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ताओ उपनिषद भाग ५
जब एक आदमी गाली देता है, तब तुम्हारा मन कहेगा कि उठाओ पत्थर, फोड़ दो सिर।
यह आदमी तुम्हारा मालिक हो गया। इसने जरा सी गाली दे दी, और तुम्हें कर्म में खींच लिया। और अगर ऐसे तुम कर्म में खिंचते रहे दूसरे लोगों के द्वारा तो तुम कब निष्क्रियता को उपलब्ध होओगे? कैसे उपलब्ध होओगे? तो तुम यह मत समझना कि ज्ञानियों ने इसलिए कहा है कि दूसरे तुम्हें गाली दें तो भी तुम उन्हें आशीर्वाद दो, यह मत समझना कि इसलिए कहा है कि दूसरों पर दया करो। नहीं, इसलिए कहा है कि अपने पर दया करो; मालिक अपने बनो। ऐसा रास्ते पर चलते कोई भी कुछ कह दे, कोई हंस ही दे, तुम्हारे भीतर कर्म का जाल शुरू हो गया। किसी ने कुछ कह दिया, एक शब्द, और तुम्हारी झील में शब्द का पत्थर पड़ा और तरंगें ही तरंगें उठने लगी और कर्म शुरू हो गया। तो तुम कैसे निष्क्रिय हो पाओगे? असंभव है। कहां भागोगे? कहां जाओगे? जंगल भाग जाओगे, कौए ऊपर बैठ कर बीट कर देंगे। गुस्सा आ जाएगा, उठा लोगे पत्थर कि यह कौआ मेरा ध्यान खराब कर रहा है।।
कहीं भागने का उपाय नहीं। भाग कर नहीं जा सकते। एक ही भागने का सुगम उपाय है, वह यह कि जब कोई तुम्हारे प्रति घृणा फेंके तब तुम प्रेम देना। प्रेम का मतलब यह है कि हम कर्म में उतरने को राजी नहीं, क्योंकि प्रेम कोई कर्म नहीं है। आशीर्वाद देकर तुम अपने रास्ते पर चले जाना। तुम यह कह रहे हो आशीर्वाद देकर कि आपने कोशिश . की, धन्यवाद! बाकी हमारी तैयारी नहीं है। हम इस झंझट में पड़ने को उत्सुक नहीं हैं। भगवान तुम्हारा भला करे! भला करे इसलिए क्योंकि मन तुम्हारा बुरा करना चाहेगा, अगर तुमने आशीर्वाद न दिया तो मन में तुम्हारे भीतर कुछ करने की बेचैनी बनी रहेगी। कुछ करना ही है तो आशीर्वाद देकर निपटारा कर लो।
फिर इसे समझना जरूरी है कि जब भी तुम्हें कोई गाली दे, घृणा करे, अपमान करे और तुम्हारा मन भी अपमान करे, घृणा करे, तो एक अनंत श्रृंखला का जन्म होता है। वही तो कर्मों का जाल है। फिर वह भी गाली का जवाब गाली से देगा, क्योंकि वह कोई ज्ञानी तो है नहीं; वह भी तुम्हारे जैसा अज्ञानी है। अगर ज्ञानी ही होता तो उसने पहले ही क्यों गाली दी होती? फिर यह कहां रुकेगा? तुम गाली दोगे, वह बड़ी गाली देगा। तुम और बड़ी गाली खोजोगे। इसका अंत कहां है? तुम उसका नुकसान करोगे; वह तुम्हारा नुकसान करेगा। फिर एक श्रृंखला शुरू होती है अंतहीन। यह समाप्ति कहां होगी?
इसमें से किसी को आशीर्वाद देना होगा, तभी यह समाप्त होगा। तो यह मौका तुम दूसरे को क्यों देते हो? तुम ही आशीर्वाद देकर बाहर हो जाओ। तुम ही जब बाहर हो सकते हो, और अभी बाहर हो सकते हो, तो देर तक क्यों रुको? जब भी कोई घृणा करे, अगर तुम उसके लिए भी प्रेम दे सको तो बड़ी क्रांतिकारी घटना घटती है। तुम श्रृंखला के जाल में नहीं पड़ते; तुम्हारा कर्म-विस्तार नहीं होता; और तुम दूसरे आदमी को भी एक मौका देते हो, एक द्वार खोलते हो-समझ के लिए। उसके लिए भी एक समय मिलता है। क्योंकि जब तुम गाली नहीं देते तो वह भी अपेक्षा कर रहा था गाली लौटेगी और जब गाली नहीं लौटती और अपनी ही प्रतिध्वनि उसे सुनाई पड़ती है और गाली के विपरीत तुम्हारा आशीर्वाद लौटता है तो वह बड़ी बेचैनी में पड़ जाता है। वह सो न सकेगा अब चैन से। अब उसकी गाली उसका ही पीछा करेगी। अब उसकी घृणा उस पर ही लौट आई। अब उसे कुछ करना ही पड़ेगा। अगर तुम घृणा का उत्तर घृणा से देते तो बेचैनी नहीं थी; सीधा-सादा मामला था, गणित का मामला था। हमने गाली दी; दूसरे ने गाली दी। तुमने गाली दी और दूसरे ने फूल बरसाए; अब तुम मुश्किल में पड़े। अब जब तक तुम भी फूल बरसाने की कला न सीख लो तब तक बेचैनी जारी रहेगी।
दुनिया को बदलने का एक ही रास्ता है कि तुम सबसे बड़ी अनहोनी घटना करो। अनहोनी घटना है : घृणा के उत्तर में प्रेम, गाली के उत्तर में आशीष; कांटा कोई चुभाए, उसे फूल भेंट कर दो। इससे तुम भी बाहर होते हो और उसके लिए भी बाहर होने की सुविधा देते हो।
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