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ताओ की भेंट श्रेयस्कर है
सज्जन बुराई के विपरीत नहीं है, बुराई से डरा हुआ है। सज्जन भलाई के पक्ष में नहीं है, लेकिन भलाई उसके अहंकार को सुरक्षा देती है। तो भलाई का खजाना बनाता है। भलाई यहां भी बचाएगी, आगे भी बचाएगी।
दुर्जन के लिए पनाह है, शरण-स्थल है। बुरा आदमी हमेशा सोचता रहता है : भला करना है। चोर सोचता है, चोरी छोड़नी है। कामी सोचता है, ब्रह्मचर्य का व्रत लेना है। झूठा सोचता है, सच बोलना है। अभ्यास करना है, यद्यपि कल करना है। आज तो जा ही चुका है; आज चोरी और कर लो, कल अचौर्य का व्रत ले लेना है। यह पनाह है दुर्जन की। इस तरकीब से वह दुर्जन बना रहता है; कल पर टालता रहता है अच्छे को। वह उसका शरण-स्थल है। उसके सहारे वह बुरा है।
यह बड़े मजे की बात है-लोग भलाई के सहारे बुरे होते हैं। बुरा होना इतना बुरा है कि बिना भलाई के सहारे तुम बुरे भी नहीं हो सकते; तुम किसी भलाई में रास्ता खोजते हो बुरे होने का। तुम यह कहते हो कि अगर मैं झूठ भी बोल रहा हूं तो इसलिए बोल रहा हूं कि उस आदमी को बचाना है; नहीं तो उसकी हत्या हो जाएगी। तुम कहते हो, मैं झूठ बोल रहा हूं इसलिए कि बच्चों को पालना है, नहीं तो मर जाएंगे। तुम झूठ बोलने के लिए भी या तो प्रेम की शरण लेते हो, या दान की शरण लेते हो, या सत्य की शरण लेते हो। पर तुम शरण लेते हो। और तब तुम अपने झूठ में भी प्रफुल्लित हो। तब कोई डर न रहा। क्योंकि तुम झूठ भी सच के लिए बोल रहे हो। तुम बुरा भी भले के लिए कर रहे हो।
स्टैलिन ने लाखों लोगों की हत्या की, लेकिन उसके मन पर जरा भी दंश नहीं पड़ा। क्योंकि ये बुरे लोग हैं, और इनको वह समाज के भविष्य के लिए नष्ट कर रहा है। माओ ने हजारों-लाखों लोगों को गोली मार दी है, जिनका कोई हिसाब भी रखना कठिन है। लेकिन माओ के मन पर कोई दंश नहीं है, नींद में कोई खलल नहीं पड़ती। क्योंकि समाजवाद लाने के लिए, भविष्य का एक उटोपिया है, एक कल्पना है, उसको पूरा करने के लिए, एक महान कार्य के लिए यह सब होगा ही। यह बलिदान जरूरी है।
इसे तुम छोटे से लेकर बड़े तक पहचान लोगे। हिंदू पुरोहित सदियों से जानवरों की बलि देता रहा है। कथाएं तो यह भी हैं कि उसने आदमियों की बलि भी दी है। अश्वमेध यज्ञ तो होते ही थे जिनमें घोड़ों की बलि दी जाती, • नरमेध यज्ञ भी होते थे। लेकिन ब्राह्मण को, पुरोहित को कभी इससे पीड़ा नहीं हुई। क्योंकि बलि तो परमात्मा के लिए दी जा रही है। परमात्मा का सहारा है।
आज भी कलकत्ता के काली के मंदिर में सैकड़ों पशुओं की बलि दी जाती है। लेकिन पुरोहित को कोई कष्ट नहीं है, क्योंकि यह तो परमात्मा के चरणों में चढ़ाया जा रहा है।
ताओ का यह उपयोग शरण-स्थल की तरह हो रहा है। काट रहे हो पशुओं को, हिंसा कर रहे हो स्पष्ट, पाप सीधा-साफ है। लेकिन पुण्य की आड़ में हो रहा है; प्रार्थना के लिए किया जा रहा है; पूजा का हिस्सा है।
दुनिया में जो बड़े से बड़े बेईमान लोग हैं, वे भी अपनी बेईमानी को किसी प्रार्थना और पूजा का हिस्सा बना लेते हैं। फिर दंश मिट जाता है। फिर दिल खोल कर पाप करो।
सज्जन अहंकार निर्मित करता है अपने कृत्यों से और दुर्जन सत्य के नाम पर असत्य की प्रक्रियाओं में गुजरता रहता है। करता है बेईमानी, लेकिन बहाना ईमानदारी का लेता है। अपने को धोखा देता है।
'सज्जन का खजाना और दुर्जन की पनाह।'
एक और अर्थ में भी यह सच है। बात तो एक ही है, सत्य तो एक ही है, तुम चाहो तो उसका खजाना बना लो और तुम चाहो तो उसकी पनाह बना लो। तुम पर सब निर्भर है। और तीसरी बात मैं जोड़ देना चाहता हूं जो इस सूत्र में नहीं है, लेकिन लाओत्से का मूल स्वर है, संत का स्वभाव। संत के लिए न तो यह कृत्य है और न पनाह है।
एमा
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