SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग ५ परिस्थिति में क्या मौजू पड़ेगा, इसका निर्णय आज कौन लेगा और कैसे लिया जा सकता है? कल अज्ञात है; अज्ञात के लिए तुम कैसे निर्णय लोगे? आने दो कल। जीवन कोई नाटक नहीं है कि तुमने आज रिहर्सल कर लिया और कल नाटक में सम्मिलित हो गए। जीवन में कोई भी रिहर्सल नहीं है। इसीलिए तो नाटक में सफल हो जाना आसान, जीवन में सफल होना बहुत मुश्किल है। तैयारी करने का उपाय ही नहीं है। जीवन जब आता है, तभी अनजाना। जब भी जीवन द्वार पर दस्तक देता है, तभी नई तस्वीर। पुराने से पहचान की थी, तब तक वह बदल जाता है। जीवन प्रतिपल नया है। पुराना कभी दुहरता नहीं। हर सूरज नया है। और हेराक्लाइटस ठीक कहता है कि एक ही नदी में तुम दुबारा न उतर सकोगे। इसलिए पहले की तैयारियां काम न आएंगी। जीवन में कोई अभिनय की पूर्व-तैयारी नहीं हो सकती; तुम जीवन के लिए तैयार कभी हो ही नहीं सकते। यही संतत्व का सार है। तब एक ही उपाय है कि तुम तैयारी छोड़ ही दो। क्योंकि तुम्हारी तैयारी बोझ की तरह सिद्ध होगी। और जीवन सदा नया है, तैयारी सदा पुरानी है। तुम कभी मिल ही न पाओगे। जीवन और तुम्हारा मिलन न हो पाएगा। ऐसे ही तो तुम वंचित हुए हो; ऐसे ही तो तुमने गंवाया है; तैयार हो-होकर तो तुमने खोया है। बिना तैयारी के, अनप्रिपेयर्ड, यही श्रद्धा है संत की कि वह बिना तैयार हुए क्षण को स्वीकार करेगा। और जो भी उसकी चेतना में उस क्षण प्रतिफलित होगा उसके अनुसार आचरण करेगा। लेकिन आचरण सद्यःस्नात होगा, नया होगा, ताजा होगा। आचरण बासा नहीं होगा। कल के निर्णय से जो पैदा हुआ है, वह बासा है। तुम बासा भोजन भी नहीं करते, लेकिन बासा जीवन जीते हो। तुम कल की रोटी आज नहीं खाते, लेकिन कल का निर्णय आज जीते हो। तुम्हारा सारा जीवन इसीलिए तो बासा-बासा हो गया है। उससे दुर्गंध उठती है; उससे सुगंध नहीं उठती नए फूलों की। उससे सड़ांध उठती है कूड़े-कर्कट की; लेकिन जीवन की नई प्रभात और नई किरणें वहां दिखाई नहीं पड़ती। तुम्हारे जीवन पर धूल जम गई है। क्योंकि न मालूम कब के लिए निर्णय तुम अब पूरे कर रहे हो। वह समय जा चुका, वह नदी बह चुकी, जब तुमने. निर्णय लिए थे। वे घाट न रहे, वे लोग न रहे, तुम भी वही नहीं हो। और उन निर्णयों को तुम पूरा कर रहे हो! तुम कब तक बासे-बासे जीओगे? संत ताजा जीता है। ताजा होने का एक ही अर्थ है : बिना तैयारी के जीना। लेकिन तुम तैयारी क्यों करते हो? तैयारी तुम इसलिए करते हो कि तुम्हें अपने पर भरोसा नहीं है। तैयारी तभी करता है कोई आदमी, जब भरोसा न हो। तुम इंटरव्यू देने जा रहे हो एक दफ्तर में नौकरी का। तुम बिलकुल तैयार होकर जाते हो कि क्या तुम पूछोगे, क्या मैं जवाब दूंगा। अगर तुमने यह पूछा तो मैं यह जवाब दूंगा। तुम बिलकुल तैयार होकर जा रहे हो। क्योंकि तुम्हें अपने पर कोई भरोसा नहीं है। तुम तो मौजूद रहोगे, तैयारी क्या कर रहे हो? जब जो भी पूछा जाएगा, तुम्हारी मौजूदगी से निकले, वही उत्तर। लेकिन नहीं, तुम तैयार होकर जा रहे हो। तुम्हारी तैयारी तुम्हें मुश्किल में डाल दे सकती है। लेकिन शायद इंटरव्यू में तुम सफल भी हो जाओ तैयारी से; क्योंकि तुम भी बासे हो और लेने वाले भी बासे हैं। लेकिन जीवन की जो चुनौती है वह ताजे परमात्मा की तरफ से है; वहां बासे उत्तर कभी स्वीकार नहीं किए जाते। तुम कर लो गीता कंठस्थ, तुम कर लो कुरान याद, वेद तुम्हारी जिह्वा पर आ जाएं; लेकिन परमात्मा तुमसे वे प्रश्न नहीं पूछेगा जिनके उत्तर वेद में हैं। वह कभी दुहराता ही नहीं पुराने प्रश्न। जीवन रोज नया होता जाता है। उस नई परिस्थिति में तुम्हारे पुराने प्रश्न बाधा बनते हैं। तुम परिस्थिति को भी नहीं देख पाते; क्योंकि तुम अपनी धारणा से अंधे होते हो। धारणा के कारण बड़ी भ्रांतियां पैदा होती हैं। 26
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy