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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ 326 हम यहां बैठे हैं। सांझ हो जाए, सूरज डूब जाए, धीरे-धीरे अंधकार उतरने लगे और तुम्हारे बीच की जो जगह है वह अंधकार से भरने लगे, तो एक सेतु बनता है। फिर गहन अंधकार हो जाए, फिर तुम्हारे पृथक भेद सब समाप्त हो गए। कौन है गरीब, कौन है अमीर; कौन है ज्ञानी, कौन है अज्ञानी; कौन है पापी, कौन है पुण्यात्मा; सब खो गया। अंधकार ने सब को लील लिया। तब जो एक चेतना बच रह जाती है, सब भेदों के पार कंपित होती, सब लहरें जहां सो गईं और केवल सागर रह गया, वही है रहस्य । रहस्य को गा सकते हो, कह नहीं सकते। इसलिए संत गाते रहे। रहस्य को नाच सकते हो, कह नहीं सकते। इसलिए मीरा और चैतन्य नाचे । रहस्य को कह नहीं सकते, मौन में दर्शा सकते हो। इसलिए बहुत ज्ञानी चुप बैठे रहे मौन में दर्शाया। सारी बात एक तरफ इशारा करती है कि रहस्य इतना बड़ा है, इतना अपरिसीम है, इतना अनंत-अनादि है कि हमारे शब्द, हमारी परिभाषाएं, हमारी धारणाएं, प्रत्यय, सभी व्यर्थ हो जाते हैं। जी सकते हो सत्य को, कह नहीं सकते। अंतिम अर्थों में भी रहस्य को समझ लेना चाहिए। विज्ञान संसार को—संसार के यथार्थ को – दो हिस्सों में बांटता है। एक को वह कह है ज्ञात; जो जान लिया । और एक को वह कहता है अज्ञात; जो जाना जाएगा। दि नोन एक को कहता है, जो जान लिया। दि अननोन, जिसे हम कल जानेंगे। धर्म कहता है, एक तीसरी बात तुम छोड़े दे रहे हो : दि अननोएबल, अज्ञेय, जिसे तुम कभी भी न जानोगे । ज्ञात अतीत है हमारा; अज्ञात भविष्य में ज्ञात बन जाएगा। अगर विज्ञान की बात सच है तो एक दिन ऐसी घड़ी आ जाएगी कि जानने को कुछ न बचेगा। सब अतीत हो जाएगा, सब जान लिया जाएगा। उस दिन एक ही कोटि रहेगी : ज्ञात अज्ञात की कोटि समाप्त हो जाएगी । • धर्म कहता है, ऐसा कभी नहीं होगा; कुछ जानने को सदा ही शेष रहेगा – तुम कितना ही जानो। और कुछ ऐसा भी है जिसे तुम जान ही न सकोगे। इसलिए नहीं कि तुम्हारी क्षमता कम है, क्योंकि क्षमता कम हो तो बढ़ाई जा सकती है। यंत्र - संयंत्र कम हों, बड़े किए जा सकते हैं। विज्ञान रोज बढ़ता जाता है। नहीं, यह सवाल नहीं है। कुछ ऐसा भी है इस अस्तित्व में जिसका स्वभाव ही उसकी अज्ञेयता है, अननोएबिलिटी है। इसलिए तुम्हारे जानने के यंत्रों, प्रयोगशालाओं, तुम्हारी बुद्धि, प्रतिभा, गणित के विकास से उसका कोई लेना-देना नहीं। उसका होना ही ऐसा है। वह उसका गुण है। जैसे आग ठंडी नहीं हो सकती। ठंडी हो तो आग नहीं है। सूरज बिना रोशनी के नहीं हो सकता। हो तो सूरज नहीं है। वह उसका स्वभाव है। लाओत्से कहता है, जीवन के आत्यंतिक, गहनतम सत्य का स्वभाव उसकी अज्ञेयता है। इसलिए तुम कुछ भी करो, तुम उसे जान न सकोगे। वह सदा ही दूर क्षितिज पर अज्ञेय की तरह बना रहेगा। उससे अगर नाता जुड़ाना हो, तो ज्ञान का नाता नहीं। उससे वह नाता बनता ही नहीं। वह उसका स्वभाव नहीं है। उससे तो सिर्फ प्रेम का नाता बनता है; जानने का नाता नहीं, बुद्धि का नाता नहीं। उससे तो हृदय का रास्ता जोड़ता है। हृदय जानने की चिंता ही नहीं करता । हृदय जानने न जानने का विचार ही नहीं करता । हृदय तो आनंदित, प्रफुल्लित होता है उसमें, खिलता है उसमें, तिरता है, तैरता है, नाचता है उसमें; जानने की चिंता ही नहीं करता । हृदय कहता है, जानने का प्रयोजन क्या है? होना वास्तविक बात है । जान कर क्या करेंगे? जब होने का रास्ता खुला हो तो मूढ़ जानने की कोशिश करेंगे। जब प्यास लगी हो तो तुम जल को जानना चाहते हो या पीना चाहते हो ? क्या होगा जान कर कि एच-टू-ओ सेजल बना हुआ है, कि इसमें इतने परमाणु आक्सीजन के इतने हाइड्रोजन के ? क्या होगा ? एच-टू-ओ के फार्मूला
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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