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धारणारहित सत्य और शर्तरक्षित श्रद्धा
तो हम तो बड़ा मूल्य देते हैं निर्णय करने वाले लोगों को। संशय में पड़े लोगों को हम अनादर देते हैं। हम कहते हैं, क्या संशय में पड़े हो, निर्णय लो। निर्णीत होकर जीओ। जीवन को कहां ले जा रहे हो? दिशा क्या है? सब पक्का करके चलो।
लेकिन संत न तो संशयी होता है और न उसका कोई निर्णीत मत होता है। संत तो बहता है क्षण-क्षण। और क्षण का जो यथार्थ है, उस यथार्थ और संत की चेतना के बीच जो भी घट जाए, घटने देता है। क्षण के यथार्थ के साथ जीता है। आने वाले क्षण का पता नहीं। निर्णय अभी कैसे किया जा सकता है?
एक हसीद फकीर के जीवन में उल्लेख है कि एक सुबह वह अपने झोपड़े के बाहर खड़ा हुआ और पहला आदमी जो रास्ते पर आया, उसने उसे भीतर बुलाया। और उस आदमी से कहा कि मेरे प्यारे, एक छोटा सा सवाल है, उसका जवाब दे दो, और फिर जाओ। सवाल यह है कि अगर रास्ते पर दस कदम चलने के बाद तुम्हें हजारों स्वर्ण अशर्फियों से भरी हुई एक थैली मिल जाए तो क्या तुम उसके मालिक का पता लगा कर उसे वापस लौटा दोगे? उस आदमी ने कहा, निश्चित ही, तत्क्षण! जैसे ही थैली मुझे मिलेगी मैं आदमी का पता लगा कर उसे वापस लौटा दूंगा। वह फकीर हंसा। उसके शिष्य जो पास बैठे थे, उनसे उसने कहा कि यह आदमी मूर्ख है।
वह आदमी बड़ा बेचैन हुआ; क्योंकि उसने तो सीधी भली बात कही थी। और यह किस प्रकार का फकीर है! अब तक उस आदमी ने भी इस फकीर को फकीर की तरह समझा था और ज्ञानी साधु मानता था। और यह आदमी तो बड़ा गलत निकला। मैं कह रहा हूं कि थैली वापस लौटा दूंगा। यही तो सभी धर्मों का सार है कि दूसरे की चीज मत छीनना। और यह आदमी कह रहा है कि यह आदमी मूर्ख है।
और उस फकीर ने उससे कहा कि तू जा, बात खतम हो गई। तब वह बाहर आकर खड़ा रहा, फिर जब दूसरा आदमी निकला, उसको भीतर ले गया और कहा, एक सवाल है। अगर हजारों स्वर्ण अशर्फियों से भरी हुई थैली दस कदम चलने के बाद तुम्हें राह पर पड़ी मिल जाए तो क्या तुम उसे मालिक को खोज कर लौटा दोगे? उसने कहा, तुमने क्या मुझे मूर्ख समझा? इतना बड़ा मूर्ख समझा? लाखों रुपयों की स्वर्ण अशर्फियां मुझे मिलेंगी और मैं लौटा दूंगा! तुमने मुझे समझा क्या है? एकदम भाग जाऊंगा यह बस्ती भी छोड़ कर कि कहीं वह मालिक पता न लगा ले। फकीर ने अपने शिष्यों से कहा, यह आदमी शैतान है।
अब तो शिष्य भी थोड़ी झंझट में पड़े। क्योंकि पहले आदमी को कहा, मूर्ख! अगर पहला आदमी मूर्ख है तो यह आदमी ज्ञानी है। गणित तो साफ है। और अगर यह आदमी शैतान है तो पहला आदमी संत है। गणित तो साफ है। पहले को कहना मूर्ख और दूसरे को कहना शैग्न, संगति नहीं मिलती। लेकिन शिष्य चुप रहे; क्योंकि फकीर तब तक बाहर चला गया था।
वह तीसरे आदमी को पकड़ लाया। और उससे भी यही सवाल किया कि लाखों रुपए के मूल्य की अशर्फियां मिल जाएं दस कदम की दूरी पर, तुम उसके मालिक को वापस लौटा दोगे? उस आदमी ने कहा, कहना मुश्किल है। मन का भरोसा क्या? क्षण का भी पक्का नहीं है। अगर परमात्मा की कृपा रही तो लौटा दूंगा। लेकिन मन बड़ा शैतान है, और बड़ा उत्तेजनाएं देगा मन कि मत लौटाओ! मेरा सौभाग्य और परमात्मा की कृपा रही तो लौटा दूंगा; मेरा दुर्भाग्य और उसकी कृपा न रही तो लेकर भाग जाऊंगा। पर अभी कुछ भी कह नहीं सकता; क्षण आए, तभी पता चले। उस फकीर ने अपने शिष्यों से कहा कि यह आदमी सच्चा संत है।
क्या मतलब है?
संत का पहला लक्षण यह है कि वह क्षण के साथ जीएगा। कल के लिए निर्णय नहीं लिया जा सकता। कल की कौन कहे? कल क्या होगा, कौन जानता है? कल हम होंगे भी या नहीं, यह भी कौन जानता है? और कल की
साथ जीएगा। कल के लिए निर्णय नहीं लिया जा सकताल का
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