बूझ कर पागल हो रहा था। इसने पागलपन का एक आवरण अपने चारों तरफ खड़ा कर लिया था। यह बचाव था। पागल समझ कर लोग न उसकी तरफ ध्यान देते थे, न उसकी चिंता लेते थे। समाज में रहते हुए वह समाज से बिलकुल दूर हो गया था। उसने अपने चारों तरफ एक छोटी सी गुफा बना ली थी पागलपन की। वह पागलपन बचाव था।
समाज कितना पागल होना चाहिए, जहां कि बचाव के लिए भी आदमी को पागल होना पड़ता हो। बहुत से फकीर दुनिया में पागलपन का आरोपित कर लिए हैं, ताकि लोग उन्हें भूल जाएं, ताकि लोग उन पर ध्यान न दें, ताकि वे क्या कर रहे हैं, लोग उनको अकेला छोड़ दें, ताकि वे अपना जो करना चाहें करते रहें, कोई उनकी चिंता न ले। जब लोग एक दफा मान लेते हैं कि पागल है तो सब क्षमा कर देते हैं।
यह लाओत्से का सूत्र और तुम्हारा ठीक इससे विपरीत होना, इन दोनों को साथ-साथ समझने की कोशिश करो। जब कोई समस्या उठती है तब तुम क्या करते हो?
पहले तो तुम उस पर ध्यान ही नहीं देते। तुम ऐसा रुख रखते हो कि अपने आप चली जाएगी, कोई खास बड़ी बात नहीं है। ऐसे ही सर्दी-जुकाम है, मिट जाएगा। क्या चिकित्सक से पूछना है! क्या उपचार करना है! तुम छोटा करके देखते हो। तुम पहले तो उपेक्षा करते हो, टालते हो। तुम पहले पूरी चेष्टा यह करते हो कि अपने आप ही हल हो जाए।
कहीं दुनिया में कोई चीज अपने आप हल हुई है? उलझाओ तुम और अपने आप हल हो जाए, यह होगा कैसे? बनाओ तुम, अपने आप हल हो जाए: यह होगा कैसे? समस्या तुम खड़ी कर रहे हो; अपने आप हल न होगी। लेकिन यह मनुष्य का पहला रवैया है। सोचता है, शायद कोई चमत्कार घट जाएगा, कोई घटना बदल जाएगी, संयोग बदल जाएंगे। चीज अपने आप हो जाएगी; क्यों झंझट में पड़ना! आदमी नजरअंदाज करना चाहता है; कहीं और देखने लगता है। यह पहली प्रक्रिया है, कि तुम अपने मन को कहीं और लगाते हो, ताकि समस्या दिखाई न पड़े। और यहीं खतरा शुरू होता है। क्योंकि जिस समस्या को तुमने देखना बंद किया वह तुम्हारे अचेतन में गिरने लगती है, वह तुम्हारे अंधकार कुएं में गिरने लगती है, वह तुम्हारी जमीन के भीतर उतर जाती है, वह अंडरग्राउंड हो जाती है।
और एक बार कोई समस्या जमीन के नीचे उतर गई, अंधेरे में उतर गई, तुमने देखा नहीं, नजर न दी, ध्यान न किया, वह बीज की तरह जड़ जमा लेगी। जो समस्या सचेतन में हो, उसे हल करना आसान है। क्योंकि वहां तक तुम मालिक हो। एक बार अचेतन में उतर गई, फिर हल करना मुश्किल है। क्योंकि फिर तुम मालिक रहे ही नहीं।
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