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ताओ की भेंट श्रेयस्कर हैं
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किसकी स्त्री को भगा ले गया, इससे मुझे क्या प्रयोजन है? आप क्षमा करें, अपना समय नष्ट न करें। और क्यों कचरा मेरे कान में डाल रहे हैं? तुम्हारे घर में अगर कोई कचरे की टोकरी डाल जाए तो तुम झगड़े को तैयार हो जाते हो। लेकिन तुम्हारी आत्मा में लोग कचरा डालते रहते हैं; तुम इनकार भी नहीं करते।
यह जो तुम सुन रहे हो, परिणाम लाएगा। क्योंकि अगर तुम रोज-रोज सुनते हो - फलां आदमी फलां की स्त्री भगा ले गया, फलां आदमी ने चोरी की, फलां आदमी ने ब्लैक मार्केट किया, फलां आदमी तस्करी कर रहा है, फलाने ने इतना कमा लिया- ये सब बीज हैं। इन सबका एक इकट्ठा परिणाम यह होगा कि तुम पाओगे, जो तुमने इन बीजों में इकट्ठा कर लिया वह तुम्हारे आचरण में आना शुरू हो गया। ये सब आकर्षण हैं, क्योंकि तुम देखते हो कि तस्कर बड़ा मकान बना लिया।
गांव में एक पुरोहित आया। और उसने शराब की बड़ी निंदा की। और निंदा करने के लिए उसने कहा कि देखो, गांव में सबसे बड़ा भवन, सबसे बड़ा मकान किसके पास है ? शराब बेचने वाले के पास ! तुम्हारा खून उसकी ईंटों में लगा है। सबसे बड़ी कार किसके पास है ? शराब बेचने वाले के पास ! तुम बरबाद हो रहे हो; उसकी संपत्ति बन रही है। ऐसा उसने वर्णन किया।
मुल्ला नसरुद्दीन भी सुन रहा था । पीछे वह धन्यवाद देने गया। उसने कहा कि आपने मेरा जीवन बदल दिया, धन्यवाद। ऐसा प्रवचन मैंने कभी सुना नहीं, मेरी आत्मा बदल गई। अब मैं एक दूसरा ही आदमी हूं। पुरोहित बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने कहा कि बड़ी सुख की बात है; क्या आपने तय कर लिया शराब नहीं पीएंगे? उसने कहा कि नहीं, मैंने शराब की दुकान खोलने का तय कर लिया। निर्णय ही ले लिया। आपकी बात ने ऐसा प्रभाव किया।
तुम जो भी सुन रहे हो, वे प्रभाव हैं, इम्प्रेशंस हैं। वे संस्कार हैं। हम एक-दूसरे को दे रहे हैं।
लाओत्से कहता है, 'श्रेष्ठ चरित्र भेंट में दिया जा सकता है। '
भेंट ही देनी हो तो चरित्र की भेंट देना ।
'यद्यपि बुरे लोग हो सकते हैं, हैं, तथापि उन्हें अस्वीकृत क्यों किया जाए ?'
अस्वीकृत करने की कोई जरूरत नहीं है। उनको भी चरित्र की भेंट दी जा सकती है। बुरों को भला बनाया जा
सकता है।
'इसलिए सम्राट के राज्याभिषेक पर, मंत्रियों की नियुक्ति पर, मणि- माणिक्य और चार-चार घोड़ों के दल भेजने की बजाय ताओ की भेंट भेजना श्रेयस्कर है।'
लाओत्से यह कह रहा है, देने योग्य तो बस एक है, वह धर्म है। बांटने योग्य तो बस एक है, वह धर्म है। साझा करने योग्य तो बस एक है, वह धर्म है। जितना बन सके, उसे दो ।
लेकिन बड़ी कठिनाई है। तुम वही दे सकते हो जो तुम्हारे पास है। तुम कैसे दोगे चरित्र अगर तुम्हारे पास न हो ? दुश्चरित्र बाप भी बेटे को सच्चरित्र बनाना चाहता है। पर कैसे देगा ? बुरा आदमी भी अपने बच्चों को बुरा नहीं देखना चाहता। चोर भी अपने बच्चों को ईमानदार बनाना चाहता है। मगर कैसे करेगा यह ? तुम वही तो दोगे जो तुम्हारे पास है।
अगर तुम्हें देना हो चरित्र दूसरों को तो चरित्र निर्मित करना होगा। और अगर तुम्हें स्वभाव की तरफ लोगों को जाना हो तो तुम्हें स्वभाव में आरूढ़ हो जाना होगा। तुम वही दे सकोगे जो तुम्हारे पास है। और अगर लोग तुम्हारी न सुनते हों, तुम देते कुछ हो, उनके पास कुछ और पहुंचता हो, तो तुम लोगों पर नाराज मत होना । मत कहना कि लोग बुरे हैं। तुम अपना ही विचार करना । तुम जो देने की चेष्टा कर रहे हो, वह जो भाव-भंगिमा है, वह थोथी है। उसमें भीतर कुछ है नहीं । तुम खाली हाथ लोगों के हाथ में उंडेल रहे हो। तुम्हारे हाथ में कुछ है नहीं ।