SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 337
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ की भेंट श्रेयस्कर है को तुम अगर कंठ में भी ले जाओगे तो प्यास मिटेगी नहीं, कंठ अवरुद्ध हो जाएगा। पानी चाहिए, ज्ञान नहीं। कंठ पर पानी की शीतलता चाहिए, पानी के संबंध में जानकारी नहीं। बुद्धि जानने में लगी है; हृदय जीना चाहता है। रहस्य का अर्थ है : जिसे जाना कभी न जा सके, लेकिन जीया जा सके। अगर जानने की कोशिश तुमने की तो तुम दूर होते जाओगे। क्योंकि उसका स्वभाव ही जानने में नहीं आता। अगर तुमने जीने की कोशिश की तो तुम उसमें डूब जाओगे, तुम उसके साथ एक हो जाओगे। वही एकमात्र जानना है। प्रेम ही एकमात्र जानना है परमात्मा का। और ध्यान ही एकमात्र ज्ञान है परमात्मा का। और समाधि ही एकमात्र शास्त्र है परमात्मा का। इससे नीचे तुमने अगर कुछ भी कोशिश की, इससे भिन्न अगर कोई भी कोशिश की, तो तुम व्यर्थ ही अड़चन में पड़ोगे और भटकोगे। यह है रहस्य भरा ताओ। अब हम समझने की कोशिश करें। 'ताओ संसार का रहस्य भरा मर्म है। ताओ इज़ दि मिस्टीरियस सीक्रेट ऑफ दि यूनिवर्स।' रहस्य है, छिपा हुआ रहस्य है। उघाड़ो, कितना ही उघाड़ो, तुम उसके बूंघट को न उठा पाओगे। क्योंकि चूंघट उसके स्वभाव का अंग है। चूंघट ऊपर से डाला हुआ होता तो उठ जाता। चूंघट उसके होने की व्यवस्था है; उसके जीवन की शैली है। एक तो धूंघट है वस्त्रों का; उसे तुम उठा सकते हो। क्योंकि वह बाहर से डाला गया है। एक चूंघट लज्जा का भी होता है; तुम उसे न उठा सकोगे। तुम उसे कैसे उठाओगे? नग्न स्त्री भी तुम कर दो, लेकिन लज्जा का चूंघट तो पड़ा ही रहेगा। और गहन हो जाएगा। कपड़े उतारे जा सकते हैं। और अगर तुमने कपड़ों को ही चूंघट समझा है और तुमने समझा है कि कपड़े उतारने से ही तुम स्त्री के मर्म को समझ लोगे, तो तुम गलती में हो। देह दिखाई पड़ जाएगी, चेतना अपरिचित रह जाएगी। विज्ञान वही तो कर रहा है। चूंघट को उघाड़ रहा है, वस्त्र उघाड़ कर फेंक रहा है। उससे परमात्मा का शरीर तो पता चल रहा है-पदार्थ-लेकिन परमात्मा की कोई खबर नहीं मिल रही। प्रयोगशाला में उसकी पग-ध्वनि सुनी ही • नहीं जा रही। इसलिए तो वैज्ञानिक बेचारा कहता है कि हम कहीं नहीं पाते। इतना खोजते हैं, नहीं पाते। और हम कैसे भरोसा करें कि तुम झाड़ के नीचे बैठे-बैठे पा गए ? शक होता है। हम इतनी चेष्टा कर रहे हैं और नहीं पा रहे हैं। उसकी हालत वैसी ही है जैसे कोई एक सुंदर स्त्री राह से गुजरती हो, कुछ गुंडे उस पर हमला कर दें, उसके वस्त्र निकाल कर फेंक दें, बलात्कार कर दें। तो भी वे बाहर ही बाहर रहे, स्त्री के मर्म को न पहचान पाए। क्योंकि यह ढंग ही न था मर्म को पहचानने का।। विज्ञान प्रकृति के साथ एक तरह का बलात्कार है, जबरदस्ती है, हिंसा है, आक्रमण है। फिर इस स्त्री का प्रेमी हो। समझो कि स्त्री लैला थी, मजनू हो। और मजनू इस स्त्री के गीत गाए। और ये गुंडे कहें कि हम उस स्त्री का सब कुछ जान चुके हैं, तुम व्यर्थ की बकवास मत करो। यह वहां कुछ है ही नहीं। हमने उस स्त्री को नग्न देख लिया है। न केवल नग्न देख लिया है, हमने उस स्त्री का उपभोग कर लिया है। तुम यह बकवास छोड़ो। ये जो गीत तुम गा रहे हो, ये हमने उसमें कभी पाए नहीं। तो वे गुंडे भी ठीक ही कह रहे हैं, लेकिन फिर भी गलत हैं। क्योंकि स्त्री का मर्म तो खुला नहीं; वह तो प्रेम में ही खुलता है। उसकी लज्जा का अवगुंठन तो तभी मिटता है जब तुम उसमें इतने डूब जाते हो कि उसे पता ही नहीं रहता कि दूसरा मौजूद है। तभी वह बूंघट उठता है जो उसकी आत्मा पर पड़ा है। लेकिन तब तुम रहते नहीं। तुम जब मिट जाते हो तभी वह पूर्ण रूप में प्रकट हो पाती है। 327
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy