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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ 328 परमात्मा ऐसी ही दुलहन है, जिस पर घूंघट आंतरिक है। लाओत्से कहता है, यह उसका, ताओ का रहस्य भरा मर्म है। इस मर्म को अगर पहचानना हो तो तुम तीन जगह इसे पा सकोगे : सज्जन के खजाने में, दुर्जन की पनाह में, संत के स्वभाव में। इस सूत्र में संत के स्वभाव की बात नहीं की है, क्योंकि उसी की बात लाओत्से पीछे प्रगाढ़ता से कर लिया है। सज्जन का खजाना है यह स्वभाव । खजाने का अर्थ होता है : सज्जन ने अभी इसे बाहर-बाहर से ही जाना है, अभी यह सज्जन का स्वभाव नहीं बना। अभी उसने तिजोरी में भर लिए हैं पुण्य, अच्छे कृत्य; सत्कर्म, दान, दया, सब उसने तिजोरी में भर लिए हैं। सज्जन का खजाना है। लेकिन सज्जन भी अभी पूरी तरह परिचित नहीं है; अभी दूरी कायम है। खजाना लुट सकता है। चोर-डाकू खजाने को ले जा सकते हैं। और सज्जन को हमेशा चोर डाकुओं का डर बना रहता है। सज्जन शैतान से बहुत डरता है। सज्जन ऐसी जगह जाने से डरता है जहां उसके खजाने पर कोई चोट न पड़ जाए। विवेकानंद ने लिखा है कि मुझे पता नहीं था कि मैं क्या कर रहा हूं, लेकिन मैं कलकत्ते में उन गलियों से निकलता ही नहीं था जहां वेश्याओं का निवास था । यह तो मुझे बहुत बाद में पता चला कि वह मेरा भय था । सज्जन डरता है कि कहीं वेश्याओं के निकट से न गुजरना हो जाए। क्योंकि सज्जनता अभी खजाना है, छीनी जा सकती है। वेश्या हमला कर सकती है। सज्जन धर्म को भी धन की तरह ले रहा है। सज्जन धर्म को भी कृत्य की तरह ले रहा है। वह सोचता है, धार्मिक कृत्य ! मेरे पास कुछ सज्जन आते हैं, तो वे पूछते हैं कि हम क्या करें जिससे हम धार्मिक हो जाएं? उनका जोर करने पर है। वे यह नहीं पूछते कि हम क्या हो जाएं। वे पूछते हैं, व्हाट टुडू, नाट व्हाट टु बी । वही फर्क है। सज्जन पूछता है, क्या करूं? वह सोचता है, करने की बात है। कुछ कृत्य करो, धार्मिक हो जाओगे । | संत पूछता है, मैं क्या हो जाऊं ? करने का क्या सवाल है! करना तो होने से निकलता है। अगर मैं हो गया तो करना तो अपने आप ठीक हो जाएगा। लेकिन उलटा सही नहीं है। तुम अपने सारे कृत्यों को धार्मिक कर लो तो भी जरूरी नहीं है कि तुम धार्मिक हो जाओ । हो सकता है, यह सब ऊपर-ऊपर पाखंड हो । कृत्य आत्मा को नहीं बदलते, आत्मा कृत्यों को बदलती है। बाहर भीतर को नहीं बदलता, भीतर बाहर को बदलता है। आचरण नहीं बदलता अंतस को अंतस आचरण को बदलता है। अगर बिना अंतस को बदले तुमने आचरण बदला तो ऊपर की सजावट होगी, श्रृंगार होगा। वह ओंठों पर लगा लिपिस्टिक होगा, भीतर से खून की लाली नहीं। दुनिया तुम्हें पूजेगी, क्योंकि दुनिया खजाने को पूजती है। तुम्हारा धन दिखाई पड़ेगा। तुम्हारे पास बड़ी संपदा मालूम होगी। लेकिन फिर भी यह आखिरी घड़ी नहीं आई है। लाओत्से कहता है, वह रहस्य है सज्जन का खजाना । रहस्य को सज्जन खजाना बना लेता है। दुर्जन की पनाह है । और वही दुर्जन के लिए शरण स्थल है। इसे तुम सोचो । सज्जन हमेशा अकड़ा रहता है कि मैंने यह किया, यह किया, यह किया । इतने दान दिए, इतने भिक्षुओं को भोजन दिया, इतनी धर्मशालाएं बनाईं, इतने मंदिर-मस्जिद खड़े किए। क्या किया, उसको वह जोड़ता है, हिसाब रखता है, खाते-बही में लिखता है। इन्हीं सज्जनों ने कथाएं गढ़ी हैं कि वहां आकाश में, स्वर्ग के द्वार पर भी, खाते-बही में सब लिखा जा रहा है । तुमने क्या किया, वह सब अंकित किया जा रहा है। एक-एक चीज के लिए चुकतारा होगा, आखिर में जवाब देना पड़ेगा। इसलिए बुरा मत करो। बुरा मत करो, इसलिए नहीं कि बुरे में कोई बुराई है; बुरा मत करो, क्योंकि उसके लिए जवाब देना पड़ेगा। अगर जवाब न देना पड़े तो फिर कोई बुराई नहीं है ।
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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