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ताओ की भेंट श्रेयस्कर हैं
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कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी क्षण में कोई वचन तुम्हारे भीतर इतना गहरा बैठ जाता है कि उससे क्रांति घटित हो सकती है। क्योंकि प्रत्येक वचन विस्फोटक है। सिर्फ वचन को इकट्ठा कर लेने से कुछ होने वाला नहीं है, लेकिन कभी किसी क्षण में, किसी नाजुक क्षण में कोई वचन बहुत गहरे बैठ सकता है; किसी ऐसे क्षण में जब तुम्हारे मन के द्वार खुले हैं।
इसलिए तो हिंदुओं ने एक व्यवस्था की है। वे कहते हैं, गीता तुम रोज पढ़ो, उसे पाठ बनाओ। पश्चिम के लोग बड़े हैरान होते हैं कि रोज पढ़ने से क्या होगा ? एक दफा किताब पढ़ ली, खतम हो गई बात। अब रोज क्या पढ़ना है? समझ लिया, बात खतम हो गई। न समझे होओ, दुबारा पढ़ लो, तिबारा पढ़ लो । मगर रोज पढ़ रहे हो ? हिंदुओं का कारण है । रोज इसलिए पढ़ने को वे कह रहे हैं कि तुम्हें अपने मन का कोई पता नहीं। कभी-कभी तुम्हारे मन का झरोखा खुला होता है - संयोगवशात । किसी रात तुम गहरी नींद सोए, क्योंकि उसके पहले दिन तुमने काफी श्रम किया। किसी रात तुम्हारा मन शांत रहा, बहुत सपने न आए, क्योंकि उसके पहले दिन बहुत वासनाओं की दौड़ न हुई। सुबह तुमने गीता पढ़ी। ये शब्द बहुत गहरे चले जाएंगे। किसी दिन तुम क्रोध से भरे हो; वासनाएं मन को घेरे हुए हैं; उद्विग्न हो, अशांत, बेचैन हो । गीता पढ़ी। ये शब्द भीतर नहीं जाएंगे। तुम पढ़ते रहना । कभी तो संयोग मिलेगा। कभी तो ऐसा होगा कि तुम किसी ठीक क्षण में गीता पढ़ लोगे। तुम रोज ही पढ़ते जाना ।
मैं रोज बोले जाता हूं। कारण इतना ही है कि तुम्हारा भरोसा नहीं है। नहीं तो एक दफा बोल दूं, बात खतम। जो मैं कह रहा हूं रोज वह एक दिन में भी कह सकता हूं। जो मैं कह रहा हूं वह एक पोस्टकार्ड पर लिखा जा सकता है। उसके लिए कुछ बहुत इतना कहने की जरूरत नहीं है। तुम्हारा भरोसा नहीं है। मैं तो पोस्टकार्ड पर लिख दूं, लेकिन तुम वहां मौजूद न हुए! मैं तो एक दिन कह दूं, पांच वचनों में सारी बात खतम हो जाए। लेकिन तुम? सवाल तुम्हारा है। इसलिए रोज कहे जाता हूं। किसी दिन तो तालमेल बैठेगा। किसी दिन तो तुम्हें घर पाऊंगा। किसी दिन तो ऐसा होगा कि तुम घर के भीतर होओगे और मैं दस्तक दूंगा। तो मैं दस्तक देता रहूंगा। किसी दिन यह संयोग बैठ जाएगा। उसी क्षण तालमेल बैठ जाएगा। उसी क्षण अंधेरा टूट जाता है, प्रकाश फैल जाता है। उस क्षण में, उस संधि में तुम देख लेते हो । एक दफा तुमने देख लिया, नाता जुड़ गया। अब तुम्हारे जीवन में एक दूसरी यात्रा शुरू हो गई। इसलिए सत्संग का इतना महत्व है। वचन ही तो सुनोगे सत्संग में, लेकिन क्या मूल्य है ? मूल्य यह है कि कभी यह हो सकता है संयोगवशात कि ऐसी घड़ी हो तुम्हारे भीतर सुख की, शांति की, प्रफुल्लता की, कि तालमेल बैठ जाए। बैठ जाए एक बार तो फिर बार-बार बैठने लगेगा। क्योंकि जो एक बार हो गया उसके बार-बार होने की संभावना हो गई। और जिसका स्वाद तुमने एक बार ले लिया, अब तुम बार-बार उसके स्वाद के लिए आतुर रहोगे । और धीरे-धीरे तुम्हारी समझ में आ जाएगा कि क्यों इस घड़ी में यह हुआ। तो जिस कारण इस घड़ी में हुआ है उन-उन कारणों को सम्हालने लगो । इतनी ही तो साधना है।
अगर किसी दिन रात गहरी नींद आई, और तुमने सुबह मुझे सुना और तुम्हारे हृदय में झनकार पहुंच गई, उसका मतलब है, गहरी नींद रोज सोना जरूरी है; तो फिर इस तरह जीयो कि गहरी नींद आ सके। तो तुमने पाया कि अगर दिन में तुम ठीक शारीरिक श्रम करते हो तो गहरी नींद हो जाती है। तो इसका अर्थ हुआ कि ठीक शारीरिक श्रम करते ही रहो, उससे बचो मत। कि तुमने पाया कि तुम क्रोध नहीं किए दो दिन तक, इसलिए तुम्हारे मन में एक शांत आभा थी; तुम सुन सके। या तुमने पाया कि तुम कामवासना में नहीं उतरे एक सप्ताह तक, इसलिए तुम्हारे भीतर एक ऊर्जा थी, एक शक्ति थी; उस शक्ति के कारण तालमेल बैठ गया। तो फिर तुम जमाने लगोगे । फिर तुम्हारे जीवन में दृष्टि आ गई। और कोई पतंजलि के शास्त्र से तुम्हें नहीं मिलेगा ज्ञान; अपने ही जीवन के स्वाद से तुम पहचानोगे, क्या करना है। कैसे यह हुआ, इसकी पहचान तुम बढ़ाते जाओगे। तुम्हारे जीवन में साधक का जन्म हो जाएगा।