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ताओ उपनिषद भाग ५
साधकं हो जाओ, सिद्ध होना बहुत दूर नहीं है। गैर-साधक से साधक की दूरी बहुत बड़ी है; साधक और सिद्ध की दूरी बहुत बड़ी नहीं है। जो चल पड़ा वह पहुंच ही जाएगा। जो नहीं चला है, वह कैसे चलेगा, यह कठिनाई है। बैठे हुए और चलने वाले के बीच फासला बहुत बड़ा है। जो चल पड़ा और जो पहुंच गया, उसके बीच फासला बहुत बड़ा नहीं है। जो चल ही पड़ा वह पहुंच ही जाएगा।
महावीर कहते थे, चल गए कि आधे पहुंच गए। आधी यात्रा तो हो ही गई, जिस क्षण पहला कदम उठा। लेकिन वह पहला कदम बहुत समय लेता है। लाओत्से कहता है, 'सुंदर वचन बाजार में बिक सकते हैं, श्रेष्ठ चरित्र भेंट दिया जा सकता है।'
यह बड़ा कठिन लगेगा कि श्रेष्ठ चरित्र भेंट दिया जा सकता है। निश्चित ही। हम सब कुछ न कुछ तो भेंट देते ही हैं। अश्रेष्ठ तो हम भेंट देते ही हैं। तुम बैठे हो अपने घर में, उदास बैठे हो। तुम्हारा बच्चा तुम्हें उदास देख रहा है, तुम कुछ भेंट दे रहे हो। तुम उसे उदास बैठना सिखा रहे हो। तुम प्रफुल्लित हो; तुम आनंदित हो। तुम्हारा बच्चा तुम्हारे पास बैठा है। वह तुम्हारी प्रफुल्लता को पी रहा है। तुम उसे श्रेष्ठ चरित्र भेंट दे रहे हो।
और ध्यान रखना, बच्चे तुम्हारे शब्दों की फिक्र नहीं करते; तुम क्या हो, उसकी फिक्र करते हैं। तुम क्या कहते हो, उसको वे बहुत ज्यादा ध्यान नहीं देते। क्योंकि वे जानते हैं, तुम्हारे कहने और तुम्हारे होने में बड़ा फर्क है। तुम कहते कुछ हो, तुम करते कुछ हो। वे तुम्हें देखते हैं। वे तुम्हें पीते हैं। अगर बच्चा बिगड़ जाए तो तुम समझना कि तुमने उसे अश्रेष्ठ चरित्र भेंट दिया। तुम ही जिम्मेवार हो। तुम सिर मत ठोंकना कि यह दुर्जन हमारे घर में कैसे पैदा हो गया। यह अकारण नहीं है। यह तुम्हारे घर में ही पैदा हो सकता था, इसीलिए तुम्हारे घर में पैदा हुआ। यह तुम्हारा फूल है। इसे तुमने सींचा-संवारा। यही तुमने इसे दिया। अब जब इसमें फल आने लगे तब तुम घबड़ाते हो। धोखा मत देना बच्चे के सामने, अन्यथा वह धोखे को पी जाता है।
अब वह देखता रहता है। बच्चे बड़े आब्जर्वर्स हैं। क्योंकि अभी सोच-विचार तो ज्यादा नहीं है, निरीक्षण करते हैं। तुम सोच-विचार के कारण निरीक्षण नहीं कर पाते; उनकी सारी ऊर्जा निरीक्षण कर रही है। वे देखते हैं कि मां और बाप लड़ रहे थे, झगड़ रहे थे, और कोई मेहमान आ गया और वे दोनों मुस्कुराने लगे और ऐसा व्यवहार करने लगे जैसे कि जैसा प्रेम इनके जीवन में है ऐसा तो कहीं है ही नहीं। अब बच्चा देख रहा है। वह देख रहा है कि धोखा चल रहा है। अभी ये लड़ रहे थे, अभी एक-दूसरे की गर्दन दबाने को तैयार थे, अब मुस्कुरा रहे हैं। पाखंड चल रहा है। बच्चा देख रहा है। वह पी रहा है। तुम भेंट दे रहे हो।।
उठते-बैठते, जाने-बिनजाने तुम जिनसे भी मिल रहे हो तुम उनको कुछ भेंट दे रहे हो। यह सारा जीवन एक शेयरिंग है। हम बांट रहे हैं। तुम जिससे भी मिलते हो, कुछ तुम्हें वह दे रहा है, तुम उसे कुछ दे रहे हो। जीवन-ऊर्जा का आदान-प्रदान चल रहा है।
इसलिए उन लोगों से दूर रहना जिनसे गलत मिल सकता है, और उन लोगों के करीब रहना जिनसे शुभ मिल सकता है। बचाव करना अपना। क्योंकि अभी तुम इस योग्य नहीं हो कि गलत कोई दे और तुम न लो। अभी तुम्हारी इतनी हिम्मत नहीं है कि तुम कह दो कि नहीं, मैं वैसे ही आकंठ भरा हूं, कृपा करो। वह तुम्हारी हिम्मत नहीं है। कोई देगा तो तुम ले ही लोगे। कचरा इकट्ठा करने की तुम्हें ऐसी सहज सुगमता हो गई है कि तुम्हें इनकार करना आता ही नहीं। तुम्हारे द्वार खुले ही हैं, कोई भी कचरा फेंक जाए।
रास्ते पर एक आदमी मिल जाता है, वह तुम्हें कुछ भी अफवाह सुनाने लगता है। तुम आतुर कानों से सुनने लगते हो। तुम बिना सोचे कि यह अफवाह को भीतर ले जाने का क्या परिणाम होगा? क्यों सुन रहे हो? क्यों नहीं उससे कहते कि माफ करें, इसमें मुझे कोई प्रयोजन नहीं है? कौन आदमी ने चोरी की, किसने हत्या की, कौन
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