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________________ स्वादहीन का स्वाद लो 'चाहे हो बड़ी या छोटी, बहुत या थोड़ी, घृणा का प्रतिदान पुण्य से दो।' तो ही निष्क्रियता सधेगी। 'कठिन से तभी निबट लो जब वह सरल हो। बड़े से तभी निबट लो जब वह छोटा हो। संसार की कठिन समस्याएं तभी हल की जाएं जब वे सरल हों। महान समस्याएं तभी हल की जाएं जब वे छोटी हों।' . इस गणित को समझ लेना जरूरी है। यह तुम्हारे रोज के काम के लिए है। तुम भी कोशिश करते हो हल करने की, लेकिन जरा देर कर देते हो, समय चूक जाते हो। बीज से लड़ना आसान है, कुछ करना ही नहीं पड़ता। बीज को फेंक दो, क्या अड़चन है? लेकिन बीज को तो तुम बोते हो, पानी सींचते हो, मेहनत करते हो, सम्हालते हो। पौधा बड़ा होता है। अब पौधा ही बड़ा नहीं हो रहा है, तुम्हारा इनवेस्टमेंट भी बड़ा हो रहा है। क्योंकि तुमने इतना समय लगाया; पानी सींचा; इतनी जिंदगी पौधे को दी; इतनी मेहनत की। अब पौधा एक बड़ा वृक्ष हो गया। तुम तीस साल तक प्रतीक्षा किए। अब उसमें फल आए जो कड़वे हैं; अब उन्हें फेंकना बड़ा मुश्किल मालूम पड़ता है। कड़वे फल को भी तुम चख-चख कर समझाना चाहते हो अपने को कि मीठा है। क्योंकि तीस साल व्यर्थ गए, अगर यह कड़वा है। तुम तीस साल मूढ़ थे। और अब इस वृक्ष को तुम फेंकना भी चाहोगे तो बड़ी कठिनाई होगी। इसने बड़ी जड़ें फैला ली हैं; यह विस्तीर्ण हो गया है। और यह तो वृक्ष बाहर है। भीतर के वृक्षों का क्या कहना? उनकी जड़ें तो तुम्हारी नसों में फैल जाती हैं; तुम्हारे हृदय को जकड़ लेती हैं; तुम्हारे मस्तिष्क में पहुंच जाती हैं। भीतर के वृक्ष तो तुमको भूमि बना लेते हैं, और तुमको सब तरफ से कस लेते हैं। समझो! क्रोध की कई दशाएं हैं। समय रहते हल हो सकता है। और एक सीमा रेखा है, एक डेड लाइन है; उसके पार जाने पर हल करना मुश्किल हो जाता है। फिर एक सीमा है, जिसके पार जाने पर असंभव, करीब-करीब असंभव हो जाता है। . क्रोध की पहली दशा तो यह है, जो बहुत बुद्धिमान है वह क्रोध का आने के पहले उपचार करेगा। वह पूर्व-निवारण करेगा, लाओत्से कहता है। कल आएगा क्रोध, वह आज निवारण करेगा। अभी तो आया भी नहीं है, • अभी किसी ने तुम्हें गाली भी नहीं दी है। लेकिन कोई न कोई तो देगा, कोई न कोई धक्का मारेगा। जिंदगी में संघर्ष है, गहन संघर्ष है। प्रतिस्पर्धा है। कल बिना ही क्रोध के निकल जाएगा, इसका उपाय नहीं है। तो बहुत बुद्धिमान तो अभी बीज भी नहीं है तभी से व्यवस्था करने लगता है। अभी घर में आग नहीं लगी है, कुआं खोदने लगता है। घर में आग लग गई, फिर कुआं खोद कर भी क्या होगा? तुम कुआं खोदोगे, घर जलता रहेगा। तुम्हारा कुआं खुद भी न पाएगा, घर राख हो जाएगा। पूर्व-निवारण का अर्थ यह है कि कल, जीवन का संघर्ष तो कल भी रहेगा, तुम अपने भीतर शांति को बसाओ। वह पूर्व-निवारण है, वह एंटीडोट है। तुम जितने शांत हो सको, अभी किसी ने गाली नहीं दी, शांत हो जाओ। क्योंकि जब कोई गाली देगा तब तो शांत होना मुश्किल होगा। अभी बिना दिए भी शांत नहीं हो पाते; तो गाली देने पर तो तुम भूल ही जाओगे। तो ध्यान में रमो। शांत रहो। अकारण शांत बने रहो। बैठो तो सब तरफ से द्वार, छिद्र बंद कर लो। भीतर एक गहन शांति को अनुभव करो। उसका रस लो। शिथिल छोड़ दो सारे शरीर को। मन को कह दो कि तुझे जो करना हो कर, मैं शांत बैठा हूं। मन के साथ तादात्म्य मत करो-न पक्ष, न विपक्ष। जाने दो, चलने दो मन को; जैसे किसी और का है। तुम उपेक्षा में लीन रहो। तुम शांति को बसाओ। यह भूमि है। कल जब कोई क्रोध करेगा, अगर शांति तैयार रही, क्रोध का तीर तो आएगा, शांति के जल में गिर कर बुझ जाएगा। तो तुम्हें कठिनाई न होगी। तुमने निवारण कर लिया पहले ही। 351
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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