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________________ जो प्रारंभ है वही अंत हैं 363 अब योद्धा एक बात है और चूहा बिलकुल दूसरी बात है। वह घबड़ा कर बाहर आ गया। उसने जाकर अपने मित्रों को पूछा कि क्या करूं? उन्होंने कहा, तुम भी पागल हो ! चूहे से कोई तलवार से लड़ता है? अरे, एक बिल्ली ले जाओ, निबटा देगी। हर चीज की औषधि है । और जहां सूई से काम चलता हो वहां तलवार चलाओगे, मुश्किल में पड़ जाओगे। बिल्ली ले जाओ। लेकिन योद्धा की परेशानी और चूहे की तेजस्विता की कथा गांव भर में फैल चुकी । बिल्लियों को भी पता चल गई। बिल्लियां भी डरीं। क्योंकि उनका भी आत्मविश्वास खो गया। इतना बड़ा योद्धा हार गया जिस चूहे से ! पकड़-पकड़ कर बिल्लियों को लाया जाए। बिल्लियां बड़ा मुश्किल से; दरवाजे के बाहर ही अपने को खींचने लगे; बामुश्किल उनको भीतर करें कि वे भीतर चूहे को देख कर बाहर आ जाएं। एक-दो बिल्लियों ने झपटने की भी कोशिश की, लेकिन उन्होंने पाया कि चूहा झपट्टा उन पर मारता है। यह चूहा अजीब था, क्योंकि चूहा कभी बिल्ली पर झपट्टा नहीं मारता जब तक कि उसको एल एस डी न पिला दिया गया हो, या कोई शराब न पिला दी गई हो, जब तक वह होश के बाहर न हो जाए। और चूहा अगर बिल्ली पर झपटे तो बिल्ली का आत्मविश्वास खो जाता है। तो सारी बिल्लियां इकट्ठी हो गईं। उन्होंने कहा, हमारी इज्जत का भी सवाल है । योद्धा तो एक तरफ रहा, हारे न हारे, हमें कुछ लेना-देना नहीं; ऐसे भी हमारा कोई मित्र न था; चूहे ने ठीक ही किया। मगर अब हमारी इज्जत दांव पर लगी है; अब हम क्या करें? अगर हम हार गए एक दफा और गांव के दूसरे चूहों को पता चल गया, तो यह सब प्रतिष्ठा तो प्रतिष्ठा की ही बात होती है। एक दफा पोल खुल जाए तो बहुत मुश्किल हो जाती है। अगर दूसरे चूहे भी हमला करने लगे तो हम तो गए, कहीं के न रहे। इस योद्धा ने तो डुबा दिया। तो उन सब ने राजा के महल में एक मास्टर कैट थी - एक बिल्लियों की गुरु — उससे प्रार्थना की कि अब तुम्हीं कुछ करो। उसने कहा, तुम भी पागल हो। इसमें करने जैसा क्या है? मैं अभी आई। वह बिल्ली आई; वह भीतर गई; उसने चूहे को पकड़ा और बाहर ले आई। बिल्लियों ने पूछा कि तुमने किया क्या? उसने कहा, कुछ करने की जरूरत है? मैं बिल्ली हूं, वह चूहा है; बात खतम । इसमें तुमने करने का सोचा कि तुम मुश्किल में पड़ोगे । क्योंकि करने का मतलब हुआ कि डर समा गया। उसका स्वभाव चूहे का है और मेरा स्वभाव बिल्ली का है; बात खतम। हमारा काम पकड़ना है और उसका काम पकड़ा जाना है। यह तो स्वाभाविक है। इसमें कुछ लेना-देना नहीं है। इसमें कुछ करना नहीं है। न इसमें हम जीत रहे हैं, न इसमें वह हार रहा है। इसमें हार-जीत कहां? यह उसका स्वभाव है; यह हमारा स्वभाव है। दोनों का स्वभाव मेल खाता है; चूहा पकड़ा जाता है। तुमने स्वभाव के अतिरिक्त कुछ करने की कोशिश की। और चूहे से कहीं कोई लड़ कर जीता है ? और बिल्ली जिस दिन लड़े, समझना कि हार गई। लड़ने की शुरुआत ही हार की शुरुआत है। समस्याओं से लड़ना मत। झेन फकीर कहते हैं, समस्याओं के साथ वही व्यवहार करना जो बिल्ली ने चूहे के साथ किया। चेतना का स्वभाव पर्याप्त है, होश काफी है। होश के मुंह में समस्या वैसे ही चली आती है जैसे बिल्ली के मुंह में चूहा चला आता है; इसमें कुछ करना नहीं पड़ता । लेकिन तुम योद्धा बन कर तलवार लेकर खड़े हो जाते हो । दो कौड़ी की समस्या है; सूई की भी जरूरत न थी, तुम तलवार से लड़ने लगते हो। हारोगे। ध्यान रखना, मरीज हो सर्दी-जुकाम का और कैंसर का इलाज करोगे तो मारोगे। सर्दी-जुकाम तो एक तरफ रहेगा, मरीज मरेगा। सम्यक विधि का इतना ही अर्थ है : क्या मौजू है, क्या स्वाभाविक है। लड़ने का सवाल क्या है ? किससे लड़ रहे हो तुम? तुम्हारे भीतर जब कोई समस्या है, उससे लड़ने का मतलब ही यह है कि तुमने आत्मविश्वास खो दिया । अन्यथा तुम्हारा होश, जागृति, तुम्हारा ध्यान काफी है। तुम्हारे ध्यान की रोशनी पड़ेगी, समस्या विसर्जित हो जाएगी।
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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